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रतलाम के समीपवर्ती दर्शनीय स्थल
शैलेन्द्र दलाल
१. परिचय
सिद्धाचल पर्वत की सौ प्रतिशत रचना की गई है जो पालीवाल तीर्थ मध्यप्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में बड़ी लाइन तथा छोटी लाइन
का लाभ हमें प्रदान करता है। इसके निर्माता को धन्यवाद दिये का जंक्शन रतलाम नगर स्थित है। इस नगर की स्थापना में दो
बिना रहा नहीं जा सकता। महराजाओं के नाम का सम्मिलन है। महाराजा रतनसिंह और
(द) सेमलिया तीर्थ रामसिंह इन दोनों के प्रथम दो-दो अक्षरों के योग से रत्नराम बना।
रतलाम से उत्तर की दिशा में ग्राम नामली के निकट (२ कि.मी) "रत्नराम' शहर की यात्रा कुछ विचित्र बनी और अब वह रतलाम
सेमलिया ग्राम स्थित है यहां का जिनालय इतिहास में अपना महत्वहो गया। रतलाम की स्थापना महा सुदी पंचमी (बसंत पंचमी)
पूर्ण स्थान रखता है और कहा जाता है कि यह मंदिर एक यति द्वारा संवत् १७११ में हुई। नगर में पश्चिम रेल्वे के मण्डल कार्यालय के
उड़ाकर लाया गया है और इस मंदिर के संगमरमर के खंभों से दूध अतिरिक्त श्री सज्जन मिल्स, जयन्त विटामिन्स, अल्कोहल प्लांट,
निकला करता था। मुख्य प्रतिमा भव्य है और शैली आकर्षक है। स्ट्रा बोर्ड मिल्स आदि प्रमुख उद्योग है।
(ई) जावरा २. तीर्थ स्थान
पूज्य जैनाचार्य श्रीमद् राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की क्रिया (अ) सागोदिया तीर्थ
द्वारा भूमि जावरा त्रिस्तुतिक समाज के लिये महत्वपूर्ण स्थल है । यहां
पर सात जिनालय बने हैं और एक राजेन्द्र जैन दादावाड़ी है। नगर के पश्चिम में २ किलोमीटर दूर सागोदिया तीर्थ स्थित . .जावरा का विस्तत परिचय "राजेन्द्र ज्योति" में अन्यत्र अंकित है। है जहां श्वेताम्बर तथा दिगम्बर मंदिर निर्मित है। श्वेताम्बर मंदिर में मुलनायक भगवान ऋषभदेव प्रतिष्ठित हैं, साथ में एक धर्मशाला
(क) आलोट बनी हुई है। प्रति रविवार को पिकनिक स्थल होने के कारण यहाँ
आलोट बड़ी लाइन के कोटा और रतलाम के मध्य स्थित है मेला सा बना रहता है। इस पवित्र स्थल पर पूज्य गरुदेव श्रीमद यहां दो जिनालय बने हुए हैं वे अत्यंत ही आकर्षक हैं। राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के शिष्य मुनिराज श्री रूपविजयजी नागेश्वर पार्श्वनाथ तपस्वी द्वारा कठोर साधाना और तपस्या की गई।
आलोट के पश्चिम के साथ प्रसिद्ध तीर्थ नागेश्वर पार्श्वनाथ का (ब) बिबडोद तीर्थ
अनन्य संबंध है । नागेश्वर पार्श्वनाथ यद्यपि राजस्थान की सीमा में
है लेकिन रतलाम जिले के लिये अपनत्व लिये हुए है, ऐसा लगता इसी दिशा में पांच किलोमीटर दूर बिबड़ोद तीर्थ स्थित है।
है. इसी जिले की तीर्थस्थली है । १४ फीट ऊंचाई लिए नीलम प्रतिमा आधा कि. मी. दूर से ही बिबड़ोद जिनालय का परकोटा दिखाई
(पार्श्वनाथ) भव्य रूप से हमें यहां आने के लिए बार-बार आकर्षित देता है ऐसा लगता है कोई दुर्ग बना हुआ है। देखने की जिज्ञासा .
करती है। मंदिर का निर्माण कार्य गतिशील है। यहां पौष सुदी १० होती है। जिनालय परिसर में प्रवेश करते ही वहां की
को प्रतिवर्ष मेला आयोजित होता है जिसमें हजारों धर्म प्राण जनता भव्यता हमें प्रभावित करती है। प्रशांत, निरापद, पुनीत स्थल हमें
दर्शनार्थ आती है। तीर्थस्थल पर पहुंचने के लिए आलोट, रतलाम बार-बार यहां आने के लिये प्रेरित करता है । साधना का रमणीय से आवागमन के साधन उपलब्ध हैं। स्थल बिबड़ोद तीर्थ है । इस तीर्थ के मूलनायक भगवानश्री ऋषभदेव प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष यहां पौष माह में एक मेला आयोजित
३. रतलाम नगर के जैन मंदिर होता है और हजारों यात्री दर्शनार्थ आते हैं। बिबड़ोद और सागोदिया
रतलाम नगर में करीब १४ जिनालय हैं जिनमें मोती पूज्यजी, दोनों तीर्थ रतलाम से पक्की सड़क से जुड़े हुए हैं।
गुजराती, शांतिनाथजी (अगरजी का प्रसिद्ध मंदिर), बाबासा का
मंदिर, पार्श्वनाथजी का मंदिर (स्टेशन) उल्लेखनीय है, जिनमें (स) करमदी तीर्थ
अगरजी का तथा बाबा सा. का मंदिर ५२ जिनालय युक्त है। आपने कई तीर्थ देखे होगें लेकिन करमदी तीर्थ की विशेषता
कोई भी महानुभाव जब रतलाम पधारें तो इस जिले के दर्शनीय यह है कि एक प्राकृतिक झरने के निकट यह जिनालय स्थित है और तीर्थों का अवश्य लाभ लें। २८
राजेन्द्र-ज्योति
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