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प्रतिभा के कारण हेमचन्द्र 'कलिकाल सर्वज्ञ' से सम्बोधित
हुए।
हेमचन्द्र का बहुमुखी व्यक्तित्व महान है । आपके 'सिद्ध हेम शब्दानुशासन' ( व्याकरण ) के अतिरिक्त 'लिंगानुशासन' (व्याकरण), 'संस्कृत द्वयाश्रय' ( महाकाव्य ), 'प्राकृत द्वयालय' या 'कुमारपाल चरित' (महाकाव्य ), 'काव्यानुशासन' (अलंकार), 'छंदोऽनुशासन' (छंद शास्त्र), 'अभिधान चिन्तामणि' (कोष), 'अनेकार्थ संग्रह' (कोष), 'देशीनाममाला' (कोष), 'निघंटुकोष'(वैद्यक कोष), 'प्रमाण
मीमांसा' (न्याय), योगशास्त्र','त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र' अपभ्रश वैयाकरण हेमचन्द्र
(महापुराण) आदि अन्य अनेक ग्रन्थ३ विविध विषयों का के दोहे
निरूपण करते हैं। अपने व्याकरण में जनसाधारण में
प्रचलित दोहों को उदाहृत करके आपने लोक साहित्य की -डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', अलीगढ़
महान सम्पत्ति की सुरक्षा की है साथ ही अपभ्रश काव्य पाणिनी की कोटि के महान वैयाकरण होते हुए हेम
का 'दोहा' काव्यरूप के स्वरूप समझने की प्रामाणिक
सामग्री प्रस्तुत की है। दोहा या दूहा अपभूश का लाडला चन्द्र काव्य-प्रणयन में भी किसीसे पीछे नहीं रहे। वे अपभ्रश के ही नहीं संस्कृत और प्राकृत के भी कवि कोविद
छंद है।५ हेमचन्द्र के दोहे अपभ्रश काव्य में महनीय
हैं।६ साहित्यिक सौन्दर्य से सम्पृक्त आपके दोहे अपभ्रंश थे। एक व्यक्ति में ऐसी विरोधी रुचियों का समन्वय
साहित्य में निरुपमेय निधि है। वस्तुतः अपभृश वाङ्गमय विलक्षण है। असाधारण प्रतिभा के धनी हेमचन्द्र का । आरम्भिक नाम चंगदेव था। जैनदीक्षा ग्रहण करने के
के हेमचन्द्र आधार स्तम्भ हैं । पश्चात् आपका नाम हेमचन्द्र पड़ा। आप श्वेताम्बर जैन हेमचन्द्र द्वारा उदाहृत दोहों का सरसता, भाव-तरथे और गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज एवं उनके लता एवं कलागत सौन्दर्य की दृष्टि से 'गाथा सप्तशती' भतीजे कुमारपाल के समसामयिक प्रतिष्ठित पण्डित थे। के समान ही मूल्य है। इन दोहों में निसर्ग-सिद्ध काव्यत्व आप अधिकतर समय अन्हिलवाड़ में रहे ।' आपका समय की गरिमा निहित है। विषयवस्तु की दृष्टि से ये दोहे संवत् ११४५ से सं० १२२६ तक का है। अपनी प्रखर वीरभावापन्न, शृगारिक, नीतिपरक, अन्योक्तिपरक, वस्तु
१ अपभ्रश साहित्य, हरिवंश कोछड़, पृष्ठ ३२१ । २ (क) हिस्ट्री आफ मिडीवल हिन्दू इन्डिया, भाग ३, पृष्ठ ४११ ।
(ख) जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ ४४८ । ३ (क) काव्यानुशासन की भूमिका, रसिकलाल पारीख, पृष्ठ २६१ ।
(ख) अपभूश पाठमाला, प्रथम भाग, नरोत्तमदास स्वामी, पृष्ठ ६३ । ४ हिन्दी साहित्य की भूमिका, डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृष्ठ १३ । ५ (क) अपभ्रंश भाषा और साहित्य, डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन, पृष्ठ ११७ ।
(ख) जैन साहित्य की हिन्दी साहित्य को देन, श्री रामसिंह तोमर, प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ ४६८ । ६ आदिकालीन हिन्दी साहित्य शोध, डॉ० हरीश, पृष्ठ १५ ।
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