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________________ १२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट ०००००००००००० ०००००००००००० प्रवर्तक श्री के शिष्य रत्न श्री मदन मुनि जी 'पथिक' का श्रद्धा-समर्पण हम आज अपने पूज्य गुरुदेव श्री का अभिनन्दन करते हुए अतीव प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। प्रस्तुत अभिनन्दन समायोजन का मूल वह श्रद्धा है, जो श्रद्धेय के चरणों में हमारे मन को समर्पित करती है। एक वाक्य है 'यो यच्छ द्धः सः एव सः' अर्थात् जो जिसकी श्रद्धा करता है वह वैसा ही हो जाता है । श्रद्धा वह तत्त्व है जो जीवन को तदनुरूप बना देती है। श्रद्धा एक आन्तरिक बल है। मानव-जीवन आँधी और तूफानों का केवल श्रद्धा के बल पर सामना कर सकता है। पूज्य गुरुदेव श्री के प्रति हमारी श्रद्धा ने हमको बदला। गुरुदेव श्री के जीवन में एक निर्माणात्मक ऊर्जा है । ये स्वयं बने हैं, इनके निकट में आने वाले प्रत्येक को ये बनाया करते हैं इनसे हजारों बने हैं, उनमें से एक मैं भी हूँ। कोई किसी के मन में अपने प्रति श्रद्धा खड़ी नहीं करवा सकता, श्रद्धा तो सहज बनती है। कोई फूल भ्रमर को बुलाता नही है, आकर्षण होता है सुगन्ध का, भ्रमर दौड़ा आता है । आज आप हजारों यहाँ उपस्थित हैं आपको यहाँ कौन खींच लाया ? गुरुदेव श्री का श्रेष्ठ ज्ञान, दर्शन, चारित्र यही वह तत्त्व है जो आपको यहाँ तक लाया है । गुरुदेव श्री सरल सात्विक और साधना प्रिय जीवन के धनी हैं । इस बार्धक्य पूर्ण वय में भी कमी बिना किसी बहुत बड़े कारण के दिन में नहीं सोते । ये बड़े भजनानन्दी हैं, रात्रि को देर तक और प्रातः बहुत पहले ये स्मरण करते और ध्यान करते मिलेंगे। ऋजुता इनके जीवन के रग-रग में व्याप्त है । आचारांग सूत्र की भाषा में "जहा पुण्णस्स कत्थइ तहा तुच्छस्स कत्थई" के अनुसार ये अभेद भाव से धनिक और रंक सभी को उपदेश दिया करते हैं । इनका सभी पर समान वात्सल्य भाव है । मैं अधिक क्या कहूं, जो भी इनके निकट आया है वह प्रत्येक व्यक्ति इनके जीवन की श्रेष्ठता से तुरन्त परिचित हो जाता है । हम धन्य हैं कि हमें इन चरणों की सेवा प्राप्त है । सम्पूर्ण हार्दिक श्रद्धा के साथ अभिनन्दन करता हुआ मैं अपना स्थान ग्रहण करता हूँ। HTTRITIO Per MANIWAN AN जन POOR in Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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