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२४४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-प्रन्थ : प्रथम अध्याय
ईग्यार अंग बार उपांग च्यार मूल देखी ए। सिद्धांत सार व्रत धार साध व्रत पेखी ए॥ चलंत मतिज्ञान वंत पाप दुरि छेद ए। करती लील सुध सील आठ कर्म मोडी ए ॥ अमा मुणंद सुषकंद भवि जीव लोडी ए। अनार बीज दंत दंतरीह जेम लंक ए॥ षमा दया सुरग सत राग मेंडी दिए । चलंत सत चाल दोष नाग हंस संक ए॥ सुचिल चिल कामगार ध्यान ईसरो। समेर मान इंद्रराज पूज्यजी मुनीसरो॥ रूप पेहे हीर गंगनीर कामनाथ संक ए। दामोदरा महा मुणिद सान पान रंग ए॥
दुहा
जातवंत कुलवंत लज्जावंत दयाल । त्रिनें वंत सरूप तन लाघव सगुण मयाल ।। जिनसासन उद्योत कर वहुश्रुत बहु परिवार । मन मोहन गुण आगलौं जिनसासन सिणगार ॥
छंद त्रिभंगी उदय-उदय जिणंद देव सारत सुरद सेव । मानसूते नितमेव हरष भरे मंडल अधिकवान ॥ सरज धरे अचल मांण मुणंद छाजत गणि प्रधान तपहुं निधान । काग दी घनो बलद सो हम कीधो जिणंद धरम धरै । सेवो-सेवो है सवें गुरू पाय दुहवो दरग जाय संपत सत थाय विविध पर । कीधो काहुसु गुरू गुरूं उदधि सुग्यांन धरूं सुकृत करूं मुसर सरे । कीधो काहुं इंदराज सारित्त भपिक काज धरम पान सरग सरो। कीधो काहुं रामचंद काम धूरि कंद भारत भरम कंद पवन पुरो॥ कीधो काहुं गंगाजल टारत करम मल कीधो काहुं बल ध्यान धरूं । कीधो जगदीश पुरित जग जगीश सकम विषम बीस अनहरे ।।
___ सोवन-सोवन वानि छाजित गणि प्रधान अमृत सरे जब लगी शशी सूर गाजत उदधि पुर सुगुरूं सेवक भ्रम उर-हेस जिमानसर प्रेम भरै। प्रेषत सुगुरु मुष पावन अनंत सुष मेटत दूरे सुष परसपरे ।
कलस सीयल सिद्ध दातार दुरित दारिद विहंडण । लुकागच्छ सिणगार कुमति मिथ्यामति पंडण । आचार्य गुणवंत पूज्य दामोदर सूणीएं । तस सासन गुणधार सगुरूं म रषि सुष संपति तिनको वरणी। सतीच'द साध सदगुरूं अचल जा दानी करति सीहर घरणी ।।
इति दामोदर छंद
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