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भक्ति का प्रतीक है यह ग्रन्थ
स्व. पू. पा. गुरुदेव श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी। म. के द्वारा परिषद को स्थापित किया गया और परिषद अपने लक्ष्य में गतिशील है, यह सर्वविदित है । अनेकविध । प्रवत्तियों में परिषद का इस ग्रन्थ-प्रकाशन का कार्य समाज । के इतिहास-पृष्ठों पर अमिट रूप से अंकित रहेगा। इस । कार्य को संपन्न करने में सम्पादक-मंडल ने सराहनीयः । पुरुषार्थ किया है । यह तो स्पष्टतः विदित है ही किन्तु इसमें परिषद् के कर्मठ कार्यकर्ता एवं भू. पू. अ. भा. परिषद् के । अध्यक्ष डॉ. श्री प्रेमसिंहजी राठौड़ एव परिषद् के कोषाध्यक्ष श्री शांतिलालजी सुराणा का अभिनन्दनीय सहयोग, लगन । एवं दक्षता को कभी भलाया नहीं जा सकेगा।।
__डॉ. श्री नेमीचन्दजी जैन, परिषद् के महामंत्री श्री। सी. बी. भगत एवं श्री ओ.सी.जैन का सहयोग अविस्मरणीय । रहेगा।
परिषद को गतिविधियों से समाज का प्रत्येक गुरुभक्त सुपरिचित है, उसकी उत्तरोत्तर प्रगति की प्रक्रिया चल रही है। गुरुदेवश्री ने जिन विचारों को साकार रूप । देने का कहा था उन्हें लक्ष्य में रख कर यह संस्था इसी प्रकार । के उल्लेखनीय-स्मरणीय कार्यों को करने के लिए भी अपने । को जागत चेता बनाये रखेगी ऐसी आशा ही नहीं पूर्ण । विश्वास है।
ग्रन्थ-प्रकाशन में परिषद-शाखाओं ने एवं परिषद्-प्रेमी। गरुभक्तों ने जो लाभ लिया है, अवश्य उन्होंने धन्यवादाह । लाभ लिया है । शुभम्
नीमवाला उपाश्रय, रतलाम ज्ञान पंचमी बी. नि. सं. २५०३
-जयन्तविजय 'मधुकर
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