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राष्ट्रकूटों के समय में कला, स्थापत्य, साहित्य के विकास के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में विकास हुआ। जैन गुरुओं ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया । पाठशालाएं तथा विद्यालयों में शिक्षा देने का काम जैन गुरुओं के द्वारा काफी मात्रा में होता था । महाराष्ट्र में शिक्षा का प्रारम्भ ॐ नमः सिद्धेभ्यः से होता था । कल्याणी के चालुक्य
राष्ट्रकूट की सत्ता समाप्त कर कल्याणी के राजा ने महाराष्ट्र पर सत्ता कायम करने का प्रयत्न किया किन्तु वे महाराष्ट्र के कुछ भाग पर ही आधिपत्य पा सके। इनके राज्य में भी साहित्य रचना हुई। इसी काल में महाराष्ट्र की स्त्रियां पिसाई के समय ओव्या (गाने) गाने लगी थी। संभव है वे मराठी की ही हों। यादवों ने चालुक्यों को पराजित कर दिया। राष्ट्रकूटों के बाद चालुक्यों की तरह शिलादार तथा कदंबों के हाथ में महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा रहा। कोंकण के शिलादार
यह विद्याधरवंशीय क्षत्रिय थे। जो अपने को जीमूतवाहन के वंशज मानते थे। प्रारंभ में उनकी राजधानी करहद (कन्हाड) थी। और बाद में क्षुल्लकपुर (कोल्हापुर) रही। सन् १००७ से १००९ में शिलादारों में राज प्रसिद्ध राजा था। किंतु इस वंश में गंडरादित्य प्रसिद्ध राजा हो गया वह दानशूर एवं समदर्शी था। उसने अपने दान से ब्राह्मणों को तो लाभान्वित किया ही आजरेना (आजरें) में सुन्दर जिनालय भी बनवाया। उसने एक ऐसा मंदिर बनवाया जिसमें बुद्ध, शिव और जिन की मूर्तियां थीं। इसका उत्तराधिकारी विजयादित्य अमात्य निम्बदेव बड़े धर्मात्मा धर्म शास्त्रों का ज्ञाता था। उसने कोल्हापुर में विशाल जिन मंदिर बनवाया था। विजयादित्य का काल ११४० से ११६५ तक रहा। उसके सेनापति बोप्पण के विषय में प्रशस्ति में बड़ी प्रशंसा पाई जाती है। उसने राजा के लिए मंदिर बनाना शुरू किया था। उसका एक मंत्री लक्ष्मीधर था। विजयादित्य के राज्य के बाद उसके पुत्र द्वितीय भोज का राज्य ई. ११६५ से १२०५ तक रहा । वह भी जैन धर्म का परम भक्त था। इसके बाद यादवों ने शिलादारों को अपने आधीन कर लिया
मिल्लम द्वितीय ने चालुक्यों की अधीनता स्वीकार की। चालुक्य राज दूसरे तैलप के साथ राजा वावपती मुंज का युद्ध हुआ उसमें मिल्लम ने चालुक्यों की ओर से पराक्रम कर मुंज को हराया जिससे चालुक्यों पर उसका प्रभाव बढ़ा। मिल्लम के समय में भी चालुक्यों का यादव परिवार के साथ वैवाहिक संबंध था सेउनणचंद्र और उसके पुत्र ने छटे विक्रमादित्य की सहायता की थी और परमदेव के पुत्र सिंघण ने उसे विविध आक्रमणों में सहायता की थी। ई. स. ११५१ में तृतीय तैलप को उसके प्रधान विज्जल ने निष्प्रभ कर ११६२ में अपनी सत्ता प्रस्थापित की और सम्राट बन गया। इस सत्तांतरण में यादव राजा पल्लुगी ने कलचुरियों को पराजित कर काफी प्रदेश अपने राज्य में मिला लिया था। बिज्जल के बाद कलचुरिवंश के राजा दुर्बल हो गए, तब ११८३ में यादवों ने उनकी सत्ता नष्ट कर पंचम मिल्लम ने यादवों का साम्राज्य स्थापित कर देवगिरी को अपनी राजधानी बनाया। पंचम मिल्लम ने ई. स. ११८३ से ११९१ तक राज्य किया। उसके बाद उसके पुत्र जेनपाल ने ई. स. ११९१ से १२१० तक राज्य किया। इतिहासकार कहते हैं कि वह जैन था बाद में महानुभाव हो गया। उसके बाद सिंघण राजा बना। सिंघण ने होयसालों से दक्षिण का प्रदेश जीता और १२१८ में कोल्हापुर के शिलादारों का राज्य जीतकर वह प्रदेश अपने राज्य में मिला लिया। उसके बीचक और खोलेश्वर प्रमुख सेनापति थे, जो बड़े पराक्रमी थे। उसने अपने राज्य का विस्तार महाराष्ट्र के बाहर दक्षिण व उत्तर में भी किया। उसकी सेना के नेपाल तक जाने का उल्लेख मिलता है। ___सिंघण के बाद उसका पौत्र कृष्णराज गद्दी पर बैठा । उसका राज्य १२४७ से १२६० तक रहा। कृष्ण का मुस्लिमों के साथ मालवे में पहली बार संघर्ष हुआ उसने मालवे से लौटते समय अमीरों का पराभव किया। कृष्ण के बाद उसके भाई महादेव ने १२६०-१२७१ तक राज्य किया। उसने कोंकण के शिलादारों का राज्य अपने साम्राज्य में मिला लिया । उसने मालवा और तेलंगाना प्रांत पर आक्रमण करके राज्य विस्तार का प्रयत्न किया। महादेव के काल में देहातों में तुर्कों का उपद्रव बढ़ने का जिक्र महानुभावों के साहित्य में आता है। महादेव ने अपने पुत्र आमण को युवराज बनाया जब कि उसके भतीजे रामदेव राव का हक था। इस घटना से रामदेवराव को क्रोध आया। उसने चुनिन्दा सैनिकों का नृत्य पृथक तैयार कर किले में प्रवेश किया और गढ़ के लोगों की असावधानी का लाभ उठाकर किले पर अधिकार प्राप्त कर आमण को कैद कर लिया और उसकी आंखें निकाल दी।
यादव
नवीं शताब्दि में यादवों के राजा दृढ़प्रहार की राजधानी नासिक जिले के चांदवड में थी जो चंद्रादित्यपुर नाम से प्रसिद्ध था। दृढ़प्रहार के पुत्र सेउनणचंद्र ने सेउनणपुर नामक गांव बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया । उसके आधीन प्रदेश सेउनण देश के नाम से पहचाना जाता था। इसमें नासिक, अहमदनगर और औरंगाबाद जिले का क्षेत्र था। ये यादव राष्ट्रकटों के अधीनस्थ थे। आधीन रहते हुए भी राष्ट्रकूटों के साथ समानता का व्यवहार था। राष्ट्रकूट परिवार की राजकन्या के साथ द्वितीय मिल्लम का विवाह हुआ था। राष्ट्रकूट राजाओं के दुर्बल होने पर चालुक्यों की सत्ता महाराष्ट्र पर स्थापित हुई तो
रामदेव ने सन् १२७१ से १३०९ तक राज्य किया। उसने अपना राज्य विस्तार विदर्भ तक किया। वहां से मध्यप्रदेश होते हुए वाराणसी तक गया। वहां उसने मुस्लिमों को निकाल बाहर किया और शारंगपाणि का सुवर्ण मंदिर बनाया। रामदेव के समय में यादवों का राज्य विस्तार बढ़कर यादवों का दक्षिण का प्रबल साम्राज्य निर्मित किया। किन्तु अपनी असावधानी के कारण अल्लाउद्दीन के देवगिरी के हमले का बह मुकाबला नहीं कर
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राजेन्द्र-ज्योति
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