________________
१२४
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड
दुहा गुलराज भीवराजोत सिंघवी जो गुण धरम जिहाज, भूले जावां भीम तण । तो पिण म्है कहिया तिकै, गुण जाय न गुलराज ॥१॥ इण जुग माहै आज, जाहर गुण त्रेता जिसा ।
गाढे मन गुलराज, राम इसट मन राचियौ ॥ २॥ सिंघवी कुशलराज-यह महाराजा मानसिंह का समकालीन था और महाराजा मानसिंह को जोधपुर के घेरे में जोधपुर लाकर गद्दी पर बैठाने में इसका प्रमुख हाथ था। इस उपलक्ष में महाराजा ने इसे एक रूक्का भी प्रदान किया था। मानसिंह के गद्दी पर बैठने के बाद भी उसके राज्य में उस समय पैदा हुए विभिन्न बखेड़ों में इसने महाराजा मानसिंह की बड़ी मदद की । उसने बगड़ी के ठाकुर शिवनाथसिंह की बगावत को बड़ी बहादुरी से दबाया। अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट ने जब १८६० में जोधपुर पर सेना भेजने की धमकी दी, उस समय भी इसने महाराजा की बड़ी मदद की। यह वीर प्रकृति का पुरुष था। इसके व्यक्तित्व को प्रकट करने वाला निम्न गीत दृष्टव्य है।
गीत कुसलराज बनराजोत सिंघवी प्रगट मेलिया गरट पेंगां झपट पाषरां, सुमर नट नचावन बिजड़ सेले । कुसल रज चढ़ावे विकट त्रिमकी कवट, मुडे झट विसणथट मरट मेले ॥ कपटां बजरा हूंत छाती कटण, झाल ताती भभक खाग झाटां । बनावत तुराटां पीठ आवे बिरड़, बैरियाँ चलावे आठ बारां ।। चमू हड़हड़ वहै पीठ कूरम चड़ड़, खित घडड़ नाचता मुनंद्र खेला। उपाडै घाटियाँ बाग सिंघवी उरड़, बसे तड़ अनड़ रिम विसम बेला ।। सूरपण पूर भूगोल स्याबासियौ, तोल असमाण भुज नूर ताले ।
सार दरिया मझ बोल असहां समर, भीमहर वाहुड़े चौल भाले । मुहता सूरजमल-महाराजा मानसिंह के समय में सोजत निवासी कोचर. मुहता खुशालचन्द का पुत्र मुहता सूरजमल बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति था। वि० सं०१८६२ में इसे जोधपुर राज्य की दीवानगी का पद मिला। जालोर की लड़ाई में यह महाराजा मानसिंह के साथ घेरे में शामिल था। महाराजा. ने इसको अनेक रूक्के देकर सम्मानित किया। इसके बारे में दो डिंगल गीत निम्नानुसार लिखे मिलते हैं:
गोत सूरजमल मुहता रो कल जुगिया चुगल नह लागै कान, बदल नहीं बोलिया वैण । हूतल रहण धारणा है कै, सूरजमल सारां रौ सैंण ॥ पर उपगार करै सत पूरत, पालै पुषत प्रजांसू प्रीत । नवकोटां पतरौ निज नायब, मतरौ समंद जगतरौ मीत ।। सुत खुसियाल खाटवां सुसबद, वैणा जेम चढे चित बेल । मान महीप फायदै मुहतो, मुहता रै सगला सू मेल ।। विध विध खोटा पवन बाजिया, अडग भलो रहियो अकल ।
पूरणमाल हरा रे पग पग, सुभ चिंतक दोसत सकल ॥ (२) लहर सुमति फैले हिये उवारणा लीजिय, दीजिये बराबर किसौ दूजौ।
धुरा सू दाम रै लोभ नह धावियौ, सांम रे काम हमगीर सूजौ ॥ गंगजल सहज बिरदैत कामेत गुरु, ईख छक साजनां हुआं आणंद । भलल ताला प्रभा भला बड़ियां भुजां, नेत मुरधर तणा खुसालानंद ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org