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राधेश्याम त्रिपाठी : श्रीरायचन्द्रजी म. की साहित्यसर्जना : १५७
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लाभे लिच्छमी लील विलास
श्री आदिनाथ पूरो मेरी आस तथा भवसागर से मुक्त होने की लोकोत्तर भावना भी इन स्तुतियों में विद्यमान है
"प्रभु तुम चरणे म्हारो चित लागो थारो मुगत महल मो सूअति श्रागो मुझ भवसागर थी वेगो तारो
प्रभु पार्श्वनाथ लागे प्यारो-पार्श्वनाथ स्तुति इन स्तवनों में तीर्थंकरों के जीवन तथा कार्य व्यापारों की एक स्पष्ट झलक भी मिलती है.
"अनन्त बलि ताप दुष्कर किया करमां ने दावानल दिया खम, सम, दम ने धीमा धीर
मनबंछित पूरण महावीर'-श्री महावीरस्तवन जैनागमों में चार अनुयोग बतलाये गए हैं, जिनमें प्रथमानुयोग का एक विशिष्ट स्थान है. वह जनसामान्य के लिए सुगम और बोधगम्य भी है. देखा जाय तो राय चन्द्र जी का साहित्य प्रधानतः चरितानुयोगी है. उनके साहित्य में चरितों एवं कथाओं का स्थान विशेष महत्त्वपूर्ण है. जैन साहित्य का बहुत बड़ा भाग तीर्थंकरों, मुनियों, आचार्यों, श्रेष्ठियों, सतियों और धर्मप्राण नरेशों से सम्बन्धित चरितकाव्यों और कथाकाव्यों के रूप में पाया जाता है. इन कथाकाव्यों में विविध प्रकार से वणित पापों के दुष्परिणाम, पुण्य के प्रसाद तथा धर्मपालन की महत्ता का दिग्दर्शन हुआ है. जैन मुनियों का उद्देश्य जनसाधारण को धर्म की ओर प्रेरित करना था और साधारण मानसिक स्तर की जनता गहन धर्मतत्त्व को चरित के द्वारा जिस सुगमता से हृदयगंम कर सकती है, अन्य उपायों से नहीं. अतएव जैन साहित्य में चरितों तथा कथाकाव्यों का विशेष महत्त्व है. रायरचना में चरितकथाकाव्य इसी परम्परा के अन्तर्गत आते हैं. रायरचना में जिन चरित्रों को काव्यात्मक स्वरूप दिया गया है, वे इस प्रकार हैं-नव तीर्थकर, मरुदेवी माता, बलभद्र, शालिभद्र, भगवान् ऋषभदेव, नन्दन मणियार, धन्वन्तरि वैद्य, भग्गू, दुर्योधन, कोतवाल, उज्झित कुमार, हरिकेशी अणगार, अतिमुक्त कुमार, स्कंधक, धनमित्र, आषाढ-भूति, कलावती, मृगलेखा, नर्मदा, कुरटगड़, पुष्पचूला, मेतार्य, रथनेमि, बहुपुत्तिया देवी और जिनरक्षित-जिनपाल. रायमुनि ने ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों प्रकार के चरितकाव्य लिखे हैं. इन चरितकाव्यों में चरितनायक का जन्मस्थान, उसकी तपस्या तथा उसके व्यक्तित्व की महत्ता का वर्णन किया गया है. कहीं-कहीं पर चरित्रनायक की महानता बतलाने के लिए दृष्टातों का उपयोग भी किया गया है. लोकमानस ने इन चरित्रों के प्रति जो श्रद्धाभाव व्यक्त किए हैं, उनका संकेत भी घटनाक्रम के अनुसार दिया गया है. मदेरुवी माता के चरित्रांकन में रायमुनि ने उनके स्वरूप का सुन्दर पक्ष प्रस्तुत किया है. मरुदेवी माता के सतीत्व का सुन्दर वर्णन इस प्रकार है.
"कोड़ पूरब लगे हो सुहागण रही सती, नित-नित नवला वेस
भर जोवन रह्या हो माता जीवी ज्यां लगे, काला रह्या केस" भगवान् ऋषभदेव, मेतार्य मुनि, कलावती और नर्मदा आदि का चरित्र रायमुनि ने विस्तार से चित्रित किया है. भगवान् ऋषभदेव के चरितांकन में रायमुनि ने युगधर्म की पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए उनके जन्मस्थान, माता-पिता का नामोल्लेख, बाल्य जीवन की झाँकी, उनकी दीक्षा, उनके उपदेश और उनके द्वारा किये गये प्रमुख कार्यों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है. सभी वर्णन 'ढाल' के अन्तर्गत विभिन्न राग-रागिनियों में हुए हैं. उनके सिद्ध चमत्कारों का वर्णन भी
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