________________
विजय विद्याचन्द्रसूरि जीवन-गाथा
द्रुतविलम्बित निखिल विश्व विधायक नायका । परम सत्य प्रकाश प्रदायका । विमल बोध दिया वसुधा सदा । चरण वन्दन पारस सर्वदा ||१||
Jain Education International
जोधपुर मारवाड़ वीर भूमी उर्वरा, दीप्त राष्ट्रकूट वंश धर्म-कर्म से भरा । वीरता सुधीरता कुलीनता सुशीलता, नित्य
पंच चामर
सुरम्य पूत है धरा जहां प्रकाश को लिये । सुधी प्रकाण्ड मूरवीर दानवीर भी हुए। विदेश या स्वदेश में प्रधान कार्य को किया । सुभारती सपूत पुत्र ज्ञान सर्व को दिया || २ || चामर वृत्त
चंदना,
शुभ्र 'कीर्ति पुंज कुंज फैलती लता || ३ || राष्ट्रकूट सिंह गीर धार धर्मप्रेम धारिणी सुशील नार सुंदरा । सिद्धि ज्ञान नंद व्योम वैक्रमीय वर्ष था, पौष मास शुक्ल पक्ष एकम प्रहर्ष था ||४|| चन्द्रयोग उच्च था सुकाल जन्म का यदा, पुत्ररत्न पर हुए प्रसन्न दंपति तदा । भाग्यवान पुत्र भव्य हो रहा बड़ा सदा, लेख जो ललाट के लिखे मेटे नहीं कदा ॥५॥ मात तात ने सुनाम पुत्र का
दिया तदा, सिंह बहादुरलाल जी यथा तथा गुणा । मात तात का वियोग अल्प उम्र में हुआ,
योग या वियोग का सही स्वरूप है यहां ॥ ६ ॥
૬૪
:
मुनि जयन्तविजय "मधुकर"
भ्रातु पितु कालुसिंह साथ आये नीमच, छावनी रहे प्रमोद भाव है मनोगत | व्यतीत हो रहा विनोद युक्त काल है वहां, भावि कौन जानता कि कौन जायेगा कहां ॥७॥
इतविलंबित
मुनिप मोहन वाचक राजते, जगति मेघ समान हि गाजते । मुमुनि नीमच धाम मुकाम वा सकल जैन समाज विराम था ॥ ८ ॥ चामरवृत्त कालुसिंह पास में मुनीश के गये मुदा, लाल बहादुरसिंह भी गये वहां तदा । देख के ललाट को कहा मुनीश ने, भाग्यवान बाल है कलानिधे दिने दिने || ९॥ वाचक प्रसन्न चित्त कालूसिंह से कहा, दीजिये सुजात रत्न भाविरेख है महा ।
सिंहजी उदार भाव से कहे मुझे, लीजिये इसे महान आज की घड़ी गुरो ॥ १० ॥ जीवनी अपूर्व नित्य शानदार हो तभी, शुद्ध बुद्ध शीलवन्त सद्गुर मिले कभी । भेजते यतीन्द्र पास लाल को मुनीश है, जौहरी बिनाहि कौन रत्न का परीख है ।। ११ ।।
शार्दूलविक्रीडित
दीक्षा ली निधि सप्त नंद शशि माथे तृतीया दिने, "विद्या" नाम दिया वहां विजयकी की घोषणा संघ ने । श्री भूपेन्द्रसूरी थे गणधरा सान्निध्य जो था मिला, दीक्षा देकर श्री यतीन्द्र मुनि का सद् शिष्य विद्या खिला ।।१२।।
राजेयोति
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org