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________________ की दूकान, 'कोटवाली चौतरो बड़ो', बौहरां रो बाजार, मणियारी वाजार, पंसारी बाजार, हुँबड़ों का दिगम्बर जैन मंदिर खरतगरच्छीय वासुपूज्यजी का प्राचीन मंदिर, इकलिंग दास चोल्या की वैठक, बजाजी बाजार, 'मंदिर तलारी माता रो'. दिगंबरी मन्दिर, मोची बाजार, जोशी चतुर्भुज जी का घर, सोना रो वाजार, अग्रवालों का जैन मन्दिर, ताँबा री टकसाल ( पइसा पडै छे ). 'कुंड बहाँ जी राजा रौ' हैं । फिर फौज, मुसाहित, गजारूढ़ काप साहब आदि साथ चल रहे हैं। आगे कोटवाली का चोतरा और मंडही (चुंगी) का चौक दिखाया गया है। पुरुपों और स्त्रियों का समूह नगर में पधारने के लिये प्रस्तुत सूरि महाराज के स्वागत.र्थ जा रहा है। वीच में फूटा दरवाजा मी आया । है । वड़ो पोल से दिल्ली दरवाजे तक के चित्र ३२।। फुट में बने हैं। कई दूकानों के बाद दिल्ली दरवाजा आ गया है। अब वड़ो पोल की बाईं ओर के स्थानों में से जिनका नामोल्लेख चित्र में हुआ है उनका निर्देश किया जाता है। कोठार, राजपूजनीक जगन्नाथराय मंदिर, नीरूघाट का रास्ता, फिर कई मकानों के बाद चंद्रप्रभु जी का जैन मंदिर, कुऔर पदे के नए महल, टकसाल रूप्यारी' ( रुपयों की टकसाल ), शतलनाथ जी का मंदिर, तपों का उपाश्रय, जगरूपदास कांकरिया की दूकान, आणंदराम नाहटा, माण(क) चौक में नगरसेठ वेणीदासजी की दूकान, 'वहोतणी (?) चोतरो सायर', पसारी बजार, बजाजी बाजार, रंगरेजी बाजार, 'मसीत खेराखाँ री', मंदिर संडेरगच्छ रो, जैनमंदिर ( नाम घिसा), मोची बाजार, 'मंदिर जोसी.जी रो, दुढियों की उपाधशाला (स्थानक ), खंडेलवालों का मंदिर, सायर, महेश्व रयों का मंदिर, भैरू स्थान, खरतर भट्टारक शाखा का उपाश्रय (मंडी में), ऋषभदेवजी का मंदिर' खरतरगच्छ का (मंडी में). 'सहेल्या-दरोगां-पंचोल्यां रो मंदिर'.मेससज रो मन्दिर (?)। इसके पास ज्वालामुखो तोप लगी हुई है। सामनेवाली सड़क के किनारे भी तोप है । यहाँ फिर दिल्ली दरवाजा आ गया है। अब मध्यवर्ती भाग का संक्षिप्त विवरण दिया जाता है। हाथी, घोड़े, ऊँट, घुड़सवार, पैदल, पालकी, रथ, पनिहारी, मजदूर, संन्यासी, पथिक इत्यादि सर्वत्र दिखाए गए हैं। साग बाजार में बैठी हुई मालिने सब्जी बेच रही हैं। महाराणा की लंबी सवारी दिखाई गई है जिसमें महाराणा हाथी के हौदे पर विराजमान हैं। आगे-पीछे दरव जे के वाहरी भाग में उसकी दाहिनी ओर भट्टारक जी की वाड़ी. साजी फकीर का तकिया, 'वालकदास री जागा' (हनुमान मन्दिर ). 'तालाई भिखारी नाथ री', 'छावणी फिरंगी री', 'साहब रो दंगलो' हैं। वाई ओरउ (?) जागर जी को मंदिर, चेलां रो मंदिर, दादू पंथियों री जागा. मंदिर पंहड़ो रो, तथा दादावाड़ी नवी है ! संलग्न दादावाड़ी के वाग में सूरि महाराज पधारे हैं और बहुत से श्रावक एवं श्राविकाएँ वैठी हुई दर्शन-पूजन वदंनादि कर रही हैं। बाग के वाहर रथ. पालकी आदि वाहन खड़े हुए हैं। दिल्ली दरवाजे के बाहर रास्ते में बहुत से यति. श्रावक, वाजिव वजानेवाले, सिंगारे हुये घोड़े, हाशी, राजकीय सेना, नागरिक इत्यदि सूरिजी के स्वागतार्थ उपस्थित हैं। यहाँ ७ फुट तक विज्ञप्तिपत्र समाप्त हो जाते है ! इसके पश्चात् ४||! फुट में विज्ञप्तिलेख और ३ फुट में उदयपुर के प्रतिष्ठित श्रावक-समुदाय के वंदना-निर्देशात्मक हस्ताक्षर है । विस्तारभय से समग्र लेख उदधृत न कर यहाँ केवल अवश्यक अंश दिया जाता है। ....श्रीमद्विक्रमपुर नगरे सुस्थाने पूज्याराध्य .... श्री श्री जिनहर्ष सूरिश्वरान् श्री उदयपुर थी सदासेवग आज्ञाकारी लिखतं समस्त श्री संघ की त्रिकाल वंदना अवधारसी जी । अत्र श्री केशरियानाथ जी महाराज प्रसादे सुख शांति छै । श्री जी महाराज रा सदा सुख आणंद री घड़ी सदा सर्वदा चाहीजै जी । आप मोटा हो बड़ा हो उदयपुर नः श्रीसंघ माथै सदा कृपा सुदृष्टि रखावो जिण ४८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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