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________________ ३८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० 000000000000 पर गम्भीर विचार किया गया । मैंने इस चर्चा में यह अनुभव किया कि आपको अपनी परम्परा प्राण से भी अधिक प्यारी है, उसे किसी भी परिस्थिति में छोड़ने के लिए आप तैयार नहीं है, अंगद के पैर की तरह आप उस पर दृढ़ हैं। इस सम्बन्ध में मेरा आपके विचारों से मतभेद अवश्य रहा पर मन भेद नहीं। मेरा विचार था कि संगठन के लिए यदि परम्परा छोड़नी पड़े तो भी उसके लिए सदा तत्पर रहना चाहिए । पर, महाराज श्री उसके लिए स्वप्न में भी तैयार नहीं थे। मुझे उनकी परम्परा-प्रियता को देखकर हार्दिक आह्लाद हुआ। इसे कितने ही व्यक्ति उनकी हठवादिता मानते हैं, पर मैं उसे उनका दुर्गुण नहीं, सद्गुण ही मानता हूँ। आपके जीवन के अनेक मधुर संस्मरण स्मृति-पटल पर आज भी नाच रहे हैं उन सभी को उट्टङ्कित किया जाय तो एक विराट्काय ग्रन्थ बन सकता है । पर अभिनन्दन ग्रन्थ की अपनी एक सीमा है । उस सीमा को लक्ष्य में रखकर मैं स्पष्ट शब्दों में साधिकार कह सकता हूँ कि परम श्रद्धेय अम्बालाल जी महाराज श्रमण संघ की एक महान विभूति है जो स्वयं शंकर की भाँति जहर का चूंट पीकर संसार को अमृत बाँटना चाहते हैं । स्वयं नुकीले शूलों पर चलकर दूसरों के पथ में फूल बिछाना चाहते हैं । स्वयं अगरबत्ती व मोमबत्ती की तरह जलकर दूसरों को सुगन्ध व प्रकाश देना चाहते हैं । स्वयं चन्दन के वृक्ष की भांति विषेले भुजंगों से लिपटे रहकर भी दूसरों को अपनी मधुर सुवास से सुवासित करना चाहते हैं । अतः मैं उनका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। और यह मंगल कामना करता हूँ कि युग-युग तक जीकर अपने ज्ञान दर्शन और चारित्र की निरन्तर अभिवृद्धि करते हुए जन-जन का पथ-प्रदर्शन करते रहें। RECENER: T ...... A Tum HARSTIO 000-00-00000 ००००००००० अपने मन के प्याले में यदि अमृत न घोल सकते हो तो विष क्यों घोलते हो! अपने तन की तुला पर यदि हीरे न तोल सकते हो तो पत्थर क्यों तोलते हो! अपनी जीभ से यदि मीठा और हृदयहारी वचन न बोल सकते हो तो हृदय को जलाने बाला बचन क्यों बोलते हो! -'अम्बागुरु-सुवचन' ००००००००० ०००० ००००० - Jain Education International For Private Personal use only nel NORD
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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