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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड
तथापि उन्होंने वैशाली-गणतन्त्र की पद्धति को अपनाया । हिन्दू राजशास्त्र के विशेषज्ञ श्री काशीप्रसाद जायसवाल के शब्दों में “बौद्ध संघ ने राजनैतिक संघों से अनेक बातें ग्रहण की। बुद्ध का जन्म गणतन्त्र में हुआ था। उनके पड़ौसी गणतन्त्र संघ थे और वे उन्हीं लोगों में बड़े हुए। उन्होंने अपने संघ का नामकरण भिक्षुसंघ अर्थात् भिक्षुओं का गणतन्त्र किया । अपने समकालीन गुरुओं का अनुकरण करके उन्होंने अपने धर्म-संघ की स्थापना में गणतन्त्र संघों के नाम तथा संविधान को ग्रहण किया । पालि-सूत्रों में उद्धृत बुद्ध के शब्दों के द्वारा राजनैतिक तथा धार्मिक संघव्यवस्था का सम्बन्ध सिद्ध किया जा सकता है। विद्वान् लेखक ने उन सात नियमों का वर्णन किया है जिनका पूर्ण पालन होने पर वज्जि-गण (लिच्छवि एवं विदेह) निरन्तर उन्नति करता रहेगा। इन नियमों का वर्णन महात्मा बुद्ध ने मगधराज अजातशत्रु (जो वज्जिगण के विनाश का इच्छुक था) के मन्त्री के सम्मुख किया था। बुद्ध ने भिक्षु-संघ को भी इन नियमों के पालन की प्रेरणा दी थी।
बौद्ध ग्रन्थ एवं वैशाली
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वैशाली-गणतन्त्र के इतिहास तथा कार्यप्रणाली के ज्ञान के लिए हम बौद्ध ग्रन्थों के ऋणी हैं । विवरणों की उपलब्धि के विषय में ये विवरण निराले हैं। सम्भवत: इसी कारण श्री जायसवाल ने इस गणतन्त्र को 'विवरणयुक्त गणराज्य' (Recorded republic) शब्द से सम्बोधित किया है। क्योंकि अधिकांश गणराज्यों का अनुमान कुछ सिक्कों या मुद्राओं से या पाणिनीय व्याकरण के कुछ सूत्रों से अथवा कुछ ग्रन्थों में यत्र-तत्र उपलब्ध संकेतों से किया गया है। इसी कारण विद्वान् लेखक ने इसे 'प्राचीनतम गणतन्त्र' घोषित किया है, जिसके लिखित साक्ष्य हमें प्राप्त हैं और जिसकी कार्य-प्रणाली की झांकी हमें महात्मा बुद्ध के अनेक संवादों में मिलती है ।
वैशाली गणतन्त्र का अस्तित्व कम ने कन २६०० वर्ष पूर्व रहा है। २५०० वर्ष पूर्व भगवान् महावीर ने ७२ वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त किया था । यह स्पष्ट ही है कि महावीर वैशाली के अध्यक्ष चेटक के दौहित्र थे। महात्मा बुद्ध महावीर के समकालीन थे। बुद्ध के निर्वाण के शीघ्र पश्चात् बुद्ध के उपदेशों को लेख-बद्ध कर लिया गया था। वैशाली में ही बौद्ध भिक्षुओं की दूसरी संगीति का आयोजन (बुद्ध के उपदेशों के संग्रह के लिए) हुआ था।
वैशाली गणतन्त्र से पूर्व (छठी शताब्दी ई० पू०) क्या कोई गणराज्य था ? वस्तुत: इस विषय में हम अन्धकार में हैं। विद्वानों ने ग्रन्थों में यत्र-तत्र प्राप्त शब्दों से इसका अनुमान लगाने का प्रयत्न किया है। वैशाली से पूर्व किसी अन्य गणतन्त्र का विस्तृत विवरण हमें उपलब्ध नहीं है। बौद्ध-ग्रन्थ 'अंगुत्तर निकाय' से हमें ज्ञात होता है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी से पहले निम्नलिखित सोलह 'महाजन पद' थे—१. काशी, २. कोसल, ३. अंग, ४ मगध, ५. वज्जि (बृजि), ६. मल्ल, ७. चेत्तिय (चेदि), ८. वंस (वत्स) ६. कुरु, १०. पंचाल, ११. मच्छ (मत्स्य), १२. शूरसेन, १३. अस्सक (अश्मक), १४. अवन्ति, १५. गन्धार, १६. कम्बोज । इनमें से वज्जि का उदय विदेह-साम्राज्य के पतन के बाद हुआ।
जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र में इन जनपदों की सूची भिन्न रूप में है जो निम्नलिखित है---१. अंग, २. वंग, ३. मगह (मगध), ४. मलय, ५. मालव (क), ६. अच्छ, ७. वच्छ (वत्स), ८. कोच्छ (कच्छ ?) ६. पाढ (पाण्ड्य या पौड़) १०. लाढ (लाट या राट), ११. वज्जि (वज्जि), १२. मोलि (मल्ल), १३. काशी, १४. कोसल, १५. अवाह,
१. श्री काशीप्रसाद जायसवाल----'हिन्दू पोलिटी० ----पृष्ठ ४० (चतुर्थ संस्करण)। २. पुरातत्त्व-निबन्धावली-२०. ३. राय चौधुरी, पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ ऐंशियेंट इण्डिया, कलकत्ता विश्वविद्यालय, छठा संस्करण, १६५३, पृ. ६५.
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