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२३८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
भज भले संयम लीधो भार षरी विधि चालि पंडाधार । वस्तु वड शास्त्र जाणे वेद भला कवि पात्रां वाला भेद ।। सदा लगी सायर जेम सधीर हवेइ तेणी कोय न लापि हीर । भुजे जसराज भलायो भारि अनोपम आज बडो अणगार ।। पीथावत पंचमुषा पाणी भलो गह लूंके ऊंगो भाण । मानि तुझ आंण वडा मुनिराय भलपण चारित्र हे कण भाय ।। भुजे जसराज भलायो भार सोहे अंगि सील तणो सणगार । पूर्व छाइ सील तो अगि सासतो साचो कियो सनाह । पेथाउत बेहु पषि सहो जम करइ सराह । परबत सुत मोटो पुरुष करणी उत्तम कीध । रूडा श्रीरूपसीह नी पदवी परतग दीध ।। अविचल मूरति अष्टमी मागसिर सुद सोमवार । वडा वडा मलिया बरंद भूज गछि लोप्या भार ।। भूज भार सोप्यो गछनायक रूपं वधीयो रूपसी । प्रथीराज समम पेष पदवी जगत्र सह कालि जिसी ।। वे हो राय वसंत दोन वांचे लाह संयम नित्य लीयें । प्रभात श्रीरूपसींह प्रणमें वडो मुनिवर वंदिये ।। गाइ जगो तिम किना गुण धर पाप सघलां परहरि । देषिइं दरसण हु ऋतना सिषरि धरम बे पषि षरो।। थाचो थूलभद्र जांणि चाउ जस चरि नंदिये । परभाति श्रीरूपसींह प्रणमें । बाल ब्रह्मचारी विरूद मोटो घार पग पंडा धरै। बावीस परीसा जेणि जीप्या काम नित्य उत्तम करइ । ताहरी पीथड ठाणा पृथवी होड कुण हालिवी ए। परभाती श्रीरूपसिंह प्रण में वडो मुनिसर वंदिए ।
कलस वडो साध बंदिये मोह जिणि जीती माया । क्षिमा तणों भंडार क्रोध नह आणि काया ॥ जसवंत रो पाटवी जगत्र सघलो ही जाणे । काछवाछी निकलंक वडा कवि पात्र वांणें । देषीइ दरसण जाय दुष कीती काव्य मानू कीये ।
भोजक नंदा पठनार्थ । लि. मुनि भोजा
भोजा ऋषि प्रणीत
रूपसिंह ऋषीश्वर भास ।। पूज्य ऋषि श्री भोजराजजी गुरुभ्यो नमः ।।
राग सोरठ, ढाल काछबा नी वांदुं श्री वीरजिणिंद हे सखी वांदुं श्री वीरजिणंद । जाप जपं जसवंतजी तणो जी गास्यं गच्छ सिणगार हे सखी ।। आणंद आंणी अंगि अति घणो जी ।।
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