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विजयजी के सान्निध्य तथा डॉ. प्रेमसिंहजी राठौड़ की अध्यक्षता में अधिवेशन भारी सफलता के साथ सम्पन्न हुआ । अधिवेशन के साथ ही परिषद् की नसों में नया रक्त प्रवाहित हो गया। समस्त शाखाएँ सक्रिय हो उठीं। इससे पूर्व समस्त शाखाओं में विधिवत् चुनाव करवाये गये और उनके अधिकृत प्रतिनिधियों ने उसी हैसियत में सम्मेलन में भाग लिया। आठ वर्षों के उपरांत परिषद् की केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति तथा पदाधिकारियों के निर्वाचन हुए। डॉ. श्री प्रेमसिंहजी राठौर केन्द्रीय अध्यक्ष पद पर आरुढ़ किये गये ।
इस अधिवेशन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि समाज के साधनहीन छात्रों के लिये श्री राजेन्द्र छात्रवृत्ति योजना का अस्तित्व उभरा। साथ ही तीर्थंकर देव श्री महावीर स्वामी के २५०० वें निर्वाण वर्ष की स्मृति में चांदी के सिक्के बनवाने का निर्णय किया गया। यह भी निश्चय किया गया कि इनके एक पहलू पर अभिधान राजेन्द्रकोप की छवि एवं राजेन्द्र संवत् अंकित किये जावें । साथ ही इस अधिवेशन में महिला प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। श्री राजेन्द्र जैन महिला परिषद शाखाएँ गठित करने का मंगल प्रारंभ भी हुआ। कुछ स्थानों पर महिला परिषदों के गठित हो जाने की सूचना भी प्राप्त हुई। परिषद् के विधान को युक्तियुक्त बनाने हेतु कई संशोधन किये गये । परिषद की केन्द्रीय कार्यसमिति में महिला प्रतिनिधियों का समावेश किया गया । जावरा का अधिवेशन परिषद प्रगति की राह में नया सीमा चिन्ह बन गया । परिषद् की गति को दक्षिण भारत की ओर प्रवृत्त करने हेतु प्रयत्न किया गया । भूतपूर्व अध्यक्ष श्री सौभाग्यमल जी सेठिया तथा कोषाध्यक्ष श्री शान्तिलालजी सुराणा ने मद्रास तथा बैंगलोर क्षेत्र की यात्रा की। यह दौरा १९७५ के नवम्बर मास के द्वितीय सप्ताह में हुआ। समाज के महानुभावों ने परिषद् को अपनाने का आश्वासन दिया ।
दसवें अधिवेशन की तैयारी परिषद् की अलिराजपुर शाखा ने श्री लक्ष्मणीतीर्थ की पवित्र भूमि पर की। इस अधिवेशन को सान्निष्य पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी मधुकर ने प्रदान किया । अध्यक्षता डॉ. प्रेमसिंहजी राठौड़ ने की । १८ व १९ दिसम्बर १९७५ को प्रतिनिधिगण दूर-दूर से श्री पद्मप्रभु स्वामी की छत्रछाया में समाजोत्थान पर विचार विमर्श करने के लिये एकत्र हुए। प्रथम बार दक्षिण भारत के प्रतिनिधियों की उपस्थिति भी महत्त्वपूर्ण रही । परिषद् का दक्षिण भारत में प्रवेश हो गया । इसी अधिवेशन से परिषद् की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनाने हेतु एक स्थायी कोष करने की शुरुवात हुई । भेट के रूप में परिषद् को विभिन्न बोलियों तथा नकरों के माध्यम से उल्लेखनीय राशि प्राप्त हुई। जावरा अधिवेशन में चांदी के सिक्के निर्मित करवाने का जो निर्णय किया गया था, वे सिक्के भी इस अधिवेशन में प्रसारित कर दिये गये। इस अवसर पर 'शाश्वत धर्म' का एक विशेषांक भी प्रकाशित हुआ । पारित किये गये प्रस्तावों में राजेन्द्र बचत योजना संचालित कर समाज के अध्यक्ष व कमजोर वर्ग के आर्थिक विकास के उद्देश्य की परिप्राप्ति की दिशा में ठोस कार्य
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करने का कदम उठाया गया। शाखा वार प्रगति का आकलन किया गया ।
ये दोनों अधिवेशन परिषद् के लिये वरदान बन गये । पाठशालाओं को अनुदान दिया जाना प्रारम्भ किया गया। इससे कई शाखाओं द्वारा संचालित लड़खड़ाती धार्मिक पाठशालाओं को सम्बल मिल गया । परिषद् के माध्यम से गरीब छात्रों को छात्रवृत्ति एवं गुप्तदान भी मिलने लगा । भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण वर्ष की स्मृति में मन्दसौर शाखा परिषद् द्वारा निर्मित श्री महावीर प्याऊ हेतु एक हजार रुपया अनुदान स्वीकृत किया गया। केन्द्रीय परिषद् ने समय-समय पर साहित्य प्रकाशन भी किया।
तीर्थंकर श्री महावीर देव के २५०० वें निर्वाण वर्ष की स्मृति में परिषद् द्वारा 'शाश्वत धर्म' ने चार सौ पृष्ठों का एक विशाल विशेषांक निकाला जो अपने आप में जैन साहित्य के मध्य उल्लेखनीय स्थान स्थापित करने में सफल हो गया ।
शाखाओं की गति को त्वरण देने के उद्देश्य से दि. ७ नवम्बर १९७६ से १६ नवम्बर ७६ तक महामंत्री श्री सी बी भगत ने मालव व निमाड़ क्षेत्रीय शाखाओं का दौरा किया। आपके साथ दौरे में भू. पू. अध्यक्ष श्री सौभाग्यमलजी सेठिया तथा कोषाध्यक्ष श्री शान्तिलालजी सुराणा भी रहे।
परिषद् पुनः एक सशक्त संगठन के रूप में सामने आ गयी है । कार्यकर्त्ताओं की शक्ति का सामंजस्य सकारात्मक बिन्दु पर विश्राम ले रहा है। शाखाएँ परिषद् उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये उपलब्धियों के मंगलसूत्र समाज को समर्पित कर रही है । पाठशालाओं की शृंखला गूंथ गई है। साथ ही महिलाओं के लिये सिलाई केन्द्र चल रहे हैं । केन्द्रीय परिषद् ने सिलाई केन्द्रों को मशीनें अनुदान के रूप में दी हैं । धर्मार्थ औषधालयों का निर्माण व संचालन भी परिषद् शाखाएँ कर रही हैं। अस्पतालों में बीमारों को निःशुल्क दवा वितरण कर मानव कल्याण की भावना को जीवन्त किया जा रहा है । पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के रजत सिक्के प्रसारित किये जा चुके हैं । जालोर के स्वर्णगिरि पर प्याऊ संचालन हेतु केन्द्रीय परिषद् ने अनुदान दिया है।
परिषद् का म्यारवां अधिवेशन इसी वर्ष निम्बाहेड़ा ( राजस्थान) में सम्पन्न हो चुका है । इस अधिवेशन को सान्निध्य पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज 'मधुकर', पूज्य मुनिराज श्री तथा पूज्य मुनिराज श्री नित्यानन्दविजयजी महा ने प्रदान किया एवं परिषद् के अध्यक्ष श्री डॉ. प्रेमसिंहजी राठौड़ ने इसकी अध्यक्षता की। निम्बाहेड़ा अधिवेशन की शाखाओं की प्रवृत्तियों को प्रगति का आयाम प्राप्त हुआ है । इस अधिवेशन के उपरान्त प्रगति का दौर बढ़ता जा रहा है। परिषद् द्वारा धार्मिक रेकार्डस तैयार करवाई गई हैं जिनमें गुरुदेव की आरती तथा नमस्कार मंत्र धुन सम्मिलित हैं । सिलाई केन्द्रों की संख्या बढ़ गई है। वर्तमान में सैकड़ों छात्र धार्मिक अध्ययन कर रहे हैं। श्री
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