________________
वर्तमान मन्दसौर अपनी प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है । महाराजा उदयन वशोवर्मन महाकवि कालिदास दशपुर से संबद्ध रहे हैं। दशपुर से मन्दसौर शब्द की यात्रा लम्बी है ।
1
मन्दसौर और गुरुदेव
पूज्य श्री राजेन्द्र सूरीश्वर (पतिरूप में)
१९०६ में चातुर्मास किया। उस समय आपका दिगम्बर समाज से विशेष परिचय रहा। अनन्तर संवत् १९२७ में आचार्य के रूप में प्रथम पदार्पण हुआ । आचार्य श्री ने हींगड परिवार की हवेली के चौतरे पर बाहर ठहरे तथा दूसरी बार सेठियाजी के चोतरे पर ठहरे । उस समय आपको गर्मजल कठिनाई से प्राप्त होता था ।
एक बार आचार्यश्री पौष माह की कड़ाके की सर्दी में रात्रि में निर्वस्त्र ध्यान करते हुए देखे गये। एक बार पालीवाल हवेली में ठहरे जहां प्रेत होने की आशंका व्यक्त की जाती थी अनुनय विनय के उपरान्त भी आपने वह स्थान नहीं त्यागा । आप पर किसी प्रकार उस स्थान का प्रभाव नहीं हुआ ।
संवत्
१९६० जनकपुरा पौषधशाला का निर्माण हुआ ।
१९६० प्रवर्तिनीजी विद्याश्रीजी ठाणा ६ का चार्तुमास
१९६२ राजेन्द्रविलास भूमि का क्रय
१९६३ लोढ़ा परिवार द्वारा गुरुदेव श्री की छत्री निर्माण १९६७ गुरु चरणों की प्रतिष्ठा उपाध्याय पूज्य मुनिश्री मोहनविजयजी के कर कमलों से यह स्मारक सर्वप्रथम मन्दसौर में निर्मित हुआ ।
१९७७ पूज्य मुनिराज श्री यतीन्द्रविजयजी का चातुर्मास १९७३ उपाध्याय मुनिराजजी मोहन
१९६५
का चातुर्मास उस्ताद निहालचन्दजी गंग द्वारा गुरुदेव की आरती की रचना | उस्तादजी को आचार्य श्री के सान्निध्य में रहने का दीर्घ सौभाग्य प्राप्त हुआ। आरती संलग्न मुद्रित है ।
वी. नि. सं. २५०३
Jain Education International
१९९१ मुनिराज हर्षविजयजी विद्याविजयजी के सान्निध्य में ध्वजदण्ड समारोह, अट्ठाई महोत्सव एवं शांति स्नात्र सम्पन्न २०२७ नई आबादी स्थित श्री श्रेयांसनाथ जिनालय की पूज्य आचार्य श्री विद्याचन्द सूरीश्वर एवं पूज्य मुनिराज श्री जयन्त विजयजी के सान्निध्य में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई ।
स्मृतियां
राजेन्द्र निवास भवन
गुरु मंदिर
राजेन्द्र आयंबिल शाल पौषधशाला
अजितनाथ जिनालय
परिषद की गतिविधियां
बाल मंदिर
जैन माध्यमिक विद्यालय
जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
जैन कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
जैन शिक्षा महाविद्यालय
जैन महिला उद्योग
महावीर जैन आयुर्वेदिक औषधालय
निकटवर्ती क्षेत्र
ग्राम अमलावद, एलची, संजीत ग्राम में आचार्य श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज द्वारा प्राचीन मंदिरों की प्रतिष्ठा हुई। इसके अतिरिक्त कचनारा, नयागांव, जमुनिया ग्राम में गुरुदेव के अनुयायी हैं। इन स्थानों पर मंदिर के अतिरिक्त पौषधशालाएं निर्मित हैं, संजीत ग्राम जो प्राचीन है। चम्बल बांध के कारण डूब क्षेत्र में होते से अन्य स्थान पर ग्राम बसाया गया वहां नये जिनालय
For Private & Personal Use Only
१३
www.jainelibrary.org