SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेवाड़ के जैन वीर १३५ . ...... ............................-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-........... जीते गये चित्तौड़गढ़ दुर्ग को राजपूत शक्ति का पुन: केन्द्र बनने से रोकने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र खिज्र खां खिलजी को चित्तौड़ का शासक बनाकर चित्तौड़ नगर का नाम ही खिज्राबाद कर दिया और खिज्र खां की सहायता के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर के मालदेव चौहान को चित्तौड़ का किलेदार बनाया। किन्तु शीघ्र ही खिलजियों के विरुद्ध तुगलकों ने युद्ध छेड़ दिया। तब खिज्रखां अपने वंश और साम्राज्य की सहायता के लिये चित्तौड़ दुर्ग का सारा भार मालदेव पर छोड़कर दिल्ली चला गया। किन्तु युद्ध में खिलजियों की हार हुई और तुगलक साम्राज्य के नये शासक बने। किन्तु चित्तौड़ में पुन: राजपूत शक्ति की सम्भावना देखते हुए मुहम्मद शाह तुगलक ने पुन: चित्तौड़ को जीता। पर खिलजी वंश की भाँति तुगलक वंश भी देश के शासन में अल्पकालीन सिद्ध हुआ। दिल्ली अपने ही संघर्षों में केन्द्रित और लिप्त होती जा रही थी तथा दिल्ली से किसी प्रकार की सहायता व सुरक्षा नहीं मिलने से मालदेव बड़ा निराश हआ। इधर दिल्ली के संघर्षों का लाभ उठाकर रावलों के छोटे भाइयों की सिसोदिया शाखा का सिसोदा निवासी नवयुवा हमीर सक्रिय हुआ। तब मालदेव ने अपनी पुत्री का विवाह हमीर से कर दिया। नववधू ने सुहाग-रात में ही हमीर से कहा-'यदि आप अपने पूर्वजों का चित्तौड़ राज्य प्राप्त करना चाहते हैं तो आप मेरे पिता से दहेज में धन-वैभव मांगने के बजाय जाल मेहता को माँग लेना । जाल मेहता आपका मनोरथ पुरा कर देंगे।' हमीर ने ऐसा ही किया और जाल मेहता चित्तौड़ आ गये तथा मालदेव की ओर से किले का काम देखने लगे। किले में मालदेव के सैनिकों के अतिरिक्त प्रहरी के रूप में सामान्य मुस्लिम सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी रहती थी। जब हमीर के पहला पुत्र क्षेत्रसिंह हुआ तब उपयुक्त अवसर मानकर जाल मेहता ने एक योजना बनायी। जिसके अनुसार हमीर को प्रात:काल कुलदेवी की पूजा के लिये दुर्ग में प्रवेश होने देना था। योजना के अनुसार हमीर अपनी छोटी सी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित सेना लेकर रात को ही किले के द्वार पर पहुँच गया और जाल मेहता ने आधी रात को ही दुर्ग का द्वार खोलकर हमीर व उसकी सेना को किले में प्रवेश करा दिया। हमीर ने रात्रि में ही चित्तौड़ का दुर्ग जीत लिया और प्रातःकाल उसने अपने मेवाड़ के राजवंश का ध्वज दुर्ग पर फहराया तथा चित्तौड़ का खिज्राबाद नाम रद्द कर पुनः चित्तौड़ रखा और जाल मेहता को अपना दीवान नियुक्त किया। यही हमीर मेवाड के वर्तमान राणा राजवंश का प्रथम शासक था। इस प्रकार राजपूतों के हाथ से खोये हुए चित्तौड़ को पुनः राजपूतों को दिलाने वाला जाल मेहता स्थायी रूप से मेवाड़ में ही बस गया और उसके वंशधरों को मेवाड़ के राणाओं ने अनेक सामरिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व के किलों का किलेदार एवं अन्य उच्च गरिमामय प्रशासनिक पदों पर रखा। जाल मेहता के वंशज आज भी मेवाड़ की अन्तिम ऐतिहासिक राजधानी उदयपुर में निवास करते हैं। इसी वंश के वर्तमान में जीवित वयोवृद्ध स्वतन्त्रता सेनानी मा० श्री बलवन्तसिंह मेहता ने मेवाड़ प्रजा-मण्डल का प्रथम संस्थापक-अध्यक्ष बनकर मेवाड़ में अंग्रेजों एवं सामन्तों की गुलामी के विरुद्ध स्वतन्त्रता का ऐतिहासिक संघर्ष किया और कई बार जेलों का कठोर जीवन जीया । आप गांधीजी के भी निकट सम्पर्क में आये तथा देश को स्वतन्त्रता मिलने पर संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य, राजस्थान सरकार के मन्त्री एवं प्रथम लोक सभा के विजयी संसद सदस्य रहे । कर्माशाह-अपने पिता राणा रायमल की तरह राणा सांगा ने भी मुगलों के विरुद्ध स्वतन्त्रता संघर्ष करने वाले कई क्षत्रिय एवं अन्य जातियों के वीरों को मेवाड़ राज्य में आमन्त्रित करने की नीति का अनुसरण किया और वह अलवर से भारमल कावड़िया तथा कर्माशाह को आग्रहपूर्वक चित्तौड़ लाया तथा युवा कर्माशाह को अपना दीवान नियुक्त किया। कर्माशाह अत्यन्त धनाढ्य व्यापारी था तथा अपनी सारी धन-सम्पदा वह चित्तौड़ ले आया। किन्तु निरन्तर युद्धों में रत रहने से मेवाड़ की निर्बल आर्थिक दशा वह जानता था तथा अपने स्वामी राणा सांगा की मुगलों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy