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________________ ST जैन कथा साहित्य : एक पर्यवेक्षण जयन्तविजय, "मधुकर" जीवन में कथा-कहानी का महत्त्व ___ सत्य तो यह है कि प्रत्येक मानव अपने जन्म के साथ एक कथा लेकर आया है। जिसको वाणी द्वारा नहीं किन्तु अपने अहर्निश के क्रिया-कलापों द्वारा कहता हुआ समाप्त करता है। तब जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें कहानी की मधुरिमा अभिव्यंजित नहीं हुई हो, कथा के प्रति मानवमात्र का सहज आकर्षण न हो। इसलिए विश्व के संपूर्ण साहित्य को लें अथवा किसी भी देश, जाति या भाषा का साहित्य लें उसका बहुभाग एवं सर्वाधिक जनप्रिय अंश किसी न किसी रूप में रचित उसका कथा साहित्य ही माना जाता है। यह स्थिति मात्र लौकिक साहित्य की ही नहीं वरन् धार्मिक साहित्य के बारे में भी यही बात शत-प्रतिशत सत्य है कि लोक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण रोचक व जनप्रिय अंश उसका कथा साहित्य ही है। ___ कथा साहित्य प्राचीन परम्परा की पावन गंगा है जो देश-काल के विस्तार के साथ अनेक कथा सरिताओं का संगत होते जाने से विशाल रूप धारण कर जन मानस को उल्लसित एवं उदान बनने के लिए प्रेरित करती है। कथाओं का उद्देश्य लोक जीवन और लोक संस्कृति का उन्नयन एवं संरक्षण करने के साथ-साथ जन सामान्य को सुगम रीति से धार्मिक नियमों, नैतिक आचार-विचारों के प्रचार-प्रसार करने एवं समझाने के लिए क्या साहित्य से बढ़कर अधिक प्रभावशाली साधन दूसरा नहीं है। जिनके बिना एक कदम चलना भी असंभव होता है। ऐसी स्थिति में उनका सरल मार्ग कहानी साहित्य ही होता है। कला के माध्यम से दर्शन के दुरूह प्रश्न, संस्कृति का गहरा चिन्तन व धर्म के विविध पहल सरलता से हृदयंगम किये व कराये जा सकते हैं। इसमें सभी बोलियों की आत्मा होती है। मित्र सम्मत उपदेश भी इसी माध्यम से होता है, जो श्रुति से मधुर, आचरण में सुकर व हृदय छूने वाला होता है। जैन कथा साहित्य उपर्युक्त कथन से यह भलीभांति ज्ञात हो जाता है कि कहानी, साहित्य, साहित्य की एक प्रमख विधा है जिसे सबसे अधिक लोक प्रियता प्राप्त है। उसके प्रकाश में अब हम जैन कथा साहित्य के बारे में विचार करते हैं। साहित्य के साथ जैन विशेषण की उपस्थिति इस बात को सूचित करती है कि यहां जैन नाम से प्रसिद्ध धार्मिक परम्परा विशेष का साहित्य अभिप्रेत है जिसका उद्देश्य वैयक्तिक जीवन का नैतिक एवं आध्यात्मिक उन्नयन करना है। अत: उसकी दृष्टि केवल सामूहिक लोक जीवन अथवा किसी वर्ग या समाज विशेष तक सीमित नहीं है वरन् प्रत्येक जीवात्मा को स्पर्श किया है। यही कारण है । इस परम्परा द्वारा प्रेरित, जित, संरक्षित एवं प्रभारित साहित्य भारतीय भाषाओं में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और उन-उन भाषाओं के साहित्य भण्डार की अभिवृद्धि की है। जैन साहित्य केवल तात्विक, दार्शनिक या धार्मिक आचार विचारों तक ही सीमित नहीं है। उसमें ज्ञान विज्ञान की प्राय: प्रत्येक शाखा पर रचित रचनाएं समाविष्ट हैं, जिनमें उन सिद्धांतों की सनिःण व्याख्या की गई है जिनको आज तक कोई चुनौती नहीं दे सका है किन्तु लोक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण, रोचक एवं जनप्रिय अंश उसका कथा साहित्य है। जैन आगमों में से नाया धम्म कहा, उवासगदसाओं, अन्तगडदशा, अनुत्तरोपपातिक, विपाक सूत्र आदि तो समग्र रूप से कथात्मक हैं इनके अतिरिक्त सूयगडांगसूत्र, भगवतीसूत्र, ठाणंगसूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र आदि में भी अनेक रूपक व कथाएं हैं जो भाव पूर्ण होने के साथ प्रभावक भी हैं। जैन कथा साहित्य अत्यन्त विशाल, व्याप। एवं विविध भाषा मय है। उसमें काव्य शास्त्र के सभी लक्षणों, नियमों की संपुष्टि करने वाले पौराणिक महाकाव्य, चरित्र काव्य, सामान्य काव्य, बी.नि.सं. २५०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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