SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1067
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 666 20 Jain Education International ३६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ षष्ठ खण्ड के निमन्त्रण पर उक्त आचार्य ने उदयपुर में चातुर्मास किया । चातुर्मास समाप्त होने पर एक रात दल-बदल महल में विश्राम किया, महाराणा जगतसिंह नमस्कार करने गये एवं आचार्य के उपदेश से निम्न बातें स्वीकार कीं १. पीछोला तालाब एवं उदयसागर में मछलियों को कोई नहीं पकड़े। २. राजतिलक के दिन जीवहिंसा बन्द रखी जावे । ३. जन्ममास एवं भाद्रमास में जीवहिंसा बन्द रखी जावे । ४. मचींद दुर्ग पर राणा कुम्भा द्वारा बनवाये गये जैन चैत्यालय का पुनरुद्धार कराया जावे। राणा राजसिंह राणा राजसिंह (वि०सं० १७०९ से १७३७ ) के समय में राजसमन्द का निर्माण हुआ था उसी के साथ राणा के दीवान दयालशाह ने दयालशाह का किला नामक बावन जिनालय का एक भव्य देरासर बनवाया। इस सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि राजसमन्द की पाल जैसे ही तैयार होती, पानी आने पर टूट जाती; ऐसी स्थिति में मन्दिर की प्रतिष्ठा की अनुमति को राणा डालते रहे अन्ना में राजा राहत की पत्नी पाटनदे (पाटनदेवी) जो धर्मात्मा एवं सती थी उसने पाल की नींव रखवाई एवं रात-दिन काम करवा कर पाल वायी जो चातुर्मास की वर्षा में भी नहीं टूटी ने इस मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाने की अनुमति दी तदनुसार] [वि०सं० १७३२ साथ सुद तत्पश्चात् राणा ७को विजयगच्छ के मानक विनयसागरसूरि कीनिया में एवं सांडेराव गच्छ के म देवसुन्दरसूरि की उपस्थिति में इस मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई। महाराणा राजसिंह के समय का एक आशापत्र कर्नल टॉड ने जी में प्रकाशित किया। इससे भी राणा राजसिंह जी की जैन धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा प्रकट होती है । यह आज्ञा ( फरमान ) यति मान के उपदेश से जारी किया गया था। इसमें मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं— "महाराणा श्री राजसिंह, मेवाड़ के दस हजार गांवों के सरदार मंत्री और पटेलों को आशा देता है, सब अपने-अपने पद के अनुसार पढ़ें १. प्राचीन काल से जैनियों के मन्दिरों और स्थानों को अधिकार निरहुआ है इस कारण कोई मनुष्य उनकी सीमा में जीव-वध नहीं करे, यह उनका पुराना हक है। २. जो जीव नर हो या मादा, वध होने के अभिप्राय से इनके स्थान से गुजरता है, वह अमर हो जाता है । राजद्रोही, लुटेरे और कारागृह से भागे हुए महाअपराधी को भी, जो जैनियों के उपास रे में शरण ग्रहण कर लेगा, उसको राज्य कर्मचारी नहीं पकड़ेगा । ३. DIDIE ४. फसल में कूंची (मुट्ठी), कराना की मुट्ठी, दान की हुई भूमि, धरती और अनेक नगरों में उनके बनाये हुए उपासरे कायम रहेंगे। । ५. यह फरमान यति मन की प्रार्थना पर जारी किया गया है, जिनको १२वी वा धान की भूमि के और २५ बीचे माटी के दान किये गये हैं। नीमन और निम्बाहेड़ा के प्रत्येक परगने में भी हर एक पति को इतनी ही भूमि दी नई है। अर्थात् तीनों परगनों में धान के कुल ४५ बीधे और मालेटी के ७५ बीघे । इस फरमान को देखते ही भूमि नाप दी जावे व दे दी जाय और कोई मनुष्य जतियों बल्कि उनके हकों की रक्षा करे । उस मनुष्य को धिक्कार है जो उनके हकों का उल्लंघन करता है। मुसलमान को सूअर और मुदारी की कलम है सं १७४२ (१) महासुदी ५ ६०० १५९३ (१) १. राजपूताने के जैन वीर, अयोध्याप्रसाद गोयल, पृ० ३४६. २. एनल्स एण्ड एण्टीक्यूटीज आफ राजस्थान - टाट परिशिष्ट, ५, १०६१७. For Private & Personal Use Only को दुःख नहीं दे, हिन्दू को गो और दया मंत्री" www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy