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इति श्री भाषायें ऋषि श्री जसवंतीनां चतुर्मासा सम्पूर्णः ॥
श्री श्राचार्यजी ऋषि ६ जसवंत जी । तस्य शिष्य ऋषि श्री ५ विज्जाजी तस्य शिष्य ऋषि श्री ५ माधवजी तयोरतेवासी लिखितं मुनि वीरजी पठनार्थ खुदो जय चातस्या सुता बा० मधीबाई शुभं भवतु । कल्याणमस्तु ॥
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मुनि कान्तिसागर : लोकाशाह की परंपरा और उसका अज्ञात साहित्य : २३७
संवत सोल एकाया वर्षे कार्त्तिक वदि छठि गुरू । बाबावतीइं रचा चउमासां पाठक जननि सुषकरू । ६३ श्रीपूज्य जसवंत शिष्य सुन्दर ऋषिविज्जा गुण धार ए । तास शिष्य माधव जंपइ श्रीसंघ जयजयकार ए । ६४
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मानूं रचित रूपजी का धन्द
सरसती समरूं सदा गवरी नंद गणेश । रूडें विरदि रूपसी जसह थल जस जंपेस || १|| गुणसागर जस गह गहिं गोतम जसो गात्र । रवजै प्रतपो रूपचंद चावो चारित्र पात्र ॥ २ ॥ गरवो गछ गुजरातियां गाइजें गुण जांण । रूप सीह जिम रूपसी वंचि बड़े वषांण ||३|| पाट तपि जसवंतरी जस प्रगट्यो कुल एक जीह । दावि मोटि दाषजी दन-दन चढता दी ||४|| रूप सषिसर पाट तहु जीवराज जस हाथ । त्यां श्रहुं तेजपालरि गणी गण घे वोहोथ ||५|| वरसं घरा चाकसूं वांचीजें वाषांण । मांझी अविरल म—यु मोटा प्रसणा माण ॥ ६ ॥ वरसंघ रे पाट वली वरसंघ हुयो व्रीआन । क्रीया पात्र कहीज तूं नरां सिरोमणि नाम ॥७॥ तेणे पाटे परबत तणो जसडु थयो जसराज । माझि चोरासी महिं मेर समी वेड वाझ ||८|| तेणें वर कर रूपो थपीऊ काअम कोड वरीस । साधां मोटो जेम सही दिन दिन आणें रीस ॥६॥
वडा
छंद मोतीदाम
दिन आखें रीस लगार भूले भल लीधो संयम भार । वंचि वरी आब वडा वषाण म जेम चंद मनावि आंण ॥१०॥
सुण्या जसवंत तणा उपदेश लीयो संयम लघु मति वेश । पथारिया गंदावि गंभीर निरमल वंस बायो नी ।।११।। करि कर जोड वीनती कीध रूडी परि रूपसी संयम लीध । पर हर नारि न कीधो प्रेम जस हथ जाण गउतम जेम || १२ ||
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