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गुरु जन्म-भूमि वर्णन
कविवर श्री मन्नालाल चौपड़ा
।। दोहा ॥ धन्यनगर शुभस्थान में, जन्म लियो गुरुराज । किंचित् वरणन मैं करूँ, शुभमंगल के काज ।।
॥चौपाई देशी रामायण ।। आगरा शहर के पास सुहाया, भरतपुर एक रमणीक छाया । नरनारी बसे सब सुख दाया, हाँट हवेली महल चुनाया ।। जाट है राय रैयत मन भम्या, निजनिज धर्म करे मन चाया । शहर चौ तरफी किल्ला झुल आया, गोल बाग देखत चकराया ।।
॥ दोहा ।। ओगणी अड़सठ सम्मते, शुक्ल आषाड़ सोहाय । चलकर आगरे शहर से, आया भरतपुर माय ।।
।। चौपाई देशी रामायण ।। उत्तम ठास मुकाम कराया, खानपान जलदी निपटाया । शहर की शोभा देखन मन भाया, शहर भरतपुर देख लो भाया ।। एक सज्जन दाना जिहाँ पाया, छन्नुवरस का नुक गई काया । उनका णाम ठिकाना लगाया, बातें कर बाँका मन समझाया ।।
॥ दोहा ।। पूछा दाना सेठ से, ऋषभजी का घरबार । दाना कहे एक रतनचंद, हो गये गुण भण्डार ।।
॥ चौपाई देशी रामायण ।। ठीक ठिकानो जिहाँ नहिं पायो, तब मन माँही अति अकुलायो । ढूढत ढूढत खी अथमायो, शशी ने आया उजास करायो । जाकर नींद से नेह लगायो, रात्रि समय एक स्वप्न दिखायो । एक मनुष्य आ काज घोरायो, काज होसे थारो राज में चायो॥
॥ दोहा ।। प्रात: समय से उठ कर लीनी काय सुधार । ध्यान करी नवकार को, गयो राज दरबार ।।
॥ चौपाई देशी रामायण ।। कामदार का नाम पुछायो, मिलकर सबहि बयान सुनायो । कामदार जना चोपड़ा लयो, ढूंढ ऋषभजी को नाम बतायो । दाय पुत्र नो जे तात कहायो, ऋद्धिवंत सात लाख कमायो । माणकचंद कंवर हतो डाठयो, रतनचंद लघुपुत्र जतायो ।।
॥ दोहा । लक्ष्मी पैदा करण में, माणकचंद लयलीन । छोटी वय में रतनचंद, विद्यागुण परवीन ।।
॥ चौपाई देशी रामायण ॥ सात मजल हती सेठ हवेली, व्यापार चालतो आगय देहली। कोई जन आयके थापण मेली, यह सहुराज में बात लिखेली।। रायने सेठ के प्रत जमेली, नगर में महिमा सेठ की फैली। इस्यों सेठ हवो इहांपेली, कामदार लेख देख कहेली ।।
॥ दोहा ॥ सांभलता इस कथनुकु, आनन्द रस उभराय । भोजन उस दिन नहिं कियो, अजीर्ण को डर लाय ।।
॥ चौपाई देशी रामायण ।। जैसीहि महिमा कुल की भाई, जैसे ही प्रगटे गुरु जग आई । संसारी नाम रतनचंद पाई, विद्या रत्न भण्डार भराई ।। संयम सूरि राजेन्द्र थपाई, सबके राजेन्द्र जो धर्म दीपाई। सूरि राजेन्द्र भविक सुखदाई, विश्व में जिनकी ज्योति सवाई।
॥ दोहा ॥ सुनी हुई मैं नहिं कही, देखी भरतपुर जाय । जैसी शोभा शहर की, दीनि गाय सुनाय ।।
॥ चौपाई देशी रामायण ॥ शहर भरतपुर तीर्थ कहीजे, मोका लगे तो जरूर जाईजे । जैन मंदिर का दरसन कीजे, पौषधशाला में जाय ठहरीजे ।। कामदार से सर्व पुछीजे, गुरुकुल सांभली अमीरस पीजे । मनालाल उत्तम फल लीजे, सरि राजेन्द्र जन्म भूमि फर सीजे।।
. राजेन्द्र-ज्योति
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