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(२) कथाकोच रचयिता अज्ञात है। इसमें १० कथाएँ हैं, जो संस्कृत में लिखी गई हैं। (३) कथारत्नकोशीचन्द्र के शिष्य श्रीदेवभद्र द्वारा रचित है। यह प्राकृत कृति है।
(४) कथाकोश (भरतेश्वर बाहुबलि-वृत्ति ) - प्राकृत की यह रचना है जिसमें महापुरुषों की जीवन कथाएँ हैं।
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(५) कथाकोश (प्रतचाकोश) श्री श्रुतसागररचित यह संस्कृत कृति है जिसमें व्रतों से सम्बन्धित व अनेक जैन कथाएँ हैं। इसकी रचना शैली प्रांजन है तथा कथ्य बड़ी रमणीयता से प्रतिपादित किया गया है।
जैन-कथा-साहित्य में नारी
प्राकृत की यह कृति श्रीविजयचन्द्र रचित है।
(६) इस रचना में १४० गाथाएँ हैं (७) आख्यानमणिकोश - यह प्राकृत में लिखित है, जिसमें ४१ अध्याय हैं ।
(८) कथारत्नसागर - इसमें १५ तरंग हैं जिसे श्रीदेवभद्रसूरि के शिष्य नरचन्द्रसूरि ने रचा है ।
(e) कथारत्नाकर - इसमें संस्कृत में लिखित २५८ जैन कथाएँ हैं। जो संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि के पुरातन उद्धरणों से अलंकृत भी है ।
(१०) कथार्णव - जैन तपोधन वीरों की इसमें कथाएँ हैं । अन्य उपदेश कथाएँ भी यहाँ द्रष्टव्य हैं । कवि धर्मघोष ने इसे प्राकृत में लिखा है।
हुए हैं।
(११) कथासंग्रह सामान्य संस्कृत में लिखित अनेक सरस कथाएँ इसमें संग्रहीत हैं एक मुख्य कथा के अन्तर्गत अनेक उपकथाएँ गुम्फित की गई है। इसके रचयिता श्री राजशेखरमलधारी हैं।
(१२) श्रीरामचन्द्र मुमुक्षु कृत संस्कृत पुण्यात्रव कथा-कोश- -भी बहुचर्चित है।
इन कथाकोशों के अतिरिक्त शताधिक जैन कथाकोश उपलब्ध है ।
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शान्तिनाय चरित्र वसुदेवहडी, पउमचरियं चउप्पन्न महापुरिस चरिये तरंगलोला, भुवनसुन्दरीकहा, निर्वाण लीलावती कथा, बृहत्कथाकोश, उपदेश प्रासाद, जंबुचरियं सुरसुन्दरचरियं, रयणचूरराय, जयति प्रकरण आदि-आदि अनेक कथा ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद हो चुका है ।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष में विभाजित जैन कवाओं के कुछ उपभेद भी हैं, जिनमें नारी के विविध रूप अंकित
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नारी के कुछ रंगीन अथवा मर्म स्पर्शी चित्र इन कथाओं में रूपायित हुए हैं
(१)
शापत्नीधन का घड़ा और बुद्धिहीन पड़ोसी, पृ० १.
(२) असोत की राजकुमारी आज की दासीदास प्रथा की जड़ें हिल गई, पृ० १३.
(२) साध्वी प्रमुख का प्रभावक ज्ञानोपदेश सबसे पहला कार्य, पृ० १८.
(४) रानी मृगावती का अटल आत्मविश्वास गूँजा - मेरे लिए अब अंधकार नहीं रहा, पृ० २४.
(५) नृत्य कला प्रवीणा देवदत्ता नामक वेश्या की लास्यभंगिमा- हथेली पर सरसों कैसे उगेगी, पृ० ३१.
(६) शील का चमत्कार - नामक कथा में नारी का भव्यरूप, पृ० ३४.
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( यह सब पृष्ठ संख्या जैन जगत के जैन कथा अंक के हैं ।)
(७) माली की दो लड़कियाँ केवल भक्तिभाव से जिन मन्दिर की देहली पर एक-एक फूल चढ़ाने के कारण मरने के उपरान्त सौधर्म इन्द्र की पत्नियां बनती हैं। (पुण्यास्त्रव कथाकोश, पृ० १. )
१. राजकथा, चोरकथा, सेनकथा, भयकथा, युद्धकथा, पातकथा, वस्त्रकथा, शयनकथा, मालाकथा, गंधकथा, ग्रामकथा, निगम कथा, स्त्रीकथा, पुरुषकथा, शूरकथा, पनघटकथा, आदि-आदि ।
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