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२४० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
जनम महोच्छव जन सवि पोषि रूपसिंह नाम उदार । गुण सागर गंगा जलनी परि निरमल नाण अपार ।। बालपणि बहु बुद्धि मनोहर वाणी अमीय रसाल । हाटक ऊपरि हार विराजइ दिनकर तेज झमाल ।। वचन सुधारस सरिषा सांभलि श्रीगुरुजी ना सार । मेघ तणी परि मोटि महोछवि आदर्यो उत्तम भार ।। जनम नगर वींझेवि दीपि पुन्यवंत बहु परिवार। गुंदवच नगरि सोह चडावी लीधोय संजम भार ।।
राग धन्यासी संवत सोल रसाल अब्द पच्योत्तरी जाणीइ ए। मिंगसिर सुदि गुरुवार दस-दोइ तिथि वषाणीइ ए॥ दिष्या देइ सार जसवंतजी जयकारीया ए। वंदावि मारुयाडि गुज्जर देसि पधारीया ए ।। विचरइ श्रीमुनिराइ भवि जननि प्रतिबोधता ए। साथि श्रीरूपसिंह बहु परिवारि सोभताए । हालार सोरठ देस बिहार करी वंदावीया ए। लाभ तणि लेइ कोडि अनुक्रमि गुज्जर आवीया ए।। श्रीपूज्य जसवत पद योग्य रूपसींह परषीया ए । अहिमदपुर मझारि संघ समिष्यई हरषिया ए॥ संवत ससि रस सार असीय ऊपरि आठ आगना ए। मिगसिर सुदि सोमवार श्राठिमें तिथि गुरु गुणनिला ए॥ दे पदवी मुनि पाल अमृत वाणी उचरइ ए। सारु' आतम काज भव जल निधि जीव निस्तरइ ए ।।
ढाल जलही नी वचन सुणी गुरु तणां रूपसींहजी इम बोलि । जयवंता संघ नायक विचरो जिम जिन तोलि ॥ जसवंतजी जयकारीया गुण निधि गुणह भंडार । पट्टोधरनि बुझवी अणसण उचर इ सार ।। तेह जसवंत जाणीइ मिंगसिर सुदि सोमवार । पुनिमि तिथि अति निरमली अणसण कीधो उदार ।। षमाय षमावी संघनि वलीय वचन इम बोलि । सिद्ध थया सवि माहरा चितव्या सुरतरु तोलि ।। युगप्रधान रूपसाह ना करयो बहुला जतन । पट्टोधर नी आगिना धारयो जेम रतन ।। इम अनेक शिष्या कही धरीय परम शुभ ध्यान । आठ पहोर अणसण करी पामीया अमर बिमान ।। एहवा गुणवंत गुरु तणां नाम जपि नर-नारी । इह भवि सुष संपद लहि परभवि शिव सुषकारी ॥
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पाएका
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