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५०० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज -- अभिनन्दन ग्रन्थ
अनार्य देश में
प्रभु अपने विकट कर्मों का क्षय करने को अनार्य देश में विचरे । वहाँ मानव स्वभाव से ही दुष्ट प्रकृति के होते हैं। भगवान को वहीं उन लोगों ने असीम यातनाएँ दीं। उन पर कुत्ते छोड़ दिये जाते थे । उन्हें रस्सों से बाँधा और पीटा गया । तीखे शूलों से पीड़ित किया गया। कहीं प्रभु को लट्ठ से मारा गया तो कहीं लात घूंसों से प्रभु को प्रताड़ना दी गई । इतने भयंकर कष्टों के बीच भी प्रभु कभी चिंतित नहीं हुए, तुफानों के मध्य खिले कमल की तरह प्रभु का मुखमण्डल सर्वदा शांत और खिला ही रहा ।
गुप्तचर समझा
भगवान कुवि सन्निवेश पधारे। वहाँ पहरेदारों ने भगवान को गुप्तचर समझ कर बंदी बना लिया किंतु प्रभु. बराबर मौन रहे । भगवान पार्श्वनाथ की दो शिष्याएँ "विजया और प्रगल्भा" को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने प्रभु का परिचय देकर उन्हें मुक्त कराया ।
गोशालक अलग
अब तक गोशालक प्रभु के साथ था किंतु उसने अनुभव किया कि प्रभु के साथ अनेक कष्ट सहने पड़ते हैं, कई परीषह आते हैं प्रभु बचाव भी नहीं करते अतः अलग हो जाना ही ठीक है। ऐसा निश्चय कर अपने मनोभाव प्रभु को बताकर वह अलग विचरण करने लगा ।
प्रहार व्यर्थ
भगवान वैशाली में एक लुहार की 'कर्मशाला' में ध्यान कर रहे थे, लोहकर्मी कई दिनों से अस्वस्थ था । वह उसी दिन स्वस्थ हुआ और अपनी शाला में कार्य हेतु पहुँचा, वहाँ प्रभु को ध्यानस्थ देखा तो अपशकुन समझकर क्रोधित हो उठा और हथोड़ा का प्रहार करने लगा किंतु भक्तदेव के प्रभाव से वह प्रहार निष्फल गया ।
व्यन्तरी हार गई
एक बार प्रभु शालिशीर्ष उद्यान में ध्यानस्थ थे। वहाँ 'कटपूतना' नामक व्यन्तरी ने प्रभु को कई उपसर्ग दिये, उसने भयंकर वर्षा वर्षाई, बड़ी तीक्ष्ण हवा चलाकर प्रभु को विचलित करने लगी किंतु प्रभु अविचल रहे । कटपूतना हार कर क्षमा-याचना करने लगी ।
इसी तरह एक शालार्थ नामक व्यन्तरी ने भी शालवन में उपसर्ग खड़े किए किन्तु अन्ततोगत्वा प्रभु की स्थिरता की ही विजय हुई |
तिल फिर खड़ा हो गया
गोशालक कुछ समय अलग रहकर फिर आ मिला। एक बार प्रभु को मार्ग में गोशालक ने पूछा - इस तिल
का क्या होगा ?
प्रभु ने कहा - सात फूलों के सातों जीव एक फली में पैदा होंगे। गोशालक ने प्रभु के आगे बढ़ते ही पीछे से तिल के पौधे को उठा फेंका किन्तु वर्षा के कारण पौधा फिर जमकर खड़ा हो गया ।
कुछ समय बाद जब प्रभु फिर उधर पधारे, गोशालक ने तिल के विषय में पूछा तो प्रभु ने बताया - पौधा खड़ा है और सात बीज हैं। इस पर गोशालक को विश्वास नहीं हुआ, उसने फली तोड़कर देखी और सातों बीज देखे तो उसका विश्वास नियतिवाद में हो गया। उसने सोचा - सब कुछ पहले से नियत होता है वही होता है, पुरुषार्थं व्यर्थ है । उसने भिन्न मत चलाने का निश्चय किया ।
भस्म होता बचा
गोशालक जलकर भस्म हो जाता किन्तु बच गया। बात यह थी कि जब प्रभु से उसने तिल के विषय में
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