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परिषद्
मुनि श्री लक्ष्मणविजय 'शीतल'
राजेन्द्र जैन नवयुक परिषद,
धार्मिक पाठशालाएं खोली, जन जागरण को करती है।
सिलाई केन्द्र चलवाये हैं। भला करेगी समाज देश का,
समाज उत्थान के सभी,
सिद्धान्तों को अपनाये हैं।। ऐसा वादा करती है ।।१।।
कर्म करेगी जैसी दुनिया,
वैसा ही फल को पाती है ॥४॥राजे।। परिषद के माध्यम से युवक, एक सूत्र में आये है ।
दहेज ना मागेंगे हमतो, गुरुदेव राजेन्द्र सूरि के,
आज प्रतिज्ञा करते हैं।
मृत्यु भोज न खायेंगे, वचनामृत मन भाये हैं।। संगठन में शक्ति है रहती ,
प्रण ये दिल में धरते हैं। प्रचार परिषद करती है।।२।।राजे.।।
मन घोड़े पर जब हो काबू
तब कामना सब फलती है ।।५।।राजे.।। विधवा और गरीबों की,
है प्रार्थना गुरुदेव अबतो, हमदर्द परिषद बनी हुई।
बल दो और बलवान करो। समाज के भले के खातिर,
परिषद के भण्डारों में कमर बांध कर तनी हुई।
धन देकर धनवान करो। हमकों आशा बंधी है, ऐसी,
बूं-बूंद पानी से ही, अब नाव हमारी तिरती है ॥३॥राजे.।।
मटकी सारी भरती है।६।राजे.।। दुःख में दुःखी न होंगे हम सुख में फूले न समाएंगे। राजेन्द्रसूरि के नाम स्मरण से, भव सागर तिर जाएंगे, लक्ष्मण विजय गुरु वाणी अब, सबके मन को हरती है।।।७।। राजे.।।
वी.नि.सं.२५०३
२७.
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