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________________ आचार्य प्रवर श्री सिंहदास जी महाराज | १४३ 000000000000 ०००००००००००० ढाल के अनुसार, पूज्य श्री की दीक्षा मार्गशीर्ष कृष्णा नवमी, सं० १८५२ को हुई । स्वर्गवास फाल्गुन कृष्णा अष्टमी, सं० १८८६ को हुआ । इस प्रकार इनके सैंतीस चातुर्मासों का होना नितान्त प्रामाणिक है ।। आचार्य श्री नरसिंहदास जी महाराज के चातुर्मासों की ऐसी व्यवस्थित सूची मानजी स्वामी कृत ढाल के द्वारा मिल जाने से अब तक जो इन चातुर्मासों का सम्बन्ध श्री रोड़जी स्वामी के साथ बिठाए जाने की जो बात चली आ रही थी, वह समाप्त हो जाती है। ये चातुर्मास पूज्य श्री नरसिंहदास जी महाराज के थे, न कि श्री रोड़जी स्वामी के। पूज्य श्री रोड़जी स्वामी के स्वर्गवास की तिथि की अधिकृत जानकारी, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, अब तक मिल नहीं पाई। मानजी स्वामी कृत ढाल से भी उनका उदयपुर में नौ वर्ष थाणापति रहना और साढ़े चार दिन के संथारा युक्त स्वर्गवास होना इतना ही जान पाये। संवत और तिथि नहीं मिल पाई तो सैंतीस चौमासों की उनकी विगत का आधार बैठता ही नहीं। प्रेरकजीवनी कार की प्रेरणा से प्रकाशित 'तीन किरणें' पुस्तक में श्री रोजी स्वामी की दीक्षा होना सं० १८२४ के वैशाख मास में लिखा है। तदनुसार यदि सं० १८६१ फाल्गुन का स्वर्गवास मान भी लें तो चातुर्मास सैतीस न होकर ३८ होते हैं । जबकि १८६१ के स्वर्गवास का प्रामाणिक आधार उपलब्ध नहीं है। वास्तविक बात यह है कि पूज्य श्री रोड़जी स्वामी के सैंतीस चातुर्मास का आधार मिलता नहीं हैं। पूज्य श्री नरसिंहदास जी महाराज के ही सैतीस चातुर्मासों की व्यवस्थित सूची है । भूल से उसी सूची को श्रीरोड़जी स्वामी की सूची मान बैठे, जिसका निराकरण मानजी स्वामी कृत ढाल से भलीभाँति हो जाता है। स्वर्गारोहण पूज्यश्री का अन्तिम चातुर्मास उदयपुर था। पूज्य श्री चातुर्मास हेतु पधारे, उस समय उस चातुर्मास को अन्तिम मानने का कोई आधार नहीं था ।२ . प्राप्त प्रमाणों से ऐसा लगता है कि वह चातुर्मास सं० १८८६ का था। चातुर्मास में ही पूज्य श्री के स्वास्थ्य में अस्वस्थता आ गई थी। फलस्वरूप विहार नहीं हो सका। उसी वर्ष फाल्गुन कृष्णा अष्टमी के दिन पूज्य श्री का स्वर्गवास हो गया । स्वर्गवास से पूर्व पूज्य श्री ने व्याधि बढ़ती हुई देखकर संथारा धारण कर लिया जो एक दिन चला। पूज्य आचार्य श्री नरसिंहदास जी महाराज का स्वर्गवास मेवाड़ जनसंघ के लिए बड़ी चिन्ता का विषय रहा । ऐसा लगा मानों, जगमगाता नक्षत्र विलुप्त हो गया। पूज्य श्री नरसिंहदास जी महाराज अच्छे ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, वक्ता कवि और ओजस्वी आचार्य रत्न थे । उन्होंने मेवाड़ सम्प्रदाय का एक तरह से नवीनीकरण किया था। वे अनेकों आध्यात्मिक प्रतिभाओं के धनी थे। पूज्य श्री के स्वर्गवास से कुछ दिन पूर्व ही लिखे मानजी स्वामी कृत स्तवन में उल्लेख है कि गुरु देवन का देव कही जे, गुरु सम अवर न कोय । एहवा गुरु मिले जेहने तेहना कारज सिद्ध होय ।। इससे पाठक समझ सकते हैं कि मानजी स्वामी जैसा तेजस्वी तथा प्रबुद्ध व्यक्तित्व जिस व्यक्तित्व के प्रति इतना अधिक अनुरक्त हुआ हो, अवश्य ही वह व्यक्तित्व अनूठा एवं प्रतिभा सम्पन्न रहा होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । सेर उदियापुर पधारिया रे कीदो चरम चौमास । २ बिहार करण री आस । ३ फाल्गुन कृष्णा अष्टमी रेसुरलोक में वास । ४ चउथ भक्त अणसण कियो आणी मन उल्लास । JINNI - : :
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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