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रमेशकुमार जैन
राजस्थानी साहित्य भण्डार विश्व की किसी भी भाषा के साहित्य भण्डार से कम नहीं है। परिमारण एवं श्रेष्ठता दोनों ही दृष्टियों से राजस्थानी साहित्य काफी समृद्ध है । इस समृद्धि में चार चांद लगाने वाले जैन साहित्यकारों का एक विस्तृत परिचय यहाँ प्रस्तुत है।
राजस्थानी जैन जैन साहित्य
राजस्थानी जैन साहित्य बहुत विशाल है । विशाल इतना कि चारण साहित्य भी उसके समक्ष न्यून है । उसकी मौलिक विशेषताएँ भी कम नहीं हैं ।
प्रथम विशेषता यह है कि वह जन साधारण की आदि ने जिस प्रकार शब्दों को तोड़-मरोड़कर अपने ग्रन्थों की किया है।
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भाषा में लिखा गया है। अतः वह सरल है । चरणों भाषा को दुरूह बना लिया है वैसा जैन विद्वानों ने नहीं
दूसरी विशेषता है जीवन को उच्च स्तर पर ले जाने वाले साहित्य की प्रचुरता ।
जैन मुनियों का जीवन निवृत्ति प्रधान था, वे किसी राजा-महाराजा आदि के आश्रित नहीं थे, जिससे कि उन्हें अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन करने की आवश्यकता होती । युद्ध के लिए प्रोत्साहित करना भी उनका धर्म नहीं था और शृङ्गार साहित्य द्वारा जनता को विलासिता की ओर अग्रसर करना भी उनके आचार से विरुद्ध था । अतः उन्होंने जनता के कल्याणकारी और उनके जीवन को ऊंचे उठाने वाले साहित्य का ही निर्माण किया । चारण-साहित्य वीर रस प्रधान है और उसके बाद श्रृंगार रस का स्थान आता है । भक्ति रचनाएँ भी उनकी प्राप्त है पर, जैन साहित्य धर्म और नैतिकता प्रधान है । उसमें शान्त रस यत्र तत्र सर्वत्र देखा जा सकता है। जैन कवियों का उद्देश्य जन-जीवन में आध्यात्मिक जागृति पैदा करना था। नैतिक और भक्तिपूर्ण जीवन ही उनका चरम लक्ष्य था। उन्होंने अपने इस उद्देश्य के लिए कथा - साहित्य को विशेष रूप से अपनाया । तत्त्वज्ञान सूखा एवं कठिन विषय है । साधारण जनता की वहाँ तक पहुँच नहीं और न उसकी रुचि ही हो सकती है । उसको तो कथाओं व दृष्टान्तों द्वारा धर्म का मर्म समझाया जाय तभी उसके हृदय को वह धर्म छू सकता है । कथा-कहानी सबसे अधिक लोकप्रिय विषय होने के कारण उनके द्वारा धार्मिक तत्त्वों का प्रचार शीघ्रता से हो सकता है । इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने तप, दान, शील तथा धार्मिक व्रतनियमों का महात्म्य प्रगट करने वाले कथानकों को धर्म प्रचार का माध्यम बनाया । इसके पश्चात् जैन तीर्थंकरों एवं आचार्यों के ऐतिहासिक काव्य आते हैं । इससे जनता के सामने महापुरुषों के जीवन आदर्श सहज रूप से उपस्थित होते हैं । इन दोनों प्रकार के साहित्य से जनता को अपने जीवन को सुधारने में एवं नैतिक तथा धार्मिक आदर्शो से परिपूर्ण करने में बड़ी प्रेरणा मिली ।
राजस्थानी जैन साहित्य के महत्त्व के सम्बन्ध में दो बातें उल्लेखनीय है - प्रथम - भाषा - विज्ञान की दृष्टि से उसका महत्त्व है, द्वितीय - १३वीं से १५वीं शताब्दी तक के अजैन राजस्थानी ग्रन्थ स्वतन्त्र रूप से उपलब्ध नहीं है । उसकी प्रति राजस्थानी जैन साहित्य करता है।
अनेक विद्वानों की यह धारणा है कि जैन साहित्य जैन धर्म मे ही सम्बन्धित है, वह जनोपयोगी साहित्य
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