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________________ Jain Lootram ६२० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : तृतीय अध्याय शब्द' का प्रयोग किया गया है, भाष्यकार महीधर ने जिसका अर्थ- 'उच्छृंखल आचरण' किया है. इसके अतिरिक्त उनके धनुष तथा तरकस को 'शिव' कहा गया है. उनसे प्रार्थना की गई है कि वह अपने भक्तों को मित्र के पथ पर ले चलें, न कि भंयकर समझे जाने वाले अपने पथ पर भिषक् रूप में उनका स्मरण किया है और मनुष्य तथा पशुओं के लिये स्वास्थ्यप्रद भेषज देने के लिये भी उनसे प्रार्थना की गई है. यहाँ रुद्र का 'पशुपति' रूप में भी उल्लेख मिलता है. 3 यजुर्वेद के ' त्र्यम्बक होम' सूक्त में रुद्र के साथ एक स्त्री देवता 'अम्बिका' का भी उल्लेख किया गया है, जो रुद्र की बहिन बतलाई गई है. इन्हें 'कृत्तिवासा' कहा गया है और मृत्यु से मुक्ति तथा अमृतत्व की प्राप्ति के लिये प्रार्थना की गई है. उनके विशेष वाहन मूषक का भी उल्लेख किया गया है तथा उन्हें यज्ञभाग देने के पश्चात् 'मूजवत' पर्वत से पार चले जाने का भी अनुरोध किया गया उपलब्ध होता है. मूषक जैसे धरती के नीचे रहनेवाले जन्तु से उनका सम्बन्ध इस बात का द्योतक हो सकता है कि इस देवता को पर्वत कन्दराओं में रहनेवाला माना जाता था तथा "मूजवत" पर्वत से परे चले जाने का अनुरोध इस बात का व्यंजक हो सकता है कि इस देवता का वास भारतीय पर्वतों में माना जाता था. "कृतिवासा" उपाधि से प्रतीत होता है कि उसका अपना चर्म ही उसका वस्त्र था --- अर्थात् वह दिगम्बर था. " शतरुद्रिय स्तोत्र" में रुद्र की स्तुति में ६६ मंत्र हैं, जो रुद्र के यजुर्वेदकालीन रूप के स्पष्ट परिचायक हैं. रुद्र को यहां पहली बार 'शिव' शिवतर' तथा 'शंकर' आदि रूपों में उलिखत किया गया है. 'गिरिशंत' 'गिरित्र' 'गिरिशा' 'गिरिवर' गिरिशप इन नवीन उपाधियों से भी उन्हें विभूषित किया गया है. 'क्षेत्रपति' तथा 'वणिक' भी निर्दिष्ट किये गये हैं. प्रस्तुत स्तोत्र के वीस से वाईस संख्या तक के मन्त्रों में रुद्र के लिये कतिपय विचित्र उपाधियों का प्रयोग किया गया है. अब तक रुद्र के माहात्म्य का गान करनेवाला स्तोता उन्हें इन उपाधियों से विभूषित करता है - स्तेनानां पति ( चोरों का अधिराज ), वंचक, स्तायूनां पति [ ठगों का सरदार), तस्कराणां पति, मुष्णतां पति, विकृन्तानां पति (गलकटों का सरदार) कुलुचानां पति आदि इसके अतिरिक्त इनमें 'सभा' 'सभापति' 'गण' 'गणपति' आदि के रूद्र के उपासकों के उल्लेख के साथ 'व्रात, ' 'व्रातपति', तक्षक, रथकार, कुलाल, कर्मकार, निषाद, आदि का भी निर्देश किया गया है. - ब्राह्मण ग्रंथों के समय तक रुद्र का पद निश्चित रूप से अन्य देवताओं से ऊँचा हो गया था और वह 'महादेव' कहा जाने लगा था. " जैमनीय ब्राह्मण में कहा गया है कि देवताओं ने प्राणीमात्र के कर्मों का अवलोकन करने और धर्म के विरुद्ध आचरण करनेवाले का विनाश करने के उद्देश्य से रुद्र की सृष्टि की. रुद्र का यह नैतिक उत्कर्ष ही था, जिसके कारण उनका पद ऊंचा हुआ और जिनके कारण अन्त में रुद्र को परम परमेश्वर माना गया. श्वेताश्वतर उपनिषद् से स्पष्ट है कि ब्राह्मण ग्रन्थों के समय से रुद्र के पद में कितना उत्कर्ष हो चुका था. इसमें उन्हें १९. वही : (वाजसनेयी संहिता) ३६, ६, तथा महीधर का भाष्य-दुष्टं स्खलनोच्छलनादि व्रतम् २. वही : (तैत्तिरीय संहिता) ४, ५, १ ३. वही : (तैत्तिरीय संहिता) १, २, ४ ४. वही : (तैत्तिरीय संहित) १, ८, ६. (तैत्तिरीय) १, ८, ६. ५. वही (वाजसनेयी संहिता) ६, ३, ६, ३, ६, ८ ६. यजुर्वेद (तैत्तिरीय संहिता) १, ८, ६ ( वाजसनेयी) ३, ५७, ६३. ७. वही : (तैत्तिरीय संहिता) ४, ५, १. ८. कौशीतकी २१, ३. ६. जैमिनीय ३, २६१, ६३. pares brary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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