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विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ: ११६
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दो बूंद आँसू संध्या ने दोपहरी को ढाल दिया था.
कचोटती है तन और मन कोक्योंकि सांझ संवरने लगी थी,
अतीत की स्मृतियाँ, आकुल बना जाते हैं छुटपुटा फैलने की तैयारी में था
विडम्बना के भाव जब वे भूत के जगते हैंऔर
कहा था साध्वी चोंथांजी ने सुमधुर वाणी में आकाश नीरव था-कसावट गहरी थी उसमें
ब्यावर में. हवा भारी थी-बोझिल-और उदासी से बँधी हुई,
जब नौ का था पुत्र हजारी मेरा, बादलों का जैसे मौनव्रत था. घर के द्वार पर देहरी के पास
जाने क्या रेख पढी मेरे मस्तक कीदीवार से सटी हुई,
साध्वी ने और फिर कहा थाबैठी है एक नारी-मूर्तिवत् !
वर्तमान प्रबल है. ललाट पर उभरी हैं चिन्तन की रेखायें,
शक्ति का संबल है. कम्पन नहीं है उनमें.
कंबल है शान्ति का-जो घटा देता है पर गहरी स्थिरता है.
अतीत के शीत को. रेखायें जब बनती हैं चिन्तन की
तुम देवी मेरी ओर देखकर बोली थीं. तो सजीव हो उठता है वर्तमान
अतीत के दुःख में डूबो मत कर्मभाव मुखरता है
रिता दो पीडा के घट को दृढ संकल्प की निष्ठा तत्पर हो उठती है.
बूंद बूंद ही सही पर दुःख को बिसार दो. ऐसा पल घुमड़ा है अभी
और फिर नन्द कोइस नारी की आँखों में
हजारी को देखकर दुलार की वाणी में कहा थाआँखों में आकाशी चमक है,
इसमें अलौकिक शक्ति की प्रभा समाई है. सज्जित है सौम्य शृंखला से वह रंजित है—सरलता-पवित्रता के अनुराग में.
सरले ! ममत्व के बांध से बंधी हुई, देवी वह
तुम सरल हो, सहृदय और सुकोमल हो. बैठी है-निविकार.
वर्तमान पर चलना ही श्रेय हैपर, मंथन विचारों का मथ उसे रहा है.
इसी से गौरव बनोगी तुम हजारी से पुत्र की.
श्रद्धा के भाव से उनके चरणों में, वह मां है-नन्द की मां
झुक गया था माथ तब मेरा अनायास ही हजारी के वात्सल्य की दात्री.
और आज वह कहने लगा है सयाना बन, विचारों ने करवट ली
बात वर्तमान की. लाल मेरा ! कैसा पगला है
माँ ने देखा और ममत्व की धार बह चली. सोचने लगा है क्या ? अभी से बात वर्तमान की. वर्तमान ! हाँ वर्तमान की बात जो कही है अभी.
कैसा तल्लीन था आत्मलीन-सा हुआ याद है मुझे वह वाणी-आज भी
जब सुनी थी धर्मदेशना गुरुजी की मधुर स्वर वह चिरन्तन सत्य-सा,
मुनि श्री जोरावरमल की. वर्तमान को आस्था दो
प्रवचन सुन उनका, वर्तमान संबल है मानव के मन का.
भीग गया था जैसे उसके प्रवाह में.
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