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चामरवृत्त
माघ मास था रव सिद्धि कार एक वर्ष का,
वृहद् सुदीक्षा रत्नपुर योग धन्य हर्ष का ।। सबगुरु प्रभावशील की कृपा सदा, पूज्य उपासना करे मिटा कुवासना हि दुःखदा ।।१३।।
ज्ञान गद्य पद्य संस्कृतादि ग्रंथ का किया, जिनेन्द्र भक्ति में सदा त्रियोग को लगा दिया ।। संघ में समाज में प्रसिद्धि शुद्ध था हिया, कृपालु सद्गुरु कृपा सदा अखण्ड पा लिया || १४ || पूज्यपाद श्री यतीन्द्र देव गाव में विहार मारवाड़ और मालवा निमाड़ में । गुर्जरा धरा सुगोडवाड़ उर्वरा मुदा, प्रबोधते उदारचित्त धर्मवृद्धि सर्वदा ।। १५ ।।
गुर्जंग निमाड़ सोरठ प्रदेश में, गोडवाड़ भूमि और भेदपाट देश में ।। मारवाड मालवा गये सुतीर्थ भाव से, तीर्थ वंदनार्थ संग सद्गुरु प्रभाव से ॥१६॥ सद्गुरु प्रसंग से मिली अनेक भांति से, सद्विचार सति कार्याहि शांति से । तीर्थ भाण्डवा गया सुसंघ साथ आपका, मार्गदर्श था दिया विधान वीर जाप का ।। १७ ।।
हरिगीतिका
आहोर के चौमास में गुरु साक्षी से कर काम को, रख दृष्टि को सुविशाल उज्ज्वल कर दिया को ॥ गुरुनाम विशनगढ़ का संघ गुरु से प्रार्थना करता यदा, करना हमें मंदिर प्रतिष्ठा शुभ दिवस आता कदा || १८ || विशुद्ध शुभ लग्न शुद्धि को बता गुरु ने कहा, विद्या वहां यह काम करने आएगा अक्सर महा ।। तुम काम करना मिल सभी जन प्रेम दिल रखना अति शासन मिला जिनदेव का इसकी करे नित उन्नति ।।१९।।
गुरुदेव कहते विनवी विद्या, कार्य तुम अनुपम करो, यह योग आया कर प्रतिष्ठ संघ को संपन्न करो । आज्ञा हुई गुरुदेव की तब काम करने के लिए, हर्षित मना मुनि मण्डली ले विशनगढ़ को चल दिये ॥ २० ॥ था धर्म उत्सव ठाठ भारी आप श्री वहां पर गये, श्री संघ ने गुरु प्रेरणा से नित किये उत्सव नये ॥ निर्मित किया मण्डप वहां जो दिव्य वर सुरलोक सा, आया चतुविध संघ मिलकर सत्य सुखदा योग था ।। २१ ।।
डंका बजाया जैन शासन पूर्ण मरुधर देश में, यश कीर्ति पा गुरु पास आये चित्त था अखिलेश में ।। गुरुदेव को वंदन किया गुरु हो प्रसन्न कहा तदा, इस भांति ही करते रहोगे काम शासन के सदा ||२२||
बी.नि.सं. २५०३-२
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राजगढ़ के भावुकों की प्रार्थना को मान्य कर, गुरु शिष्य मण्डल ले पधारे मालवा धन धान्य भर ॥ विद्या विजय मुनि मुख्य सब में करत सर्व प्रवर्तना, गुरु आण धारक नित्य करते देव की अर्चना || २३ ॥ गुरु
संपूर्ण मालव भूमि में था हर्ष नूतन छा गया, चौमास घोषित राजगढ़ में धर्म मंगल आ गया ।। गुरु संघ में थे आप करते संघ को प्रेरित सदा, करना शताब्दी अर्द्ध उत्सव ॠण करें गुरु का अदा ||२४||
उत्सव मनाया संघ ने मिल पूज्य गुरुवर भक्ति का, उसमें क्षति नहीं अंश भर थी व्यय किया निज शक्ति का ।। इतिहास में यह अमर संस्कृति विश्व विद्युत बन गई, गुरु संग में भी आप की तब प्रेरणा निशदिन नई ||२५||
आज्ञा हुई गुरुदेव की जा किए प्रतिष्ठित जिनवरा, मंदिर खवासा लेडगावे ध्वज दशाई जावरा || जो जो मिली आज्ञा उसी का हर्षयुत पालन किया, गुरुभक्ति से की आत्म शुद्धि पाप प्रक्षालन किया ।।२६।।
सागर शशि अंबर नेत्र विक्रम आई कार्तिक पूर्णिमा, उपधान तप था चल रहा तप धर्म की थी स्वर्णिमा || गुरुदेव श्री यतीन्द्र ने कहा संघ सम्मुख साज में, अब दे रहा आचार्य पद विद्याविजय को आज मैं ||२७||
श्री संघ ने स्वीकार कर गुरुदेव के आदेश को, जयविजय करके हृदय पर अंकित किया संदेश को ॥ गुरु पौष सुदी तृतीया बुधे हि जब गये सुरलोक में, विरह गुरु का दुःखद सभी को संघ सारा शोक में ||२८||
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ भूमि वन गई पावन धरा वहां गुरु किया संस्कार अग्नि भूमि बन गई उर्वरा ॥ समाधि गुरु मंदिर बना वहां दिव्य निर्मित जो किया, उस हेतु विद्या विजयजी ने संघ को उन्मुख किया ||२९||
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का उद्धार तुम करना सही, गुरुराज श्री राजेन्द्र का वर तीर्थ तारक है यही ॥ संस्था चलाई चल रही सहयोग देना योग्य है, समाज संगठन बनाना यही सबल आरोग्य है ||३०||
इन्दौर से चोमास करके गच्छ हित की योजना, आये सभी मुनिराज भी यहां ति हित की योजना | गुरुदेव का आदेश शिरसावंद होगा सर्व को, उसकी करें परिपालना सब छोड़ मिथ्या गर्व को ||३१||
श्री संघ आकोली विनंती कर रहा कर जोड़ के, करना प्रतिष्ठा जिन भवन की आज ममता छोड़ के || मुनिवृन्द लेकर के पधारे स्पर्शना मरुधाम की, जा की प्रतिष्ठा आदि जिनकी वृद्धि यश गुरुनाम की ||३२||
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