________________
पूज्य श्री मोतीलालजी महाराज | १७६
वास्तव में किसी महापुरुष का पूर्ण परिचय देना किसी सागर की गहराई की थाह पाने जैसा है। समुद्र केवल लहराता है। पूज्यश्री भी संयम के पचपन वर्ष तक केवल लहराये। अनगिनत व्यक्ति उस विशाल सरोवर के निकट आये और तृषा बुझाकर गये ।
जीवन के अन्तिम वर्षों में देलवाड़ा पाँच वर्षो तक गुरुदेवश्री स्थानापन्न रहे तो देलवाड़ा तीर्थ सा बन गया । वि० [सं० दो हजार पन्द्रहवें वर्ष के द्वितीय श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को सायं पौने सात बजे पूज्यश्री का
स्वर्गवास हुआ।
देहावसान के अन्तिम समारोह के अवसर पर लगभग दस हजार जनता की उपस्थिति यह बता रही थी कि पूज्य श्री वास्तव में मेवाड़ की धर्मप्रेमी जनता के श्रद्धेय पूज्य तथा आराध्य थे ।
अन्त में देलवाड़ा रावजी राजराणा खुमानसिंहजी के दो श्रद्धा पुष्प, जो मेरे हार्दिक भावों का भी प्रतिनिधित्व हैं, प्रस्तुत करता हुआ लेखनी को विश्राम देता हूँ:
Sipalit FOXER
Jáin Education International
काना मोती पहरिया, गले पहरिया लाल । शब्द हृदय में थारिया, किम भूलां मोतीलाल ।। और खामी मिटे सही जोड्यां मोती लाल । खामी मोटी किम मिटे, थां विन मोतीलाल ॥
दूसरों को बुरा बताकर खुद को अच्छा सिद्ध करने की चेष्टा करना नादानी है। अपनी अच्छाई से ही स्वयं को अच्छा सिद्ध करो। दूसरों की बुराई से कभी अपनी अच्छाई सिद्ध नहीं हो सकती ।
मोटे-ताजे व्यक्ति अपना वजन घटाने की चेष्टा करते हैं, दुबलेपतले व्यक्ति वजन बढ़ाने की । इससे क्या यह पता नहीं चलता कि जीवन में अतिभाव और अभाव दोनों ही त्याज्य हैं, समभाव ( समस्थिति) ही सुखदायी है ।
- 'अम्बागुरु-सुवचन'
For Private & Personal Use Only
2--0
-
000000000000 000000000000
4000000000
S.Bharti www.jainelibrary.org.