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ग्रन्थ परिचय श्रीचन्द सुराना 'सरस' | १७
आप सब जानते हैं कि दहेज, मृत्यु भोज जैसी बुराइयों के विरुद्ध कानून बने हैं और सख्त बन रहे हैं किंतु कोई समाज केवल कानून से बदले यह कोई अच्छी बात नहीं है ।
आपका समाज एक प्रतिष्ठित समाज है, आपको धर्म गुरुओं के उपदेश से बदल जाना चाहिए ।
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कानून से ही बदलना आवश्यक नहीं है स्वतः बदल जाना ही श्रेष्ठ है ।
आज यदि कोई यह कहे कि शिक्षा सिद्धान्त कानून के आधार पर अनिवार्य कर देना चाहिए तो सोचिए दूसरे देश क्या सोचेंगे कि भारतवासी अभी भी इतने पिछड़े हुए हैं कि शिक्षा के लिए कानून बनाना पड़ता है। जब यह कहा जाए कि दहेज को कानून से बन्द किया जाए तो कोई क्या सोचेगा कि यह देश कितना पिछड़ा हुआ है कि अपना भला-बुरा भी नहीं सोच सकता ।
मेरा आग्रह है कि एक ऐसा वातावरण बना दिया जाय कि अनायास ही समाज से बुराइयाँ समाप्त हो जाएं कानून आपकी और हमारी इज्जत नहीं बना सकता, वह तो इज्जत को खराब कर सकता हैं ।
हमें कानून की राह नहीं देखकर जो हमारे हित में हैं उसे तुरन्त स्वीकार करना चाहिए ये ।
आज महान मुनिराज श्री अम्बालाल जी महाराज को अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट कर हम उनका अभिनन्दन कर रहे हैं ये पूरे समाज के लिए बड़े उत्साह के क्षण है। हमें इस अवसर पर सामाजिक बुराइयों का परित्याग कर मुनिवर का सच्चा अभिनन्दन करना चाहिए ।
साहित्य सेवी श्री श्रीचंद सुराणा द्वारा दिया गया ग्रन्थ- परिचय
पूज्यनीय संत सतीवर्ग, भाइयो और बहनो!
पूज्य गुरुदेव श्री अम्बालाल जी
महाराज साहब के दीक्षा स्वर्ण जयन्ति महोत्सव के इस महान् अवसर पर अभी पूज्य प्रवर्तक श्री को एक अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया जाएगा । उपस्थित जनसमूह में एक उत्सुकता है कि यह ग्रन्थ क्या है ?
आपकी सम्पूर्ण उत्सुकता का समाधान तो ग्रन्थ को साक्षात् देखने पर ही हो सकेगा किन्तु ग्रंथ के सम्पादक मंडल से मेरा भी सम्बन्ध है एतदर्थ ग्रंथ का थोड़ा-सा परिचय दे देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ ।
जब गुरुदेव के अभिनन्दन की योजना बनी तो ग्रन्थ के रूप में उसे साहित्यिक मोड़ देने का श्रेय श्री सौभाग्य मुनि जी 'कु' को है ।
का संग्रह है।
किसी भी सद्पुरुष की कीर्ति को चिरस्थायी बनाने के लिए ग्रन्थ एक उपयोगी और श्रेष्ठ साधन है । प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक साहित्य जगत में अनूठा स्थान बनाये ऐसी कृति है। इसका बाह्यावरण सर्वमान्य जैन ध्वज के पाँच रंगों से सुशोभित है। मध्य में 'विजय स्तम्भ' अंकित है जो मेवाड़ के ओज तेज और व्यक्तित्व का शानदार प्रतीक है। एक तरफ जैन प्रतीक है जो प्रस्तुत कृति को भगवान महावीर के पच्चीस सौ वें निर्वाण वर्ष के सन्दर्भ में व्यक्त करता है ।
तीन रंगों में ग्रन्थ का नाम है तथा नीचे अष्टमंगल जो शास्त्रानुसार परम कल्याण के सूचक हैं, चित्रित हैं। ग्रंथ का बाह्य आवरण जितना आकर्षक और भव्य है, अन्तरंग उससे भी कहीं अधिक शानदार है ।
ग्रन्थ कुल षट्खण्डों में विभाजित है, चक्रवर्ती भी तो छह ही खण्ड साधते हैं ।
प्रथम खण्ड जीवन और श्रद्धार्चन का है, इसमें पूज्य प्रवर्तक श्री का इतिवृत्त और अनेकों भावपूर्ण श्रद्धा पुष्पों
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मेवाड़ गौरव नामक ग्रन्थ का द्वितीय खण्ड है, इसमें मेवाड़ की उन विभूतियों का जीवन वृत आपको मिलेगा
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