________________
सुश्रावक श्री भँवरलालजी से शिखरजी में परिचय हुआ। जैन साहित्य और संशोधन में इनका योगदान प्रशंसनीय है । आज जब श्रुतज्ञान और उसकी रुचि कम होती जाती है तः श्रुतज्ञान की सुरक्षा के लिये, अध्ययन और संशोधन के लिये इनका प्रयत्न सराहनीय है।
__ इनकी साहित्य प्रतिभा और भी आगे बढ़े यह मंगलकामना है । जेन साहित्य में खूब आगे बढ़ें ऐसे मंगल आशीर्वाद ।
-गुनसागर सूरि दो साल से ही श्री भंवरलालजी नाहटा के साथ परिचय हुआ है। आप वयोवृद्ध होते हुए भी साहित्य के कार्य के लिये अप्रमत्त हैं । प्रथम शासन सम्राट अंचलगच्छाधिपति, तपोमूर्ति पू० गुरुदेव आचार्य भगवंत श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म० सा० रचित "विविध पूजा संग्रह" ग्रन्थ आपको भिजवाया गया तब तुरन्त ही आपने सविस्तार जवाब दिया। तब बम्बई से जन महासघ का श्री सम्मेतशिखरजी महातीर्थ के लिए छरीपालित पद-यात्रा का प्रयाण हो गया था । शिखरजी तीर्थ में गत साल चातुर्मास में आप दो बार हमारे पास दर्शनार्थ आये थे। पत्राचार अतिरिक्त प्रत्यक्ष परिचय से आपकी साहित्योपासना एवं कार्य-शक्ति से मैं प्रभावित हुआ।
पिछले कितने वर्षों से मेरे मन में भगवान श्री महावीर देव की जन्मभूमि का विवाद समाप्त करने की तीव्र मनोकामना थी। शिखरजी तीर्थ में बहुत-सा साहित्य का अध्ययन किया एवं जब इस विाय पर "अखिल भारतीय इतिहासविद् विद्वद् सम्मेलन" कराने का निर्णय हुआ तब अपने ही वल दिया कि "इस सम्मेलन से भ० मह व र देव को जन्मभूमि के लिये कुछ तथ्य प्रकाश में आयेंगे हो"। इसलिए सम्मेलन रखा गया ।
इस सम्मेलन में भारत के कोने-कोने से कई विद्वान् आये। उनमें जेन एवं जनेतर विद्वान् भी थे। बिहार के पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी थे । सम्मेलन के दूसरे दिन पू० जनाचार्य श्री अंचलगच्छाधिपति श्री की अध्यक्षता में आप ही मुख्य अतिथि थे। भ० महावीर देव की जन्मभूमि क्षत्रियकुण्ड तीर्थ है वेशाली नहीं है-इस विषय पर आपने अपना जाहिर प्रवचन दिया। उसका बहुत ही प्रभाव पड़ा। तीसरे दिन भारत एवं बिहार के सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ विद्वान् डा० राधाकृष्ण चौधरी ने सर्वानुमत से प्रस्ताव पारित किया कि बिहार के मुगेर जिले में स्थित लछुवाड के पास क्षत्रियकुण्ड में भगवान महावीर देव का जन्म हुआ था। विशेष के लिये इस सम्मेलन की स्मारिका दृष्टव्य है। इस समय बम्बई युनिवर्सिटी के गुजराती विभाग के अध्यक्ष डा. रमणलाल शाह एवं दिल्ली के बहुश्रुत विद्वान् हीरालालजी दुगड़ भी आपकी साहित्यकीय प्रतिभा से प्रभावित हुए थे।
श्री भंवरलालजी नाहटा का सम्मान करते समय यह बात ध्यान में रखें कि श्री भंवरलालजी नाहटा एवं स्व० अगरचन्दजी नाहटा के आज दिन तक विविध सामयिकों अखबारों में जो लेख प्रकाशित हुये हैं उन सबका शीघ्र ही संचय ग्रन्थ प्रकाशित हो । कई स्मृति ग्रन्थों में भी आपके लेख बिखरे हुए पड़े हैं। इन सबका भी उस संग्रह में संकलन हो जाए, ताकि आनेवाली पीढ़ी के लिये वह लेख-संग्रह ज्ञानमाता रूप प्रतीत हो एवं शोधकार्य में सहायक बने ।
श्री भंवरलालजी नाहटा दीर्घायु निरामय स्वस्थ प्रसन्न रह कर बहुत दिनों तक जैन साहित्य की सेवा करें ।
-कलाप्रभसागर गणि
२]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org