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________________ जैन परम्परा : एक ऐतिहासिक यात्रा | ५३३ श्री धर्मसिंह जी महाराज ने २७ सूत्रों पर 'टब्बा' (शब्दार्थ) लिखा जो अत्यधिक प्रसिद्ध और अपने ढंग की अनुपम रचना है। पूज्य श्री लवजी ऋषिजी महाराज 000000000000 ०००००००००००० ३ पूm LIANIL क .. UTTLY श्री लवजी ऋषि जब बालक थे उनके पिता का देहावसान हो गया, अतः सूरत के वीरजी वोरा, जो लवजी के नाना थे, पालन-पोषण वहीं हुआ। वहाँ वज्रांग लोंकागच्छी यति रहा करते थे, लवजी अपने नाना के साथ वहाँ दर्शनार्थ जाया करते । एक दिन यतिजी का ध्यान लवजी के हाथ की तरफ गया रेखाएँ देखकर वे बड़े प्रभावित हुए। उन्हें यह भी जानकर आश्चर्य हुआ कि ७ वर्ष के बच्चे को प्रतिक्रमण याद है । वे लवजी को पास बिठाकर शास्त्राभ्यास कराने लगे । लवजी बड़े बुद्धिमान और जिज्ञासु थे, उनका शास्त्राभ्यास क्रमशः गम्भीर होने लगा । ज्ञानाभ्यास से उन्हें संसार से विरक्ति होने लगी। १६६२ में उन्होंने यति दीक्षा ग्रहण की। अब उन्हें शास्त्राभ्यास का और विशेष अवसर मिला। भगवान महावीर के शुद्ध आचार मार्ग और तत्कालीन विडम्बना को देख उन्हें बड़ा खेद हुआ । श्री धर्मसिंह जी मुनि की तरह इन्हें भी शुद्धाचार तथा सत्य-प्ररूपणा की लगन लगी । अन्ततोगत्वा १६६४ में शुद्ध भागवती दीक्षा ग्रहण कर क्रियोद्धार की नबीन ज्योति जगा दी। श्री लवजी द्वारा क्रियोद्धार की घोषणा से यतिवर्ग में बड़ी हलचल फैल गई। उन्होंने श्री वीरजी वोरा (नाना) को भड़काया । नानाजी उनकी बातों में आकर ऋद्ध हो गया। उसने खंभात के नबाब को पत्र लिखकर श्री लवजी को गिरफ्तार करवा दिया किन्तु नबाब और नबाब की बेगम ने जब इस अद्भुत साधु की धर्म क्रिया और शांत वृत्ति देखी तो वे बड़े प्रभावित हुए और उन्हें ससम्मान मुक्त कर दिया । कहते हैं अहमदाबाद में यतियों ने इनके दो मुनियों को मारकर उपाश्रय में गाड़ दिया । शोध करने पर सत्य सामने आया तो तत्कालीन अधिकारी यतियों को गम्भीर दण्ड देने लगे तो श्री लवजी ऋषि ने करुणाकर उन्हें दण्ड से मुक्त करवाकर अपनी महानता का अद्भुत परिचय दिया। यति वर्ग कितना पतित हो चुका था और उसके भयंकर आतंक के बीच उनका विरोध कितना कठिन था पाठक उक्त घटना से यह अच्छी तरह जान सकते हैं । इतने विरोध की उपस्थिति होते हुए भी श्री लवजी ऋषि यथार्थ मार्ग पर कदम बढ़ाते रहे, धन्य हो ! उन उत्तम पुरुषों को जिन्होंने असीम कष्ट सहकर भी सत्य की ज्योति जगाई। ___ बहारनपुर में एक हलवाई ने मोदक में जहर दे दिया और वहीं पूज्य लवजी ऋषि जी का समाधिपूर्वक स्वर्गवास हुआ। श्री लवजी ऋषि की परम्परा में आज अनेक सिंघाड़े ऋषि संप्रदाय आदि हैं। C. ... UTTTTTIMIL MINIRWITTIMP INDIA पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में उत्क्रांति की जो नई लहर आई, उसके फलस्वरूप देश के विभिन्न भागों में क्रियोद्धार कर्ता कई श्रेष्ठ सद्पुरुष सामने आये । पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज भी उन सद् पुरुषों में से एक हैं। पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज का जन्म सरखेज (अहमदाबाद) नामक ग्राम में वि० सं० १७०१ चैत्र शुक्ला ११ के दिन हुआ। श्री रत्नीदास जी तथा हीराबाई इनके माता-पिता थे। ये भावसार थे। सरखेज में भावसारों के ७०० घर थे। ....' २ As.87
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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