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________________ 000000000000 र 000000000000 COOOOOODED श्रद्धार्चन एवं वन्दना [] श्री हीरा मुनि 'हिमकर' [ कवि, गायक एवं सरल आत्मा] श्रद्धेय परम पूज्य प्रवर्त्तक श्री अम्बालाल जी महाराज साहब संयम साधना के क्षेत्र में चिरंजीवी हो । जैन जीवन प्राप्त होने पर अड़तीस वर्षों से मैं आपश्री की गुण गरिमा सुन रहा था, तथा वर्ष भर से सेवा में रहकर देखा है, दूर की अपेक्षा समीप रहकर सत्संग करने का बहुत आनन्द आता है । केवल जीव के परिणाम ही अपौद्गलिक क्षायिक सम्यक्त्व है । वेयवी मुनि वही हैं जो उन परिणामों को सम्यक् प्रकार से पहचान सकें। आप श्री वेयवी अर्थात् आगमवेत्ता होने से अपनी साधना में निरन्तर सावधान रहते हैं। आप श्री की दिनचर्या में आने वाले अनेक सद्गुणों में से एक विशेषता है कि दिन में अभी तक सुखे समाधे शयन नहीं करते हैं। इसी तरह से आप श्री की सरलता, नम्रता आदरणीय है। उनके सद्गुणों के प्रति मैं अपनी श्रद्धा के पुष्प अर्पित करता हूँ । मदन मुनि 'पथिक' [ लेखक एवं कवि, गुरुदेव श्री के शिष्य ] भारतीय समाज के जीवन में गंगा नदी को जो महत्त्व है उसे कौन नहीं जानता ? पूज्य गुरुदेव श्री भी स्वयं में एक ऐसी ही ज्ञान गंगा है, जिसके तीर पर पहुँच कर और मात्र एक घूँट भर ज्ञान-वारि का आचमन करके ही अज्ञानी जन अपने समस्त जीवन के अज्ञान कलुष को धो सकते हैं। वन्दना जो मेघ की ओर निर्निमेष दृष्टि से ताकते रहते हैं कि. जाने किस क्षण स्वाति - बिन्दु प्राप्त हो जाय । क्या यह विस्मय की तथा साथ ही परम सौभाग्य की बात नहीं है कि आज ७२ वर्ष की आयु में भी आप सदैव की भाँति समाज की सेवा में संलग्न हैं ? सच है । " परोपकाराय सतां विभूतयः ।" ऐसे महाज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, त्यागी महानात्मा के पुण्य चरणों में भागवती दीक्षा के पचास वर्ष सम्पन्न होने के पुनीत अवसर पर हम विशुद्ध अन्तःकरण से अपने हार्दिक अभिनन्दन एवं श्रद्धा-सुमन सादर अर्पित करते हैं । साध्वी श्री चारित्रप्रभा [विदुषी लेखिका ] उनका व्यक्तित्व हिमालय की तरह महान है और कृतित्व अनन्त सागर की तरह विराट् हैं। उनके विराट् व्यक्तित्व और कृतित्व को शब्दों की सीमा में आबद्ध करना क्या सरल कार्य है ? सहिष्णुता की मूर्ति, सरल स्वभावी, शान्त मूर्ति, श्री १००८ श्री अम्बालाल जी महाराज के अभिनन्दन ग्रन्थ का सन्दर्भ सामने आया तो मैं अपनी विचारधारा को रोक न सकी । श्रद्धेय गुरुवर श्रमण संघ के एक विशिष्ट साधक हैं, उनके सबसे प्रथम दर्शन मुझे देलवाड़ा में हुए उनका सुगठित शरीर, उन्नत ललाट, उन्नत वक्ष, प्रबल मांसल भुजाएं, तेजयुक्त गौर मुखमण्डल, उनके आन्तरिक सौन्दर्य को प्रकट कर रहा था । मैं उनकी मनमोहन छवि को निहार कर मन में विचार किया करती थी, कि प्रकृति ने सारा सौन्दर्य समेट कर इनको दे डाला है । जैन श्रमण संघ तथा त्याग साधना के आप अमर कलाकार रहे हैं। वाणी का माधुर्य, व्यक्तित्व का ओज, सत्य का सौन्दर्य तथा संयम की निष्ठा, आपके व्यक्तित्व के अपूर्व गुण रहे हैं। आपकी दृढ़ निष्ठा, संगठन शक्ति, रचनात्मक कार्य को सफल बना देने की अपूर्व सूझ आपने जैन शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन किया है। ज्योतिष शास्त्र तथा इतिहास के आप प्रकाण्ड विद्वान हैं । अपने इस समस्त ज्ञान को आप जिस प्रभावशाली मधुर वाणी में उपदेश के रूप में प्रवाहित करते हैं, उसे सुनकर श्रोता विस्मय विमुग्ध रह जाते हैं, फिर चाहे वे श्रोता जैन हों अथवा अजैन, बालक हो या वृद्ध, पुरुष हो या देवियाँ, ज्ञानी हो या अज्ञानी । यही कारण है कि सैकड़ों व्यक्ति आपको सदैव घेरे रहते हैं—जन चातकों के समान फक MAK
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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