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________________ -. -. -. -. -. -. -. -. -. ओसियां की प्राचीनता प्रो० देवेन्द्र हाण्डा [प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़-१६००१४] उत्तरी रेलवे के जोधपुर-जैसलमेर खण्ड पर जोधपुर से ६६ किलोमीटर उत्तर-उत्तर-पश्चिम में स्थित वर्तमान ओसियां नगर ओसवाल जाति के उद्गम स्थान के रूप में विख्यात है। एक स्थानीय परम्परा के अनुसार पहले ओसियां' का नाम मेलपुरपट्टन था। धुन्दलीमल्ल नामक एक साधु ग्राम से लगभग डेढ़ मील पूर्वोत्तर में एक पहाड़ी पर रहता था जहाँ एक टीले की चोटी पर उसके अवशेष दबे हैं तथा चरण-चिह्न उत्कीर्ण हैं । २ अनुश्रुति के अनुसार एक दिन उसने अपने शिष्य को गाँव से भिक्षा लाने के लिए भेजा परन्तु किसी ने भी उसे खाने के लिए कुछ नहीं दिया, और वह खाली हाथ लौट आया। इस पर धुन्दलीमल्ल इतना क्रुद्ध हुआ कि उसने गांव को शाप दिया जिसके फलस्वरूप मेलपुरपट्टन उट्टण अर्थात् ध्वस्त हो गया । कालान्तर में यह स्थान उपलदेव नामक परमार राजकुमार द्वारा शत्रुओं से पीड़ित हो मारवाड़ के तत्कालीन प्रतिहारवंशीय शासक की शरण लेने पर पुनः बसाया गया। प्रतिहार राजा ने उपलदेव को मेलपुरपट्टन के ध्वंसावशेष देते हुए वहाँ शरण लेने के लिए कहा । उपलदेव ने निर्जन ग्राम को पुन: बसाया और इसका नाम नवनेरी नगरी रखा । क्योंकि उपलदेव ने यहाँ ओसला (शरण-आश्रय) लिया था इसलिए इस नगर का नाम ओसियां पड़ गया ।५ उपलदेव ने यहाँ सांखला परमारों की कुलदेवी सचिया १. कहीं-कहीं यह नाम ओसिया, औसियां, ओशीया आदि लिखा भी मिलता है। ओसियां के दक्षिण-पूर्व में लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी है जिसे लूणाद्री (लवणाद्रि) कहा जाता है । इस पर दादी-बाड़ी स्थित है। इसमें प्राचीन चरण-चिह्न उत्कीर्ण हैं तथा एक अभिलेख है जिसका पाठ है-'सं० १२४६ माघ वदि १५ शनिवार दिने श्री मज्जिनभद्रोपाध्याय शिष्यः श्री कनकप्रभमिश्र कायोत्सर्गः कृतः' (P. C. Nahar : Jain Inscriptions, Part I, Calcutta, 1918, p. 199, No. 808) प्राचीन चरण-चिह्नों पर संवत् २००१ में जीर्णोद्धार के समय एक अन्य मुण्डेर बनाकर संगमरमर के चरणचिह्न तथा एक अभिलेख स्थापित कर दिया गया था जिसमें चरण-पादुकाएँ श्री रत्नप्रभसूरि की बताई गई हैं। ३. कहीं-कहीं यह नाम उप्पल दे, उत्पल कुमार आदि भी मिलता है। ४, स्पष्टत: मूल ओसियां नगर उपलदेव से बहुत पहले का था। ५. D. R. Bhandarkar, The Temples of Osia, Annual Report, Archaeological Survey of India, 1908-09, p. 100. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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