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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड
सैनिक अभियानों में नेतृत्व ग्रहण किया, वहाँ दूसरी ओर "नैणसी री ख्यात" और "मारवाड़ के परगनों की विगत" जैसी ख्यातों का संकलन करवाकर प्राचीन इतिहास और साहित्य की सुरक्षा का बहुत बड़ा कार्य किया। नैणसी की यह सेवा कभी विस्मृत नहीं की जा सकती। नैणसी इतिहास और साहित्य का अनुरागी होने के साथ ही स्वयं भी उच्चकोटि का कवि था। नैणसी द्वारा रचित कुछ भक्ति गीत निःसन्देह नैणसी को सुकवि के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। नैणसी की वीरता से सम्बद्ध स्फुट गीत, कवित्त तथा दोहों में से यहाँ एक कवित्त दिया जा रहा है :
कवित्त थह सूतौ भर निहर घोर करतौ सादूलौ। ओनी दौ ऊठियो वडा रावतां स झूलौ ।। पौंहतो तीजी फाल भजड़ हाथल तोलता।
मेछ दलाँ मूगलां घात सीकार रमंता ॥ मारियो सिरोही मुगल मिल, खडग डसण धड़च खलै ।
गडड़ियौ सीह जैमाल रो, नैणसींह भरियों नलै ॥ मोहनोत सुन्दरसो-नैणसी की भाँति ही सुन्दरसी भी वीर और साहित्य प्रेमी था। वह महाराजा जसवंतसिंह का तन दीवान (निजी सचिव) था। सुन्दरसी द्वारा कंवलां के सिंघल राठौड़ों को पराजित करने का वर्णन मोहनोतों पर रचित एक निशानी छंद में इस प्रकार प्राप्त है :---
निसाणी मोहणोत ओसवालां री मोहण सुभट महेस मन आछ अवतारी। साखां तेहरों रो सिंधौ धींगौ पणधारी ।। चाँदे सादुल संचहै न आचै आचारी। देवै खेते अमरसी दीठौ दातारी॥ नगौ सपग्गी निडर नर धीरज वंत धारी। भाँजो कालूसी भलम, अगवात उधारी॥ साँम काँम समरथ सदा नित कलह बिहारी । सांवत जिसडा साँचवट कर खग करारी॥ नगै तणौ सूजौ निमल अचलौ अवतारी । अचलावत अवचल जैसी जड़धारी ॥ जैमल राजा गजन रे सौवे धर सारी। सुन्दर देवासा अविनी साझे ली सारी ॥ कंवला सिंघल सर किया आ साटै तरवारी। तेण घरांण तेजसी वंस रीत वधारी॥ तोउर तेजै रै तिसौ रावण अहकारी। कंबर तिकै रौ सहसकर सोभा प्रिय सारी ।।
मोहणोतां में मुकुट मिण बानेत बिहारी। उल्लेखित निशानी में सुन्दरसी के पूर्वजों तथा उत्तराधिकारियों तेजसी, तोडरमल, बिहारीदास का भी वर्णन है।
मोहनोत सुरतराम-मोहनोत नैणसी की संतति में करमसी, संग्रामसी, भगवतसी और सुरतराम हुए। सुरतराम को राजाधिराज बख्तसिंह ने सं १८०४ में सिंघवी फतहचन्द के स्थान पर फौजबक्षी के पद पर नियुक्त
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