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माँ सरस्वती के वरदपुत्र, महान ज्ञानोपासक श्री भंवरलालजी नाहटा की जीवन-झांकी के दर्शन पाकर ऐसा लगा कि केवल पांचवीं कक्षा पास विद्यार्थी श्री नाहटाजी वास्तव में जन्म-जात स्वयंबुद्ध हैं, अपूर्व आमा-युक्त महापंडित हैं। आप संस्कृत, प्राकृत आदि अनेक भाषाओं; चित्रकला, मूर्तिकला आदि अनेक कलाओं; ब्राह्मी-गुप्त आदि अनेक लिपियों के पूर्ण ज्ञाता हैं. महान साहित्यकार हैं, तत्ववेत्ता, इतिहासवेत्ता, महान् चिंतक. महाकवि हैं। जिनशासन के रसिया हैं, सच्चे पुजारी हैं।
-शांतिलाल जैन 'नाहर', होशियारपुर, पंजाब
आप साहित्यिक एवं इतिहासज्ञ तो हैं ही. आपको कई लिपियों का भी ज्ञान है। जो लिपि पढ़ने में विज्ञ अपने को असमर्थ पाते हैं उसे आप उस लिपि के संकेत तैयार कर इतना स्पष्ट पढ़ देते हैं जैसे कोई अपनी मातृभाषा (लिपि) पढ़ता हो।
आपमें मैंने एक विशेषता यह देखो कि आपको मातृभूमि का अधिक गौरव है। मारवाड़ से जब कोई बाहर अर्थ उपार्जन के लिये जाता था, तब बुजुर्ग यह हितशिक्षा देते थे--भाया देश छोड़े पण, वाणी, पाणी (गौरव), रहेणो (वेषभूषा) मत छोड़े। यह तीनों बातें आपके जीवन में प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। इस दिशा में मातृभूमि का गौरव रखने वाले विरले ही मिलेंगे।
-भीखमचंद मुणोत
श्रीमान् नाहटाजी से मेरा घनिष्ठ पारिवारिक सम्बन्ध होने के साथ-साथ व्यक्तिगत भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। किसी भी साहित्यिक एवं सामाजिक कार्य के लिये मैंने आज तक आपके मुंह से 'नहीं' शब्द नहीं सुना । क्योंकि आपके शब्दकोष में नहीं अथवा असम्भव शब्द है ही नहीं। जिस किसी भी कार्य को आपने हाथ में लिया उसे निष्ठापूर्वक पूरा किया । आपको अनेकों भाषाओं का ज्ञान है। अभी कुछ दिन पूर्व की बात है कि श्रद्धेय मुनिवर महोपाध्याय चन्द्रप्रभसागर जी म० सा० अपनी एक काव्य-पुस्तिका का आद्योपान्त हिन्दी से राजस्थानी में अनुवाद करवाना चाहते थे । इसके लिए उन्हें श्री नाहटाजी से उपयुक्त कोई व्यक्ति न लगा। संयोग की बात है कि पूज्य मुनिवर ने मुझे यह पुस्तक नाहटाजी से अनुवाद करवाने के लिये दी। श्री नाहटाजी ने सहर्ष पुस्तक ले ली। एक सप्ताह के उपरान्त मने श्री नाहटाजी को याद दिलाया। तब उन्होंने कहा कि अनुवाद आज कर दूंगा। मैंने सोचा कि १०० पृ काव्य-पुस्तिका के अनुवाद में एक सप्ताह का समय अवश्य लगेगा। अतः एक सप्ताह बाद पुनः श्री नाहटा कहँगा। किन्तु अगले ही दिन प्रातः श्री नाहटाजो ने मुझे मूलकाव्य पुस्तिका व उसका राजस्थानी भाषा में एक डायरी में लिखकर मेरे हाथ पर दिया। मैं आश्चर्य के साथ सोचने लगा कि इतनी वृद्धावस्था में कर्तव्य निष्ठा है इनमें ? विनम्र, शान्त-स्वभावी, सहिष्णु और मृदुभाषी श्री नाहटाजी गुण-रत्नों श्रीमान नाहटाजी के विषय में साधारण सा व्यक्ति भी एक स्वतन्त्र ग्रंथ लिख सकता है। श्री नाहटाजी अनेक दशकों तक समाज, देश. साहित्य, धर्म की सेवा करते हुए हम सबके बीच रहें इस शुभ मंगल कामना के साथ मैं श्री नाहटाजी का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
-प्रकाशकुमार दफ्तरी, कलकत्ता
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