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४६६ / पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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(७) सिंहासन बत्तीसी=मलयचन्द्र, ज्ञानचन्द्र, विनय समुद्र, हीरकलश, सिद्ध सूरि । (८) विक्रम खापरा चोर चौपाई=राजशील । (6) विक्रम लीलावती चौपाई-कक्क सूरि शिष्य । लोक-कथा सम्बन्धी कतिपय ग्रन्थ ये हैं(१) शुक बहोत्तरी रत्न सुन्दर, रत्नचन्द्र । (२) शृगार मंजरी चौपाई=जयवन्त सूरि । (३) स्त्री चरित रास=ज्ञानदास । (४) सगालसा रास= कनक सुन्दर । (५) सदयवत्स सवंलिंगा चौपाई =केशव । (६) कान्हड कठियारा चौपाई मान सागर । (७) रतना हमीर री बात-उत्तमचन्द भंडारी । (८) राजा रिसूल की बात आनन्द विजय । (६) लघुवार्ता संग्रह =कीति सुन्दर ।।
लोकवार्ताओं के अतिरिक्त लोक-गीतों को भी जैन विद्वानों ने विशेष रूप से अपनाया है । लोक गीतों की रागनियों पर भी उन्होंने अपनी रचनाएँ लिखी हैं।
राजस्थानी जैन-साहित्य व कवि-राजस्थानी रचनाओं की संख्या पर दृष्टि डालने से पता चलता है कि अजैन राजस्थानी साहित्य के बड़े ग्रन्थ तो बहत ही कम हैं। फुटकर दोहे एवं गीत ही अधिक हैं। जबकि राजस्थानी जैन ग्रन्थों, रास आदि बड़े-बड़े ग्रन्थों की संख्या सैकड़ों में है। दोहे और डिंगल गीत हजारों की संख्या में मिलते हैं। उनका स्थान जैन विद्वानों के स्तवन, सज्झाय, गीत, भास-पद आदि लघु कृतियाँ ले लेती हैं, जिनकी संख्या हजारों पर है।
कवियों की संख्या और उनके रचित-साहित्य से परिणाम से तुलना करने पर भी जैन-साहित्य का पलड़ा बहुत भारी नजर आता है । अजैन राजस्थानी-साहित्य निर्माताओं में दोहा व गीत निर्माताओं को छोड़ देने पर बड़े-बड़े स्वतन्त्र ग्रन्थ निर्माता कवि थोड़े से रह जाते हैं। उनमें से भी किसी कवि ने उल्लेखनीय ४-५ बड़ी-बड़ी और छोटी २०-३० रचनाओं से अधिक नहीं लिखी । जैनेत्तर राजस्थानी भाषा का सबसे बड़ा ग्रन्थ 'वंश भास्कर' है। जबकि जैन कवियों में ऐसे बहुत से कवि हो गये हैं जिन्होंने बड़े-बड़े रास ही अधिक संख्या में लिखे हैं। यहाँ कुछ प्रधान राजस्थानी जैन कवियों का परिचय दिया जा रहा है
(१) कविवर समय सुन्दर-इनका जन्म समय अनुमानतः संवत् १६२० है। (जीवनकाल–१६०-१७०२), तथापि इनकी भाषा कृतियाँ आलोच्यकाल के पश्चात् लिखी गई है। कवि ने सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से मृत्यु पर्यन्त, अर्धशताब्दी तक निरन्तर, सभीप्रकार के विशाल साहित्य का निर्माण किया । इसी से कहावत है-"समय सुन्दर रा गीतड़ा, कुंभ राण रा भीतड़ा।" इससे पता लगता है कि कवि के गीतों की संख्या अपरिमेय है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि समय सुन्दर अपने समय के प्रख्यात कवि और प्रौढ़ विद्वान थे। इनकी प्रमुख कृतियों में-साम्बप्रा मन चौपाई, सीताराम चौपाई, नल-दयमन्ती रास, प्रिय मेलक रास, थावच्चा चौपाई, क्षुल्लक कुमार प्रबन्ध, चंपक श्रेष्ठिचौपाई, गौतम पृच्छा चौपाई, घनदत्त चौपाई, साधुवन्दना, पूजा ऋषिरास, द्रौपदी चौपाई, केशी प्रबन्ध, दानादि चौढालिया एवं क्षमा छत्तीसी, कर्म छत्तीसी, पुण्य छत्तीसी, दुष्काल वर्णन छत्तीसी, सवैया छत्तीसी, आलोयण छत्तीसी आदि उल्लेखनीय हैं।
(२) जिनहर्ष-इनका दीक्षा पूर्व नाम जसराज था। यह राजस्थानी के बड़े भारी कवि हैं। राजस्थानी भाषा और गुजराती मिश्रित भाषा में ५० के लगभग रास एवं सैकड़ों स्तवन आदि फुटकर रचनाएँ लिखी हैं ।
(३) बेगड़ जिन समुद्र सूरि-इन्होंने भी राजस्थानी में बहुत से रास, स्तवन आदि बनाये हैं । कई ग्रन्थ अपूर्ण मिले हैं।
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