SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1035
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड -.0.0.0.0..... .......................................................... यापन करती हैं और लिच्छविक, वृजिक, मल्लक, मद्रक, कुकुर, कुरु, पंचाल आदि श्रेणियाँ राजा के समान जीवन बिताती हैं। रामायण तथा विष्णु पुराण के अनुसार, वैशालीनगरी की स्थापना इक्ष्वाकु-पुत्र विशाल द्वारा की गई है। विशाल नगरी होने के कारण यह 'विशाला' नाम से भी प्रसिद्ध हुई। बुद्ध काल में इसका विस्तार नौ मील तक था। इसके अतिरिक्त, “वैशाली धन-धान्य-समृद्ध तथा जन-संकुल नगरी थी। इसमें बहुत से उच्च भवन, शिखरयुक्त प्रासाद, उपवन तथा कमल-सरोवर थे (विनयपिटक एवं ललितविस्तर)। बौद्ध एवं जैन-दौनों धर्मों के प्रारम्भिक इतिहास से वैशाली का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। “ई० पू० पांच सौ वर्ष पूर्व भारत के उत्तर-पूर्व भाग में दो महान् धर्मों के महापुरुषों की पवित्र स्मृतियाँ वैशाली में निहित हैं।"3 बढ़ती हुई जनसंख्या के दबाव से तीन बार इसका विस्तार हुआ। तीन दीवारें इसे घेरती थीं। तिब्बती विवरण भी इसकी समृद्धि की पुष्टि करते हैं। तिब्बती विवरण (सुल्व ३८०) के अनुसार, वैशाली में तीन जिले थे। पहले में स्वर्ण-शिखरों से युक्त ७००० घर थे, दूसरे जिले में चाँदी के शिखरों से युक्त १४००० घर थे तथा तीसरे जिले में ताँबे के शिखरों से युक्त २१००० घर थे । इन जिलों में उत्तम, मध्यम तथा निम्न-वर्ग के लोग अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार रहते थे। (राकहिल : लाइफ आफ बुद्ध-पृष्ठ ६२)। प्राप्त विवरणों के अनुसार वैशाली की जनसंख्या १६८००० थी। क्षेत्र एवं निवासी? जहाँ तक इसकी सीमा का सम्बन्ध है, गंगा नदी इसे मगध साम्राज्य से पृथक् करती थी । श्री राय चौधुरी के शब्दों में, "उत्तर दिशा में लिच्छवि-प्रदेश नेपाल तक विस्तृत था।" श्री राहुल सांकृत्यायन के अनुसार, वज्जि-प्रदेश में आधुनिक चम्पारन तथा मुजपफरपुर जिलों के कुछ भाग, दरभंगा जिले का अधिकांश भाग, छपरा जिले के मिर्जापुर एवं परसा, सोनपुर पुलिस-क्षेत्र तथा कुछ अन्य स्थान सम्मिलित थे। बसाढ़ में हुए पुरातत्त्व-विभाग के उत्खनन से इस स्थानीय विश्वास की पुष्टि होती है कि वहाँ राजा विशाल का गढ़ था । एक मुद्रा पर अंकित था-'वेशालि इन ट-कारे सयानक ।' जिसका अर्थ किया गया, "वैशाली का एक भ्रमणकारी अधिकारी।" इस खुदाई में जैन तीर्थंकरों की मध्यकालीन मूतियाँ भी प्राप्त हुई हैं। वैशाली की जनसंख्या के मुख्य अंग थे--क्षत्रिय । श्री राय चौधुरी के शब्दों में, "कट्टर हिन्दू-धर्म के प्रति उनका मैत्रीभाव प्रकट नहीं होता। इसके विपरीत, ये क्षत्रिय जैन, बौद्ध जैसे अब्राह्मण सम्प्रदायों के प्रबल पोषक थे।" मनुस्मृति के अनुसार, "झल्ल, मल्ल, द्रविड़, खस आदि के समान वे व्रात्य राजन्य थे।" यह सुविदित है कि व्रात्य का अर्थ यहाँ जैन है, क्योंकि जैन साधु एवं श्रावक अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहइन पाँच व्रतों का पालन करते हैं। मनुस्मृति के उपर्युक्त श्लोक में लिच्छवियों को 'निच्छवि' कहा गया है। कुछ विद्वानों ने लिच्छवियों का 'तिब्बती उद्गम' सिद्ध करने का प्रयत्न किया है परन्तु यह मत स्वीकार्य नहीं है। अन्य विद्वान् के अनुसार लिच्छवि भारतीय क्षत्रिय हैं, यद्यपि यह एक तथ्य है कि लिच्छवि-गणतन्त्र के पतन के बाद वे नेपाल चले गये और वहाँ उन्होंने राजवंश स्थापित किया । १. काम्बोज-सुराष्ट्र क्षत्रिय श्रेण्यादयो वार्ताशास्त्रोपजीविन: लिच्छविक-वृजिक-मल्लक-कुकुर-पांचालादयो राजशब्दोप जी विनः। २. बी०ए० सालेतोर-ऐन्शियेंट इण्डियन पोलिटिकल थौट एण्ड इन्स्टीट्यूशंस, १९६३, पृ० ५०६. ३. बी०सी० ला: 'हिस्टोरिकल ज्योग्रे फी आफ एशियेट इण्डिया, फाइनेंस' में प्रकाशित (१९५४), पू० २६६. ४. वही, पृ० २६६-६७. ५. झल्लो मल्लाश्च राजन्याः व्रात्यानिच्छविरेव च । नटश्च करणश्चोखसो द्रविड एव च ॥१०.२२. ६. भरतसिंह उपाध्याय, वही, ३३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy