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राजस्थान, वीरप्रसविनी भूमि है । वीरता के इतिहास में राजस्थान का स्थान समग्र विश्व में अनुपम है। इस तथ्य को बहुत लोग जानते हैं । परन्तु संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में राजस्थान का जो गौरवपूर्ण स्थान है उसकी पूर्णता से कम लोग ही परिचित हैं।
प्रसन्नता का विषय है कि कुछ समय से इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और साहित्यिक गौरव को प्रकाश में लाने वाली अनेक योजनाएं सामने आ रही हैं। मुनि श्रीहजारीमल जी म० का स्मृतिग्रंथ भी उन में से एक है। यह योजना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
मुनिश्री राजस्थान के एक धर्मोपदेष्टा महापुरुष थे, । उनकी वाणी से सहस्रों मानवों ने अपने जीवन को उच्च और सात्विक बनाया है। उनकी स्मृति में किया जाने वाला यह आयोजन प्रशंसनीय है। मैं इसकी हृदय से सफलता चाहता हूँ।
गोविन्द नारायण अध्यक्ष स्वायत्त शासन संस्था
भारतीय संस्कृति सन्तों की साधना से ही अंकुरित, पल्लवित और पुष्पित हुई है. सच पूछिये तो सन्त जनों की दिव्य चर्या और वाणी का इतिहास ही भारत की आध्यात्मिक संस्कृति का इतिहास है.
सौभाग्य की बात है कि भारतवर्ष में अज्ञात अतीत काल से लेकर आधुनिक युग तक सन्तों की अनवच्छिन्न परम्परा चालू है. इन सन्तों ने जन जीवन के विविध अंगों को परिमार्जन करने में महत्त्वपूर्ण योग दिया है.
श्री हजारीमलजी म० उसी परम्परा की एक कडी थे. राजस्थान के सौम्य साधक थे. उन्होंने अपना समग्र जीवन स्वपर कल्याण के अर्थ ही उत्सर्ग कर दिया था. आशा है उनकी स्मृति में प्रकाशित होनेवाला ग्रंथ भी जन-जीवन को उन्नत बनाने में सहायक होगा. ग्रंथ प्रकाशन का प्रयास प्रशंसनीय है. मैं ग्रंथ की हृदय से सफलता चाहता हूँ.
हरगोविंद मेवाड़ा चीफ टाउन प्लानर, राजस्थान
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