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भगवान महावीर का तत्त्ववाद | २७१
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बुद्ध ने कहा-इसीलिए मैं कहता हूँ कि बाण को निकालने की जरूरत है। बाण किसने बनाया, कहाँ से आया, किस प्रकार से फेंका गया, किस धनुष्य से फेंका गया, इन कल्पनाओं में उलझने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है । जिन बातों में उलझने की जरूरत है, उन्हीं में उलझो। दुःख क्या है ? दुःख का हेतु क्या है ? निर्वाण क्या है और निर्वाण का हेतु क्या है ? ये चार आर्य-सत्य हैं। इन्हीं को जानने का प्रयत्न करो !
पूर्व प्रतिपादित वर्गीकरणों और मीमांसाओं के सन्दर्भ में मैं भगवान महावीर के तात्त्विक वर्गीकरण का विश्लेषण करूंगा। प्रारम्भ में एक धारा की ओर मैं इंगित करना चाहता हूँ। वर्तमान युग के कुछ इतिहासज्ञ और कुछ दार्शनिक जैनदर्शन को वैशेषिक, सांख्य आदि दर्शनों का ऋणी मानते हैं। कुछ विद्वान् लिखते हैं कि परमाणुवाद महर्षि कणाद की देन है । जैनदर्शन ने उसका अनुसरण किया है। कुछ विद्वान् लिखते हैं, जैनदर्शन सांख्यदर्शन का ही रूपान्तर है । उसका तत्ववाद मौलिक नहीं है । ये धारणाएँ क्यों चलती हैं ? इनका रहस्य खोजना जरूरी है । वे विद्वान् लेखक या तो इतिहास के कक्ष तक पहुंचने का तीव्र प्रयत्न नहीं करते या वे साम्प्रदायिक भावना को पुष्ट करने का प्रयत्न कर रहे हैं । दोनों में से एक बात अवश्य है।
मालिक ने नौकर से कहा--जाओ, बगीचे में पानी सींच आओ। नौकर बोला-महाशय ! इसकी जरूरत नहीं है । वर्षा हो रही है तब पानी सींचकर क्या करूं? मालिक ने कहा-वर्षा से डरते हो तो छाता ले जाओ। पानी तो सींचना ही होगा। अब आप देखिए, वर्षा हो रही है, फिर पानी सींचने की क्या जरूरत है ? कोई नहीं। किन्तु मालिक कह रहा है कि वर्षा हो रही है तो होने दो। भीगने का डर लगता है तो छाता ले जाओ। पर पानी सींचना ही होगा । उसके सामने छाते की उपयोगिता है। वह उसी को समझ रहा है। वर्षा से जो सहज सिंचन हो रहा है, उसे या तो वह समझ नहीं पा रहा है या जान-बूझकर नकार रहा है। मुझे लगता है कि यह एक प्रवाह है कि छाते की बात सुझाई जा रही है और पानी स्वयं सिंचित हो रहा है, उसे स्वीकृत नहीं किया जा रहा है।
महर्षि कणाद ने वैशेषिक सूत्र भगवान महावीर के बाद लिखा था। सांख्यदर्शन का विकास भगवान पार्श्व के बाद और भगवान महावीर के आस-पास हुआ। किन्तु तत्त्व के विषय में सांख्य और जैनदर्शन का दृष्टिकोण स्वतन्त्र है। इसलिए तत्त्व के वर्गीकरण में सांख्यदर्शन जनदर्शन का आभारी है या जैनदर्शन सांख्यदर्शन का आभारी है, यह नहीं कहा जा सकता। सांख्यदर्शन सृष्टिवादी है और सृष्टिवाद की कल्पना उसके तात्त्विक वर्गीकरण के साथ जुड़ी हुई है । जैनदर्शन द्रव्य-पर्यायवादी है। उसके वर्गीकरण में कुछ तत्त्व ऐसे हैं जो सांख्य के प्रकृति और पुरुष इन दोनों से सर्वथा भिन्न हैं।
__ भगवान महावीर ने पाँच अस्तिकायों का प्रतिपादन किया। राजगृह के बाहर गुणशिलक नाम का चैत्य था । उसकी थोड़ी दूरी पर परिव्राजकों का एक 'आवसथ' था । उसमें कालोदायी आदि अनेक परिव्राजक रहते थे। एक बार भगवान महावीर राजगृह पधारे, गुणशिलक चैत्य में ठहरे। राजगृह में 'महुक' नामका श्रमणोपासक रहता था। वह भगवान को वंदन करने के लिए आ रहा था। परिव्राजकों ने उसे देखा, अपने पास बुलाया और कहा-तुम्हारे धर्माचार्य श्रमण महावीर पाँच अस्तिकायों का प्रतिपादन करते हैं। तुम जानते हो, देखते हो? ।
महुक ने कहा-जो पदार्थ कार्य करता है, उसे हम जानते हैं, देखते हैं और जो पदार्थ कार्य नहीं करता, उसे हम नहीं जानते, नहीं देखते हैं ।
परिव्राजक बोले-तुम कैसे श्रमणोपासक हुए जो तुम तुम्हारे धर्माचार्य के द्वारा प्रतिपादित अस्तिकायों को नहीं जानते, नहीं देखते।
उनका व्यंग सुन महुक बोला-आयुष्मान् ! क्या हवा चल रही है ? हाँ चल रही है। क्या चलती हुई हवा का आप रूप देख रहे हैं ? नहीं।
आयुष्मान् ! हम हवा को नहीं देखते किन्तु हिलते हुए पत्तों को देखकर हम जान लेते हैं कि हवा चल रही है।
फूलों की भीनी सुगन्ध आ रही है ?
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