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________________ भी कर्म का लेश्या के रूप में विपाक का प्रतिपादन नहीं (३) कापोतलेश्या अशुद्ध क्लिष्ट हुआ है। एतदर्थ योग परिणाम को ही लेश्या मानना (४) तेजस लेश्या शुद्ध । अक्लिष्ट चाहिए ।२२ उपाध्याय विनय विजयजी ने लोक-प्रकाश में (५) पदम लेश्या शुद्धतर अक्लिष्टतर इस तथ्य को स्वीकार किया है । २३ (६) शुक्ललेश्या शुद्धतम अक्लिष्टतम भावलेश्या आत्मा का परिणाम विशेष है, जो संक्लेश प्रस्तुत अशुद्धि और शुद्धि का आधार केवल निमित्त और योग के अनुगत है। संक्लेश के जघन्य, मध्यम, ही नहीं अपितु निमित्त और उपादान दोनों हैं। अशद्धि उत्कृष्ट ; तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम ; मन्द, मन्दतर, मन्दतम का उपादान कषाय की तीव्रता है और उसके निमित्त आदि विविध भेद होने से भाव लेश्या के अनेक प्रकार हैं; कृष्ण, नील, का पोत रंगवाले पुद्गल हैं और शद्धि का तथापि संक्षेप में उसे ६ भागों में विभक्त किया है । अर्थात उपादान कषाय की मन्दता है और उसके निमित्त रक्त, मन के परिणाम शुद्ध और अशुद्ध दोनों ही प्रकार के होते पीत और श्वेत रंग वाले पुद्गल हैं। उत्तराध्ययन में हैं और उनके निमित्त भी शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार लेश्या का नाम, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, के होते हैं। निमित्त अपना प्रभाव दिखाता है जिससे स्थान. स्थिति, गति और आयु इन ग्यारह प्रकार से मन के परिणाम उससे प्रभावित होते हैं। दोनों का पार लेश्या पर चिन्तन किया है । २६ स्परिक सम्बन्ध है। निमित्त को द्रव्यलेश्या और मन के ___आचार्य अकलंक ने तत्त्वार्थराजवार्तिक २७ में लेश्या परिणाम को भाव लेश्या कहा है। जो पुद्गल निमित्त बनते हैं, उनमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श सभी होते हैं पर (१) निर्देश (२) वर्ण (३) परिणाम (४) संक्रम तथापि उनका नामकरण वर्ण के आधार पर किया गया (५) कर्म (६) लक्षण (७) गति (८) स्वामित्व (६) साधना है। सम्भव है गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा वर्ण मानव . (१०) संख्या (११) क्षेत्र (१२) स्पर्शन (१३) काल को अधिक प्रभावित करता है। कृष्ण, नील और कपोत (१४) अन्तर (१५) भाव (१६) अल्प बहुत्व इन सोलह प्रकारों से चिन्तन किया है। ये तीन रंग अशुभ हैं और इन रंगों से प्रभावित होने वाली लेश्याएँ भी अशुभ मानी गयी हैं और उन्हें अधर्म-लेश्याएं जितने भी स्थल परमाणु स्कन्ध हैं वे सभी प्रकार के कहा गया है ।२४ तेजस्, पद्म और शुक्ल ये तीन वर्ण रंगों और उपरंगों वाले होते हैं। मानव का शरीर स्थूल शुभ हैं और उनसे प्रभावित होने वाली लेश्याएँ भी शुभ स्कन्ध वाला है। अतः उसमें सभी रंग है। रंग होने हैं। इसलिए तीन लेश्याओं को धर्म लेश्या कहा है ।२५ से वह बाह्य रंगों से प्रभावित होता है और उसका प्रभाव अशुद्धि और शुद्धि की दृष्टि से ६ लेश्याओं का वर्गी- मानव के मानस पर भी पड़ता है। एतदर्थ ही भगवान करण इस प्रकार किया है महावीर ने सभी प्राणियों के प्रभाव व शक्ति की दृष्टि से (१) कृष्ण लेश्या अशुद्धतम क्लिष्टतम शरीर और विचारों को छः भागों में विभक्त किया है (२) नीललेश्या अशुद्धतर क्लिष्टतर और वही लेश्या है। २२ (क) न लेश्या स्थिति हेतवः किन्तु कषायाः लेश्यास्तु कषायोदयान्तर्गताः अनुभाग हेतवः अतएव च स्थिति पाक विशेषतस्य भवति लेश्या विशेषण । -उत्तराध्ययन, ३४, पृ० ६५० । (ख) प्रज्ञापत्ता, १७, पृ० ३३१ । २३ लेसाणां निक्खेवो च उकओ दुविहो उ होई नायव्यो। -लोक प्रकाश, ५३४ उत्तराध्ययन, ३४/५६ । उत्तराध्ययन, ३४/५७ । २६ उत्तराध्ययन, ३४/३ । २७ तत्त्वार्थराजवार्तिक, १६, पृ० २३८ । ४० ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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