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श्रीमाल पार्श्वप्रभु प्रतिष्ठा की प्रताप सराय में, चौमास हित थिरपुर पधारे वीर विभुवर छाय में ।। आये फिर भीनमाल पुर उपधान की तैयारियां, उल्लास से शुभ कार्य पूर्ति गीत गाती नारियां ।।५३।। कर बागरा ध्वज दण्ड उत्सव संघ था प्रमुदित मना, चौमास कोसेलाव में यह योग था सुन्दर बना ।। चौमास कोसेलाव करके भूति पावा थे गये, पुनः चलने कोसेलाव में भक्तजन थे आ गये ।।५४।। दीक्षा दिलाना बहन को गुर्रा। आइये वापस मुदा, आकर दिया संयम किया था नाम चन्द्रकला तदा ।। फिर गोंडवाड़ विहारकर की कोरटा गुरु सप्तमी, कर शुभ प्रतिष्ठापन प्रभु को पुर नेनावा उद्यमी ।।५५।। कर खाचरोद निवास वर्षावास अनुपम भाव से, साथ सबके सरल वृत्ति रख मिल रहे सद्भाव से ।। गुरुदेव की करके प्रतिष्ठा दादावाड़ी जावरा, की मोहनखेड़ा तीर्थयात्रा भूमि पावन उर्वरा ॥५६।। विहार कर गये गढ़ सिवाना प्रतिष्ठित चौमुख किये, थे पारलू वहां से पधारे जिन शीतल स्थापित किये ।। दीक्षा दिलाई बहन विमला नाम विमलयशा दिया, सब कार्य को सम्पन्न करके गमन मालव को किया ।।५७।।
राजगढ़ चौमास में की देव गुरु आराधना. सुन विनती शिरपुर संघ की फिर व्यक्त की शुभकामना ।। पधार कर वहां पर मुदा वर भव्य उद्यापन किया, आया चतुर्विध संघ का तब आपने अति यश लिया ।।५८।। शान्ता विरागिन शारदा को उस समय संयम दिया, दिया शशिकला श्री शशिप्रभा श्री नाम हर्षित था दिया ।। अत्यन्त आग्रह देखकर चौमास घानेरा धरा, आनन्द मंगल संघ में यह योग भाग्योदय भरा ।।५९।। चौमास करके थे पधारे पुरी भीनमाल यदा, भागल कराई शांति पूजा सप्तमी माण्डव मुदा ।। अंजन शलाका की प्रतिष्ठा नगर में गलदा अहा, करके सुराणाञ्जन शलाका भक्तजन हर्षित महा ॥६०॥ मरुभूमि में विचर वहां से और अहमदाबाद में, श्री संघ को प्रेरित किया था भक्तगण आहलाद में ।। गुरुभूमि मंदिर आदि जिनका हो रहा उद्धार था, आकर वहां मार्गदर्शन कार्य का निर्धार था ।।६१।। वह कार्य चलता है त्वरा से आपके सानिध्य में, दिन दिन गति प्रगति वहां पर भावना आराध्य में ।। शुभ कामना सद्भावना है हो प्रतिष्ठा वर मुदा, हो वंदना शत सूरिवर को कीर्तियश वृद्धि सदा ।।६२।।
"विष-मिश्रित भोजन देकर चकोर अपने नेत्र मुंद लेता है, हंस कोलाहल करने लगता है, मैना वमन करने लगती है, तोता आक्रोश में आ जाता है, बन्दर विष्टा करने लगता है, कोकिल मर जाता है, क्रौच नाचने लगता है, नेवला और कौआ प्रसन्न होने लगते हैं; अतः जीवन को सुखी रखने के लिए सावधानी से संशोधन कर भोजन करना चाहिये।
"व्यभिचार कभी सुखदायी नहीं है, अनन्तः इससे अनेक व्याधियों-कष्टों से घिर जाना पड़ता है।
-राजेन्द्र सूरि
स्त्री.नि.सं. २५०३
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