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चमत्कारों की दुनिया में श्री मुहरि पार्श्वनार्थ म.
पू. मनिप्रवर श्री राजरत्नसागरजी महाराज
आध्यात्मिक और भौतिक वातावरण में झूम उठने, खो जाने के लिए धर्म और संस्कारों का जतन करने में शिल्पकला ने अच्छा योग दान प्रदान किया और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। __ आर्य संस्कृति का चाहक आर्य देश अपने स्थापत्यों को, शिल्पों को सुरक्षित रखता आया है। जरूरत पड़ने पर उसे जीर्णोद्धार के रूप में संवारा, सजाया, संजोया भी है।
भारतीय संस्कृति अपनी विशिष्ट और अनोखी शिल्पकला से आज दुनिया में सिर उन्नत किए हुए है। उसमें भी जैन संस्कृति की शिल्पकला के आदर्शों का तो कहना ही क्या?
कई ऐसे प्राचीन मंदिर एवं मूर्तियां हैं, जिनकी कला-कौशलता, शान, शालीनता और चमक-दमक अवर्णनीय अनुमोदनीय है।
हमारे पूर्वज महापुरुष सर्वजन हिताय ऐसे ऐसे कार्य कर गए हैं जिसे देखते ही हम आश्चर्यमुग्ध हो जाते हैं, दंग रह जाते हैं।
जब हम एक ओर इस सर्व मंगलकारी आदर्श का चिन्तन करते . हैं और उसी वक्त विश्व में ठोर-ठोर संघर्ष, असहिष्णुता, ईर्ष्या, मत्सर, असूया देखते हैं, तब विचार शक्ति कुण्ठित हो जाती है, सिर चक्कर खाने लगता है लेकिन ऐसे समय अत्यन्त क्षीण किन्तु दढ़ आवाज में श्रद्धा कहती है कि वीर वि. सं. १००० के दरम्यान चार भयंकर दुष्काल, अनेक राज्य विप्लवी, राजकीय अंधाधुंधी और साम्प्रदायिक द्वेष ज्वाला के होते हुए भी हमारे पूर्वजों को श्रद्धा और प्राणों का बलिदान देकर सुरक्षित किए गए ठोस आज भी अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध हैं।
श्री मुहरि पार्श्वनाथ एक ऐसा तीर्थ है जो न केवल प्राचीन है बल्कि चमत्कारिक और ऐतिहासिक भी है।
श्री मुहरि पार्श्वनाथ प्राचीन होने के प्रमाण
हमारे अनन्त लब्धि निधान श्री गुरु गौतमस्वामीजी ने अष्टापद तीर्थकर चैत्यवंदन के समय श्री जगचिन्तामणि सूत्र की तीसरी गाथा में जो "मुहरिपास दुह दुरिअ खंडण" पंक्ति से स्तवना वर्ग है वहीं श्री मुहरि पार्श्वनाथ प्रभु अभी टिंटोई में विराजमान हैं। टिंटोई से मुहरि नाम का गांव सिर्फ ५ माईल की दूरी पर है। मुहरि गांव में और उसके आसपास की जमीम पर कई खण्डहर और भग्नावशेष हैं वहां एक बावन जिनालय का खण्डहर भी है यहां से कई बार लोगों को सुवर्ण की मुहरें मिली ऐसी लोकोक्ति है । यहां के खण्डहर देखने से अन्वेषकों का अन्दाज है कि २५००-३००० वर्ष पहले यहां एक बड़ा शहर होगा।
इसी गांव में प्राचीन समय की हिगालोगिया रंग की ओर अभी पत्थर से भी ज्यादा मजबूत १८x१० इंच की १० किलो से भी ज्यादा बजन की आखी और टूटी हुइ ईंटें आज भी इधर-उधर बिखरी हुई २-३ माईल तक देखने में आती है। करीबन ५५ साल पहले इसी जगह से ३० फीट की ऊंचाई वाला मनुष्य का हाड़ पिंजर प्राप्त हुआ था। यहां से १०० मील दूर शाभलाती जैनेतर तीर्थ है। यहां एक समय बावन जिनालय मंदिर होंगे ऐसा देखने से अनुमान लगता है इस गांव से ९ माईल दूर नागकणावाली भव्य मूर्ति आज भी विद्यमान है। जो दिगम्बरों के कब्जे में है। सैकड़ों वर्ष पहले यहां समतल भूमि थी, धरती कंप होने से ये वर्तमान परिस्थिति
किसी लेखक का कथन है कि ये मुहरि पार्श्वनाथ मथुरा के जानना लेकिन विद्यमान श्री मुहरि पार्श्वनाथ भगवंत का आकार प्रकार और महुआ वंदर (सौराष्ट्र) में विराजमान थी जीवित स्वामी श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा का आकार प्रकार, शिल्पकला मुखारविंद मिलता-जुलता होने से प्राचीन होने का प्रमाण है ।
वी. नि. सं. २५०३
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