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' कार्यक्रम की आँखों देखी झांकी | ७
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अपने संक्षिप्त वक्तव्य में पूज्य प्र० श्री मरुधर केसरी जी महाराज ने प्रवर्तक श्री को एक सुयोग्य संत रत्न बताते हुए हार्दिक स्नेह प्रकट किया और 'मेवाड़ संघ शिरोमणि' पद प्रदान करने का आग्रह किया । जिसका समस्त श्री संघों ने जयनाद के साथ बड़े उत्साह से स्वागत किया ।
साथ ही पूज्य मरुधर केसरी जी महाराज ने प्रवर्तक श्री के सुयोग्य शिष्य विद्वदरत्न श्री सौभाग्य मुनि 'कुमुद' को 'प्रवचन भूषण' पद से अलंकृत करने का आग्रह किया। उपस्थित जन-समुदाय ने बड़े उल्लास से समर्थन प्रकट किया। समापन
कार्यक्रम ८।। बजे से प्रारम्भ होकर १२।। बजे तक अद्भुत शान्ति के साथ चला ।
कार्यक्रम का संयोजन श्री रोशनलाल जी पगारिया श्री मदनलाल जी जैन तथा श्री बसन्तीलाल जी कोठारी कर रहे थे । अन्त में दानवीर सेठ श्री ऊंकारलाल जी सेठिया का अध्यक्षीय भाषण हुआ। श्री सेठिया जी ने अपने विस्तृत प्रवचन में समाज की अनेक समस्याओं को छूते हुए उनके समाधान हेतु ठोस कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
अध्यक्षीय भाषण पर धन्यवाद देते हुए मन्त्री महोदय ने आगत अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया तथा शान्ति व्यवस्था बनाये रखने में जो सहयोग दिया इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।
समारोह की कुछ अद्भुत विशेषताएँ तटस्थ दर्शकों का अनुमान है कि समारोह में २५ से ३० हजार जनता की उपस्थिति रही होगी। किन्तु इतने लम्बे कार्यक्रम में कहीं किसी भी तरह की अशान्ति का प्रसंग उपस्थित नहीं हुआ। न किसी की कोई वस्तु खोई और न कोई व्याधिग्रस्त ही हुआ और न कोई अप्रिय प्रसंग बना । यह एक सुखद आश्चर्य था।
हजारों व्यक्तियों ने एक साथ हाथ खड़े कर कुरीतियों के त्यागने का जो संकल्प इस समारोह में लिया, सामूहिक सुधार का यह आदर्श शताब्दियों तक प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।
समारोह से पूर्व कई व्यक्ति प्रायः ऐसा कहा करते थे कि 'कोशीथल' निवासी क्या व्यवस्था कर पायेंगे ? छोटा-सा गाँव है। पानी की व्यवस्था में ही थक जायेंगे किन्तु कोशीथल श्रावक संघ ने और वहाँ की जनता ने जो शानदार व्यवस्था की उसे देखकर उन्हें कहना पड़ा कि ऐसी सुन्दर व्यवस्था कोशीथल वाले कर पाये, यह अद्भुत बात है।
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कई व्यक्तियों का अनुमान था कि विशाल जनता को देखते हुए भोजन-व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। किन्तु कार्यकर्ताओं की सूझ-बूझ से भोजन-व्यवस्था बड़ी सुन्दर रही, साथ ही यह भी सुनने में आया कि भोजन भण्डार में बिलकुल कमी नहीं आई, इतना ही नहीं अनुमान से अधिक व्यक्तियों के भोजन कर लेने के उपरान्त भी भोजन भारी मात्रा में बढ़ा और स्थानीय जनता ने उसका उपयोग किया।
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विशाल पांडाल जो लगभग २५-३० हजार जनता से खचाखच भरा था, पांडाल कई बार तेज हवा के झोंको से हिला । कई बार उठा भी कार्यकर्ताओं को भय भी हुआ कि कहीं पांडाल नीचे न आ जाए किन्तु कोई दुर्घटना नहीं हुई।
संयोग की बात थी कि कार्यक्रम के सम्पन्न होने के आधा घंटे बाद जब पांडाल बिलकुल खाली था, हवा के - एक तीव्र झोके के साथ ही पांडाल भूमि पर आ गिरा ।
इस पर चुटकी लेते हुए श्री हस्तिमल जी मुणोत ने कहा कि समारोह सम्पन्न होने तक पांडाल को देवता थामे हुए थे।
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