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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड
The name of Bhama Shah is remembered throughout Rajputana with as tender affection and reverence as that of Maharana Pratap. Bharmal's two sons Bhama Shah and Tarachand grew up dashing soldier and capable administrator and fought in the battle of Holdighati under Maharana Pratap. He made Bhama Shah his pradhan and appointed Tarachand to the charge of Godwar district. During the critical years of Pratap's fortune Bhama Shah raided Akbar's territory of Malva and brought a booty of twenty lakhs of rupees and twenty thousand asharfis to the Maharana.........Bhama Shah was neither Netaji Palkar nor Nana Fadnavis."1
निस्सन्देह ही भामाशाह की प्रशंसा में जो कुछ भी कहा जाय, पर्याप्त नहीं होगा । वह एक सच्चा देशभक्त, त्यागी और बलिदानी पुरुष था। वह प्रताप की तरह आन-बान का पक्का था। वह कठिन से कठिन संकटों में अविचलित एवं दृढ़ रहने वाला योद्धा था । उसका उदात्त नैतिक चरित्र उसकी स्वामिभक्ति और देश-रक्षा के लिये सर्वस्व समर्पणकारी भावना, उसका अदम्य साहस और शौर्य, सैन्य संचालन की दृष्टि से उसका उच्च कौशल और शासन व्यवस्था में निपुणता भामाशाह अपने इन गुणों के कारण महाराणा प्रताप का अतिप्रिय एवं सर्वाधिक विश्वासपात्र सहयोगी बन गया। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि प्रताप की सफलता में भामाशाह जैसे कर्मवीर का अत्यन्त अमूल्य योगदान रहा है और यही कारण है कि स्वतन्त्रता के अमर सेनानी महाराणा प्रताप के साथ भामाशाह का नाम अभिन्न रूप से जुड़ गया है।
भामाशाह का देहावसान वि० सं० १६५६ माघ शुक्ला ११ (२७ जनवरी) में हुआ जब वह सिर्फ ५२ वर्ष
का था।
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१. K. R. Quanungo : Studies in Rajput History, p. 51-52 नेताजी पालकर छत्रपति शिवाजी का विश्वासपात्र सहयोगी मराठा सरदार था, जो बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के प्रलोभन में आकर शिवाजी का साथ छोड़ गया ।
नाना फड़नवीस मराठा राज्य का एक बहुत कुशल प्रशासक एवं चतुर कूटनीतिज्ञ हो गया है । किन्तु उसके खिलाफ बड़ी मात्रा में राजकीय सम्पत्ति को हड़पने का इलजाम है ।
२. कविराजा श्यामलदास : वीर विनोद, भाग २, पृ० २५१ ।
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