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मुनि कान्तिसागर : लोकाशाह की परंपरा और उसका अज्ञात साहित्य : २४५
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रवि मुनि रचित
आचार्य श्री केशवजी ऋषि भास
श्री
केशवजी
गुणधार ।
संसार || गुरु गुण १ ।। गणधार ।
सुषकार ।। गु० २ ।। हितकार ।
गुरु गुण गाईये रे प्रबल प्रताप पुबे जैनो सह जाणई श्री जिनवर पाटि सुषकारी जिम सोहम तिम श्रीज्ये क्रमसीह पटोवर दुषहरण सुमति गुपति गुण अंगइ सोभित षट्जीवन कुमति मिथ्यात्व तिमिर दल चूरण नेम जाणइ दिनकार | गु० ३ ॥ सुरपत्य वाहण अरि कुण कहिये सामिनी तस भरतार | मुष मंडण बांधव मुत पेत्ती सा सोहइ मृषि जिम जगती धरतीपते तिम गुरु गुण गंभीर सीहने • ताकुले कीरतीकारी नवरंग देउरे अवतार ॥ गु० ५ ॥ जनपद मांहि सोहइ जिम मरूधर जायतारणें जयकार ।
सार ॥ गु० ४ ॥
उदार ।
संघ सवे दरसण इम बंछइ कोईल जिम सहकार ॥ गु० ६ ॥ जिहां लगी उडुपति दिनकर तिहां लगे प्रतपो श्रीगुरु सार । मानू दास सेष गुण श्रीगुरुना रिवमुनि कहइ अपार ॥७॥
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राजसिंह रचित केशवजी भास (अपूर्ण)
श्री सूरती.. श्री सूरति नयर सिणगार ||५|| बोहरा भी वीरजी संघ शिरोमणि, पुण्यवंत बहु परिवार। श्री पूज्यजी नो वचन विचारी, करिय पद महोछव सुविचार || ६ || अनुक्रम गुरु विहार करता, गुजर मरुधर सार । मेदपाट मालवनइ सोरठ, सिंघ संतोषी सुविचार ||७|| सूरति नगरि सिंघ सिरोमणि, वोहरा सुत बहु परिवार । श्री सि........ सेवा करइ गुरु नी, दिन-दिन अधिक आनंद ||८|| मन सुधइ सेवा करतां सदा पामइ परमानन्द | सेवा करइ सद् गुरु नी साह पुनसी गुण निवास || ६ || साह कर्मचन्द नी वीनती ए भास रचि अति उल्लास । श्रीपुण्यजी केशवजी गुणागुर बहु गणां निवास । तास सेवक राजसिंह इम जंपइ आंणी अंगि उल्लाहास । लि० ऋषि वस्तपाल । बाई मेघवा पठनार्थं ।
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