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जोधपुर के जंन वीरों सम्बन्धी ऐतिहांसिक काव्य
गीत साहिबचन्द मुहता रो
सबद रिझवार साहिबा सांगल, उपजी चिन्ता रूप उपाध । नृपत नणौ दीदार हुवै नह, अवड़ौ की मौ में अपराध ।। भाली नजर अमीरी भूपत, दूजां सोह चाकरां दिसी । fat feat न भजे बुलावे, अमो नहीं सकसीर इसी ॥ मान महीप हूंत कर मालम, सही सवाई तथा म सांक । दिये नहीं अनदातां दरसण, वांका री प्राप्त में बांक ॥ मुजरा गय अरजकर मुहता, हव मन तणौ सन्देह हर । कै तौ धणी बुलावै कदमां के फुरमावै सीखकर ॥
भण्डारी पत्रभुज (तुर्भुज ) - यह भण्डारी सुखराम का पुत्र था और महाराजा मानसिंह के शासनकाल में बड़ा प्रभावशाली फौजबख्शी था । इसकी कीर्ति निम्न गीत से स्पष्ट है
गोल चतुर्भुज भण्डारी रो
लेस ।
मन सुध सुण वयण चतुरभुज म्हारी, लेखव मती खुसामद जस रा काज सुधारण जौंगौ, तर तूहिज नाडूल नरेस || अरज करें नृप हूंत अमीणी, रलियायत करित रमण । तूझ विणा सुखराम तणो भ्रम, कामेती दूजौ कमण || कुल उजवाल अंगोटो कायम, जग उपगार करण धण जांण । मुसद्दी किसी जोधपुर मांहै, तुझ सरीखी ऊँची तांण ॥ बुध सूं सूत राजरा वांघणा, दीधौ मान
महीप दुऔ ।
लूणाहरा आज कस लोभी, हुजदारां सिरताज हुआ ||
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भण्डारी लखमीचन्द - यह वि० सं० १८६४ में केवल तीन मास तक जोधपुर राज्य का दीवान रहा। इसके पिता का नाम कस्तूरचन्द भण्डारी था। इसकी प्रशंसा में निम्न गीत मिला है
गीत भण्डारी लिखमीचन्द रो थिर जितरा गाम तालके थार, नराहरा नाडूल नरेस । तुरत मँगाय हमें दे त्यांरां, लायां रा रूपिया लखमेस || भेलप जाणणहार भण्डारी, चित तो चाह उबारण चौज । तूं घर सुछल जागे तिखड़ो, नां दाखँ लागां रौ नौज ॥ कहियो काज जेज नह करसी, लाज लोयणां सुजस लियो । भाल तूने दूजा भीमाजल, होमाजल जिसी हियो । ईटगरां इण वार अनंरां, घरवट दीनी छोड़ घणां ।
तोनूं तो किसतूर तणी भ्रम, गोरा वाधा जिसी गिणां ॥
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मुहता लिखमीचन्द यह वयमचन्द्र मुहता असेचन्द का पुत्र था और जोधपुर राज्य का दो बार वि० सं० १६०० से १६०२ तथा वि० सं० १९०३ से १९०७ तक दीवान के पद पर रहा। इसकी प्रशंसा में निम्न कवित्त उपलब्ध है
कर
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कवित लिखमीचन्द मुहता रो
एको काढियो सुरां असुरां मथ सागर पायो सुरां हूँ मोहणी दनु जर
सोले
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