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सराहीय काम किया था। इसके पश्चात् भारतीय सरकारने तीन विध्वंसक जहाज प्राप्त किये इनके नाम 'सैदरहम', 'रिडाउट' और 'ऐडरबाट' को बदलकर क्रमशः 'राजपूत', रणजीत ‘और राणा' रखे गये। इसके साथ ही हन्ट श्रेणीके अन्य तीन विध्वंसक जहाज रायल नेवीसे खरीदे गये जिनके नाम गोदावरी', 'गोमती' और 'गंगा' नामक नदियोंके नाम पर रखे गये।
भारतीय नौबेड़ेकी आधनिकीकरणकी दिशामें विविध प्रकारके नवीन जहाज भी मँगवाये गये। इसमें कैयन, फ्रिगेट और सुरंग सफा करनेवाले जहाज थे। १९५७ के अन्तिम दिनोंमें 'कालोनी श्रेणीका युद्धपोत' आई० एन० एस० मैसूर शामिल हुआ । ८७०० टन वजनके इस जहाजका पूर्ववर्ती नाम एच० एम० एस० नाइजीरिया था। हमारे पास भारी सामानों, ट्रैक्टरों, बुल्डोजरों तथा अन्य बृहदाकार मशीनोंको एक स्थानसे दूसरी जगह ले जानेकी समस्याका समाधान 'आई० एन० एस० मगर' के द्वारा हुआ। इस जहाजने द्वितीय विश्वयुद्ध में भी सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया था। यह अपने तरहका भारतमें अकेला 'लीण्डग शिप टैक' नामक जहाज है।
सबसे अन्त में भारतीय बेड़े में सम्मिलित होनेवाली विख्यात जहाज आई० एन० एस० विक्रान्त है। यह २०,००० टन वजनका 'विमानवाहक' जहाज है और इसका पूर्ववर्ती नाम 'एच० एम० एस० हरकूलिस' था। मार्च, १९६१ में इसे भारतीय नौसेनाने इंग्लैंडमें बुक कराया था जो ३ नवम्बर, १९६१ को बम्बई पहुँचा। यह 'मैजिस्टिक' श्रेणीका 'विमानवाहक' है और इसे पूर्णरूपेण आधुनिकतम शस्त्रास्त्रोंसे लेस किया गया है। इस विमानमें सी० हाक 'जेट लड़ाकू विमान', बेक्वेट एलिजे' नामक टोह लगानेवाला विमान और सुरंग भेदी विमान है । यह भारतीय नौसेनाका 'फ्लेगशिप' है।
अब जहाज निर्माणको दिशामें भी भारत आत्मनिर्भर होने के लिये सचेष्ट है । पूनासे कुछ दूर स्थित खड़गवासलामें स्थित राष्ट्रीय प्रतिरक्षा एकेडमीका १९४९ में पुनर्गठन किया गया जहाँ सेनाके तीनों अंगोंके भावी अफसरोंको प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके साथ ही आई० एन० एस० शिवाजी लोनावाला ( पूनाके निकट ) में मेकेनिक प्रशिक्षण संस्थान तथा आई० एन० एस बलसुरा ( इलेक्ट्रिक स्कूल, जामनगर ) आदि में भी देशकी आवश्यकता पूरी करने में संलग्न है। इस समय कोचीनका केन्द्र सबसे बड़ा है जहाँ सभी तरहकी ट्रेनिंग की जाती है। यह केन्द्र आधुनिकतम साज सामानोंसे सुसज्जित है । अब यहाँ कामनवेल्थ तथा अन्य विदेशी राष्ट्रोंके छात्र भी ट्रेनिंग लेने आते हैं।
अब बन्दरगाहों एवं डाकयार्डों पर भी सुधार किया जा रहा है। बम्बई डाकयार्डको काफी आधुनिकतम बनाया गया है। अब यहाँ 'क्रसर एवं फ्रिगेट' के जाने की भी व्यवस्था है। मई, १९५३ में कोचीनमें 'शोर बेस्ड फ्लीट रिक्वायरमेन्ट यूनिट' स्थापित की गई थी जिसका भारतीय नाम 'आई० एन० एस० गरुड़' रखा गया है। यह युनिट बन्दरगाहोंकी समस्याओंका अध्ययन करता है। प्रारंभमें उसके पास 'सी लेन्ड' एवं 'फ्रीफ्लाई' नामक एयरक्राफ्ट ही थे पर अब इसमें वैम्पायर जेट भी शामिल कर लिये गये हैं ताकि नौसेना संबंधित हवाई ट्रेनिंग भी दी जा सके। कोचीनमें कतिपय अन्य एयर ट्रेनिंग स्कूल भी खोले गये हैं साथ ही जल-नभकी बढ़ती हुई आवश्यकताओंको पूरा करनेके लिये दक्षिण भारतके कोयम्बटूर नामक स्थान में 'आई० एन० एस० हंस' नामक एक एयर स्टेशन स्थापित किया गया था जिसे अब गोवामें स्थानान्तरित कर दिया गया है।
इस योजनाको, नौसेनिक जहाज भारतमें ही बने, प्रारंभ तो तभी कर दिया गया था जब यहां एक 'सर्वे-शिप' ( टोह लेनेवाले जहाज ), एक मूरिग जहाज एवं कतिपय 'आक्सलरी नवल क्राफ्ट' बने थे। ये सभी विशाखापट्टम कलकत्तामें निर्मित हुए थे। अब डिस्ट्रायर एवं फ्रिगेट जैसे सामरिक महत्त्वके जहाजोंको
४२ : अभिनन्दन-ग्रन्थ नाहटा अगरचन्द
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