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६४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
[अपनी दासी को चुराकर ले जाने वाले उज्जयिनीनरेश चंडप्रद्योतन पर विजय कर उसे बन्दी बना कर अपनी राजधानी वीतभय-पाटन की ओर ले जाते समय मार्ग में आए
हुए सांवत्सरिक पर्व पर राजा उदायी-] बार-बार मुझ अरजी ऐसी, सुण लीजो महिपत ! सारी । अाज संवत्सरी पर्व मनोहर, श्राप खमावो हितकारी । बार-बार । चार आहार तज अष्ट पहरिया, पौषध व्रत लीधो धारी। वैर-विरोध तजी समभावे, खत्ता माफ करो म्हारी । बार-बार । चण्ड प्रद्योतन भूप न माने, किम बोलो तुम अविचारी । नजर कैद कर दासीपति को, विरुद दियो है बदकारी । बार-बार । धन्य-धन्य जग में राय 'उदाई', पूरण समता-रस-धारी।
श्राप कयो (सो) मंजूर सरब है, क्षमत क्षामणा किया भारी । बार-बार । नोट-स्वामीजी महाराज ने अनेक रचनाएँ की थीं, उनमें कुछ उपलब्ध हुई हैं, वे यहाँ दी गई हैं. वे कभी अपनी
रचना पर अपना नाम नहीं लगाते थे.
स्वामीजी के वर्षावास नागौर - वि० सं०१६ सौ-५४, ८१, ८५, २००२. व्यावर - वि० सं० १९ सौ-६६, ७६, ७७, ८३, ८६, ८६,६५, ६६, २००७, ८, १६. तिंवरी -
वि० सं०१६ सौ-५६, ६२, ६४, ७०, ७३, ७७, ८४, ८७, ६२, २००६, २०१५. जोधपुर -- वि० सं० १६ सौ-६१, ६१, २०००, २०१४. पाली - वि० सं० १६ सौ-६६, ७१, ७४, ८०, ६३, ६७. जयपुर - वि० सं० १६ सौ ६०, २०१२. हरसोलाव- वि० सं० १६ सौ-५५, ५८, ६७, ७८. मेड़ता - वि० सं०१६-सौ-६६, २०१७. कालू - वि० सं० १९ सौ-५६. विसलपुर - वि० सं० १६ सौ-६३. डेह - वि० सं० २००३. भोपालगढ़-वि० सं० २००५. विजयनगर–वि० सं० २००६. अजमेर - वि० सं० २०१०. नोखा - वि० सं० २०१३. कुचेरा - वि० सं०१६ सौ-५७, ६०, ६५, ६८, ७२, ७५, ८२, ८८,६४, १८, २००१२००४, २०११,१०१७.
- वि.सं वि० सं० १९ सौ के ५४ से ८५ तक गुरु महाराज के साथ और शेष वर्षावास स्वतंत्र.
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नोट
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